क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों हर साल पूरे देश में नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। खासतौर पर शारदीय नवरात्रि का उल्लास महीनों पहले से ही दिखाई देने लगता है। जहां एक तरफ बंगाल में दुर्गा पूजा की धूम होती है, वहीं लोग घरों में कलश की स्थापना करते हैं और माता को प्रसन्न करने के उपाय आजमाते हैं। जरा सोचिए हर साल नवरात्रि मनाने का आखिर क्या कारण हो सकता है और किसने इसकी शुरुआत की होगी? वास्तव में इस पर्व के इतिहास और इसकी शुरुआत से जुड़े न जाने कितने ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर हमेशा से ही खोजा जाता रहा है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर क्यों इसे सिर्फ 9 दिनों तक ही यह मनाया जाता है? आखिर इसके पीछे क्या रहस्य है? आखिर क्या है इस पर्व का इतिहास? इन्हीं सवालों के उत्तर के लिए और नवरात्रि के पर्व से जुड़े कई रहस्यों को खंगालने के लिए हमने एस्ट्रोलॉजर शेफाली गर्ग से बात की। आइए उनसे जानते हैं नवरात्रि के इस पर्व और उससे जुड़े इतिहास की कई रोचक बातें।
हर साल नौ दिनों तक चलने वाली यह नवरात्रि मां दुर्गा और उनके नौ रूपों को समर्पित है। इस दौरान भक्त उपवास करते हैं और माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करते हैं। वास्तव में नवरात्रि सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि रहस्यों का वो खजाना है जिसके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते होंगे। नवरात्रि शब्द दो भागों से मिलकर बना है। नव यानी 'नौ' और 'रात्रि' यानी रातें। इसका मतलब यह है कि ऐसी नौ रातें जो केवल पूजा या उत्सव के लिए नहीं बल्कि आत्मिक साधना और ऊर्जा संचय के लिए सर्वोच्च माना जाता है। इन नौ दिनों को देवी शक्ति के नौ रूपों की उपासना का काल कहा जाता है।
जब हम नवरात्रि के इतिहास की बात करते हैं तब सबसे पहला उल्लेख हमें मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य खंड में मिलता है। जहां देवताओं द्वारा महिषासुर के अत्याचार से बचने के लिए मां दुर्गा का आह्वान करने और 9 दिन तक चले महासंग्राम का वर्णन है। इसी कथा से नवरात्रि पर्व की नींव रखी गई। इसके अलावा कालिका पुराण, स्कंद पुराण और देवी भागवत पुराण जैसे ग्रंथों में भी नवरात्रि व्रत और दुर्गा पूजा का वर्णन है। ऐसी मान्यता है कि महिषासुर के साथ 9 दिनों तक चले युद्ध और माता दुर्गा की विजय का प्रतीक नवरात्रि का पर्व आज भी मनाया जाता है।
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नवरात्रि की शुरुआत आदि काल से ही चली आ रही है। अगर हम वेदों की बात करें तो वेद सबसे पहले अस्तित्व में आए, लेकिन वेदों में कहीं भी नवरात्रि शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है। वहीं ऋग्वेद और यजुर्वेद में मां शक्ति और उमा की उपासना की गई है। हमारी नवरात्रि की जड़ है उनकी पूजा जो वेदों में भी की गई है। यह पूजा आदि काल से चली आ रही है और प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि देवी दुर्गा की आराधना करते थे जो बाद में नवरात्रि के पर्व के रूप में मनाई जाने लगी।
नवरात्रि का पर्व उस शक्ति की आराधना करने का तरीका है जिसका आप अंश हैं। यद्यपि नवरात्रि शब्द सीधे वेदों में नहीं आता है, लेकिन शक्ति और उमा की स्तुति ही नवरात्रि के आरंभ का संकेत देती है। समय के साथ यह मां शक्ति की साधना उत्सव का रूप लेने लगी। वैदिक काल में नवरात्रि मुख्यतः यज्ञों और ऋतु परिवर्तन से जुड़ी तपस्या थी। जहां ऋषि मुनि शरद और वसंत के संधि काल में आत्मशुद्धि हेतु उपवास रखते थे। आज भी इस पर्व का इतिहास ताजा किया जाता है और साल में मुख्य रूप से दो बार नवरात्रि मनाई जाती है।
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वैदिक काल में नवरात्रि मुख्यतः यज्ञों और ऋतु परिवर्तन से जुड़ी तपस्या थी। जहां ऋषि मुनि शरद और वसंत के संधि काल में आत्मशुद्धि हेतु उपवास रखते थे। गुप्त काल यानी कि लगभग चौथी से छठी सदी ईवी तक आते-आते शक्ति की उपासना जनसामान्य में फैलने लगी और दुर्गा पूजा सामाजिक त्योहार बनने लगी। इसी काल में देवी को शक्ति के सार्वभौम रूप में प्रतिष्ठित किया गया और मंदिरों में उनकी प्रतिमाएं स्थापित होने लगी। मध्यकालीन भारत में नवरात्रि ने क्षेत्रीय रंग अपनाए। उत्तर भारत में इसे रामलीला और विजया दशमी से जोड़ा गया। जहां राम के रावण वध को धर्म की विजय का प्रतीक माना गया। दक्षिण भारत में इस दौरान गोलू या बोमई कोलू की परंपरा विकसित हुई जिसमें देवी देवताओं की मूर्तियां घरों में सजाकर रखी जाती हैं।
सदियों से ही नवरात्रि का पर्व अलग-अलग रूपों में चला आ रहा है और लोग इन नौ दिनों में देवी की आराधना में लीन रहते हैं। इसका इतिहास काफी पुराना है और इसे मनाने के अलग तरीके हैं जो इस त्योहार की रौनक को और ज्यादा बढ़ाते हैं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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