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Maha Shivratri 2025: किस पाप से बचने के लिए किया था भगवान काल भैरव ने तप?

भगवान काल भैरव की पूजा यूं तो तांत्रिक श्रेणी में आती है लेकिन महाशिवरात्रि के समय गृहस्थी भी इनकी पूजा-आराधना कर सकते हैं। ऐसे में आइये जानते हैं कि आखिर कैसे और क्यों हुई थी भगवान काल भैरव की उत्पत्ति।
Editorial
Updated:- 2025-02-20, 07:30 IST

भगवान शिव के रूद्रांश भगवान काल भैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान काल भैरव के होते हुए कोई भी दुष्ट शक्ति काशी में प्रवेश नहीं कर सकती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जहां भक्तों के लिए काल भैरव दयालु, कल्याण करने वाले और शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव माने जाते हैं, वहीं अनैतिक कार्य करने वालों के लिए वह दंडनायक सिद्ध होते हैं।

ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति काल भैरव भगवान के भक्तों का अहित करता है, तो उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण नहीं मिलती। भगवान काल भैरव की पूजा यूं तो तांत्रिक श्रेणी में आती है लेकिन महाशिवरात्रि के समय गृहस्थी भी इनकी पूजा-आराधना कर सकते हैं। ऐसे में आइये जानते हैं कि आखिर कैसे और क्यों हुई थी भगवान काल भैरव की उत्पत्ति एवं कैसे बने काल भैरव काशी के कोतवाल।

क्या है काल भैरव भगवान की उत्पत्ति का रहस्य?

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव के बीच यह विवाद हुआ कि इनमें से कौन सबसे श्रेष्ठ है। इस विषय पर सभी देवताओं को बुलाकर विचार विमर्श किया गया, जिसमें विष्णु जी और भगवान शिव ने एक ही राय रखी, लेकिन ब्रह्मा जी ने इसके विपरीत शिव जी से अपशब्द कहे।

bhagwan kaal bhairav ne kaun sa paap kiya tha

भगवान शिव इस अपमान से क्रोधित हो गए और अपने क्रोध से भैरव रूप को उत्पन्न किया। काल भैरव के इस रूप को देखकर सभी देवता डर गए। भगवान काल भैरव ने अपने क्रोध में त्रिशूल से ब्रह्माजी के 5 मुखों में से एक मुख को काट डाला, जिसके बाद ब्रह्माजी के पास केवल 4 मुख ही रह गए।

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ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भगवान काल भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से हाथ जोड़कर नतमस्तक होकर क्षमा मांगी, तब जाकर भगवान शिव अपने सौम्य रूप में प्रकट हुए। काल भैरव भगवान का वाहन काला कुत्ता है और उनके एक हाथ में छड़ी भी स्थापित है।

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kaal bhairav ne kaun sa paap kiya tha

भगवान शिव के इस भैरव अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए ही बरमा जी द्वारा बताये गए मार्ग अनुसार काल भैरव भगवान ने काशी में हजारों वर्षों तक तपस्या की।

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जिसके बाद ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के रूद्र अवतार काल भैरव भगवान को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति का आशीर्वाद दिया और भगवान शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया। इसी कारण से काशी की यात्रा बिना काल भैरव भगवान के दर्शनों के पूरी नहीं मानी जाती है।

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image credit: herzindagi 

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