हिंदू धर्म में कालभैरव बाबा का बहुत महत्व है। उन्हें भगवान शिव का एक उग्र और शक्तिशाली स्वरूप माना जाता है। कालभैरव बाबा को सभी काल को हरने वाला देवता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर आपके जीवन में किसी भी तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही है तो कालभैरव बाबा की पूजा विधिवत रूप से करें। आपको बता दें, कालभैरव के जन्म से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से कालभैरव प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया।
इस कारण कालभैरव को ब्रह्महत्या का पाप लगा, जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्हें भिखारी के रूप में कई वर्षों तक घूमना पड़ा। अंत में, वाराणसी पहुंचने पर उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। अब ऐसे में अगर आप काल भैरव की पूजा कर रहे हैं तो उनकी चालीसा का पाठ विशेष रूप से करें। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
कालभैरव बाबा की पूजा करने के दौरान करें चालीसा का पाठ
अगर आप रोजाना कालभैरव बाबा की चालीसा का पाठ कर रहे हैं तो नियमित रूप से प्रदोष काल के समय करें। इससे उत्तम परिणाम मिल सकते हैं और व्यक्ति को उत्तम परिणाम मिल सकता है।
श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।
चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥
जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी-कुतवाला॥
जयति बटुक-भैरव भय हारी। जयति काल-भैरव बलकारी॥
जयति नाथ-भैरव विख्याता। जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥
भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। बटुक नाथ हो काल गंभीरा। श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
करत नीनहूं रूप प्रकाशा। भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन। व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥
महा भीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥
त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत। चौंसठ योगिन संग नचावत॥
करत कृपा जन पर बहु ढंगा। काशी कोतवाल अड़बंगा॥
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देयं काल भैरव जब सोटा। नसै पाप मोटा से मोटा॥
जनकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा॥
श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा॥
ऐलादी के दुख निवारयो। सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा। श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण देख्यो॥
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