HerZindagi wants to start sending you push notifications. Click Allow to subscribe.

पूजा के बाद मां दुर्गा से क्षमा मांगने के लिए पढ़ें श्री देव्यापराध क्षमापन स्तोत्रं

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होने वाली है, इस दौरान आप मां की पूजा के बाद इस देव्यापराध क्षमापन स्तोत्रं का पाठ जरूर करें और मां से क्षमा की विनती करें।

 
What is the meaning of Durga Kshama mantra

आषाढ़ मास में पड़ने वाली साल की दूसरी गुप्त नवरात्रि इस साल 6 जुलाई 2024 से शुरू होने वाली है। साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें से दो प्रकट नवरात्रि, इसमें सभी मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। प्रकट के अलावा दो गुप्त नवरात्रि, जिसमें तंत्र साधना करने वाले भक्त विशेष रूप से दस महाविद्याओं के रूपों की पूजा करते हैं। गुप्त नवरात्रि में देवी के स्वरूपों की पूजा करने के बाद आरती करें और भोग लगाकर मां की स्तुति अराधना करें। इसके अलावा मां की पूजा और पाठ में किसी प्रकार की भूल-चूक हुई हो तो क्षमा मांगने के लिए मां देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ जरूर करें। मां के इस स्तोत्र के पाठ को पढ़ने से मां अपने भक्तों की भूल-चूक को क्षमा करती हैं और उनपर अपनी कृपा बनाए रखती हैं। हमारे एस्ट्रो एक्सपर्ट शिवम पाठक जी ने इसके महत्व को बताते हुए कहा है कि जो भी भक्त मां के पूजा और साधना के बाद इस देवी अपराध क्षमापन स्तोत्र मंत्र का पाठ करता है, मां उसके भूल और गलती को क्षमा करती हैं।

श्री देव्यापराध क्षमापन स्तोत्रं ॥

significance of sri devi aparadha kshamapana stotram path for gupt Navratri

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो

न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा: ।

न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं

परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥ 1 ॥

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया

विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।

तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 2 ॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:

परं तेषां मध्ये विरलतरलोSहं तव सुत: ।

मदीयोSयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 3 ॥

इसे भी पढ़ें: Ashadha Gupt Navratri 2024: कब है आषाढ़ गुप्त नवरात्रि? जानें घटस्थापना का मुहूर्त और महत्व

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता

न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।

तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 4 ॥

परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया

मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।

इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता

निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥ 5 ॥

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा

निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकै: ।

तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं

जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥ 6 ॥

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो

जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति: ।

कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं

भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥ 7 ॥

न मोक्षस्याकाड़्क्षा भवविभववाण्छापि च न मे

न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन: ।

अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै

मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत: ॥ 8 ॥

नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:

किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि: ।

श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे

धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥ 9 ॥

आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं

करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।

नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:

क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥ 10 ॥

जगदम्ब विचित्रमत्र किं

परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।

अपराधपरम्परावृतं

न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥ 11 ॥

मत्सम: पातकी नास्ति

पापघ्नी त्वत्समा न हि ।

एवं ज्ञात्वा महादेवि

यथा योग्यं तथा कुरु ॥ 12 ॥

इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्।

इसे भी पढ़ें: गुप्त नवरात्रि के 9 दिनों में जरूर करें मां दुर्गा के इन नौ रूपों की पूजा

अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी से। अपने विचार हमें आर्टिकल के ऊपर कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

Image Credit: Herzindagi

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.