significance of reciting ashtalakshmi stotra for financial stability

आर्थिक तंगी से छुटकारा पाने के लिए अष्टलक्ष्मी के इस स्तोत्र का पाठ करने से हो सकता है लाभ, पंडित जी से जानें

हिंदू धर्म में अष्टलक्ष्मी की पूजा का विशेष विधान है। ऐसा कहा कहा जाता है कि अगर कोई जातक आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है तो इस दिन एक ऐसा स्तोत्र है। जिसका पाठ करने से लाभ हो सकता है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
Editorial
Updated:- 2025-08-01, 11:53 IST

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र, इन आठों देवियों को समर्पित एक शक्तिशाली प्रार्थना है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से न केवल वित्तीय समस्याओं से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है। यह स्तोत्र आपकी कुंडली में मौजूद किसी भी प्रकार के धन संबंधी दोषों को दूर करने में सहायक माना जाता है। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है, उसे देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र दरिद्रता को दूर कर धन-धान्य की वृद्धि करता है। इसके पाठ से व्यापार में वृद्धि, नौकरी में पदोन्नति, कर्ज से मुक्ति और आकस्मिक धन लाभ के योग बनते हैं। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने के बारे में विस्तार से जानते हैं।

आर्थिक तंगी से छुटकारा पाने के लिए करें अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ

आदिलक्ष्मि
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहॊदरि हेममये
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायनि, मञ्जुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥ 1 ॥
धान्यलक्ष्मि
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मङ्गल रूपिणि, मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि सदापालय माम् [परिपालय माम्] ॥ 2 ॥
धैर्यलक्ष्मि
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये [जयवरवर्णिनि]
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥ 3 ॥
गजलक्ष्मि
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥ 4 ॥
सन्तानलक्ष्मि
अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, स्वरसप्त भूषित गाननुते । [सप्तस्वर]
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम् [परिपालय माम्] ॥ 5 ॥
विजयलक्ष्मि
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर, भूषित वासित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्करदेशिक मान्यपदे
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी सदा पालय माम् [परिपालय माम्] ॥ 6 ॥
विद्यालक्ष्मि
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥ 7 ॥
धनलक्ष्मि
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमि, दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पूराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥ 8 ॥

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फलशृति
श्लो॥ अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षः स्थला रूढे भक्त मोक्ष प्रदायिनि ॥
श्लो॥ शङ्ख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलं शुभ मङ्गलम् ॥

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