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Saphala Ekadashi Vrat Katha 2025: नौकरी में तरक्की के लिए सफला एकादशी पर पढ़ें संपूर्ण कथा, मिलेंगे लाभ

सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। साथ ही व्रत भी रखा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। शाम के समय पूजा करने के बाद व्रत का पारण करती हैं, लेकिन इस व्रत में कथा पढ़ना भी बेहद जरूरी होता है।
Editorial
Updated:- 2025-12-15, 05:35 IST

सफला एकादशी इस बार 15 दिसंबर को पड़ रही है। ऐसे में महिलाएं सोमवार के दिन सफला एकादशी का व्रत रखेंगी और विष्णु भगवान की पूजा करेंगी। इस व्रत को निर्जला रखा जाता है, और शाम के समय पूजा के बाद इसका पारण किया जाता है, लेकिन बिना कथा के ये व्रत अधूरा माना जाता है। ऐसे में आपको भी व्रत कथा को जरूर पढ़ना चाहिए। आर्टिकल में आपको पूरी कथा के बारे में बताया गया है, जिसे आर यहां से पढ़कर अपने व्रत को पूरा कर सकती हैं, ताकि आपके ऊपर भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद बना रहे।

सफला एकादशी की व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha 2025

प्राचीन काल में चंपावती नगर में महिष्मान नामक एक राजा राज्य करते थे। राजा के पांच पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र लुंपक अत्यंत पापी और दुराचारी था। लुंपक हमेशा धर्म विरुद्ध कार्य करता था, देवताओं की निंदा करता था, और ब्राह्मणों को कष्ट देता था। राजा महिष्मान अपने पुत्र के इस व्यवहार से बहुत दुखी और निराश थे। उन्होंने क्रोधित होकर लुंपक को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया।

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राज्य से निकाले जाने के बाद, लुंपक ने सोचा कि अब उसे कहां जाना चाहिए। आखिर में, उसने निश्चय किया कि वह दिन में नगर से बाहर रहेगा और रात में वापस आकर नगर वासियों की धन-संपत्ति चुरा लेगा। वह चोरी करने लगा और जंगल में जाकर रहने लगा। एक दिन, चोरी के दौरान उसे पकड़ लिया गया, लेकिन राजा का पुत्र होने के कारण उसे छोड़ दिया गया। लुंपक ने चोरी और पाप कर्म करना नहीं छोड़ा।

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लुंपक जिस जंगल में रहता था, वहां एक बहुत पुराना और विशाल पीपल का वृक्ष था, जिसे लोग देवता के समान पूजते थे। यह वृक्ष भगवान विष्णु को अति प्रिय था। लुंपक उसी वृक्ष के नीचे रहने लगा। एक बार पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन, शीत लहर और ठंड बहुत अधिक थी। लुंपक ने रात भर ठंड के मारे जागकर बिताई। वह ठंड से कांपता रहा और इस कारण उसने भोजन भी नहीं किया।

अगली सुबह, यानी एकादशी तिथि के दिन, वह बहुत भूखा था। उसे कमजोरी महसूस हुई। वह फल लाने के उद्देश्य से जंगल गया, लेकिन ठंड के कारण कई फल जमीन पर गिरे पड़े थे। लुंपक ने उन्हीं फलों को इकट्ठा किया और वापस पीपल वृक्ष के नीचे आया। सूर्य अस्त होने लगा था। तब लुंपक को पिछले दो दिनों से उपवास रहने का आभास हुआ।

लुंपक ने अनजाने में रखा एकादशी व्रत

लुंपक ने पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर उन फलों को रखा और मन ही मन कहा, हे भगवान, मैंने यह फल आपको अर्पित किए हैं। कृपया इन्हें स्वीकार करें और मुझे तृप्ति प्रदान करें। लुंपक ने अनजाने में ही दशमी की रात जागकर, एकादशी का व्रत किया, वृक्ष को फल समर्पित किए और रात भर उठकर भजन किए। लुंपक के इस अनजाने में किए गए सफला एकादशी व्रत से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। अगले दिन, सूर्योदय होते ही लुंपक के सामने एक दिव्य अश्व आया और उसके ऊपर एक सुंदर मुकुट रखा था।

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आकाशवाणी हुई, हे राजकुमार सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो गए हैं। तुम अब शुद्ध हो और राज्य वापस जाओ और अपना राज्य संभालों। लुंपक यह सुनकर बहुत खुश हुआ। उसने अश्व और मुकुट स्वीकार किया और वापस अपने पिता के पास गया। राजा महिष्मान ने अपने पुत्र को सुधरा हुआ देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उसे राज्य सौंप दिया। लुंपक ने फिर कभी पाप नहीं किया और धर्मपूर्वक राजकाज चलाया। वृद्धावस्था आने पर उसने अपने पुत्र को राज्य सौंप दिया और स्वयं भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गया। अंत में, सफला एकादशी के प्रभाव से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति विधिपूर्वक सफला एकादशी का व्रत रखता है, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें अंत में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। इसलिए आपको भी व्रत जरूर रखना चाहिए और कथा के बाद ही भगवान विष्णु की आरती और उन्हें भोग लगाना चाहिए।

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Image Credit- Freepik

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