Jitiya Vrat 2024: कौन हैं जीमूतवाहन, जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्यों की जाती है इनकी पूजा?

जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत सभी माताओं के लिए खास माना जाता है। इस दिन बिना जल और अन्न ग्रहण किए माताएं अपनी संतान की सुरक्षा के लिए रखती हैं। 

Jitiya vrat  significance of Worshipping jimutavahana ()

हिंदू धर्म में जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत को बेहद सौभाग्यशाली माना जाता है। यह व्रत खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से रखा जाता है। इस दिन माताएं अपने संतान के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और गंधर्व राजा जीमूतवाहन की विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करती हैं। पंचांग के हिसाब से यह व्रत हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। अब ऐसे में जीमूतवाहन कौन हैं और इनकी पूजा जितिया के दिन क्यों करने की मान्यता है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

जीमूतवाहन कौन हैं?

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जीमूतवाहन गंधर्व राजकुमार थे। यह बेहद उदार और परोपकारी व्यक्ति थे। उनके पिता ने अपना सब राजपाट छोड़कर वन में चले गए। जिसके बाद जीमूतवाहन को राजा बना दिया गया। वह अपना राजपाट ठीक से चला रहे थे, लेकिन उनके में हमेशा एक उदासी रहती थी। एक दिन वह राजपाट अपने भाइयों को सौंपकर अपने पिता के पास ही वन में चले गए। जहां उनका विवाह मलयवती नामक एक कन्या से हुआ।

एक दिन वह वन में एक वृद्धा से मिले। उसका संबंध नागवंश से था। वह बेहद डरी और सहमी थी और रो रही थी। जीमूतवाहन की नजर उस पर पड़ी, तो उन्होंने उनसे रोना का कारण पूछा, तो उसने बताया कि पक्षीराज गरुड़ को नागों ने वचन दिया है कि हर रोज एक नाग उनके पास आहार के रूप में जाएगा और उससे वह अपने भूख शांत कर लेंगे। उस वृद्धा ने कहा कि आज उसके बेटे की बारी है और अब वह उससे कभी नहीं मिल पाएगी। वृद्धा के बेटे का नाम शंखचूड़ है। वह आज पक्षीराज गरुड़ का निवाला बन जाएगा। यह कहकर वह खूब रोने लगी। इस पर दयावान जीमूतवाहन ने कहा कि आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। वह आज पक्षीराज गरुड़ के पास नहीं जाएगा। उसके बदले वह जाएंगे। ऐसा कहते हुए जीमूतवाहन खुद गरुड़ देव के पास चले गए।

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्यों की जाती हैजीमूतवाहन की पूजा

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जीमूतवाहन लाल कपड़े में लिपटे थे। तब गरुड़ ने उनके पंजे में दबोच लिया और उड़ गए। इस बीच उन्होंने देखा कि जीमूतवाहन रो रहे हैं और कराह रहे हैं। तब वह एक पहाड़ के शिखर पर रुक गए और जीमूतवाहन को मुक्त किए। इसके बाद उन्होंने सारी घटना बताई।

गरुड़देव जीमूतवाहन की दया और साहस को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दिया। साथ ही वचन भी दिया कि आज से वह कभी भी किसी भी नाग को अपना भोजन नहीं बनाएंगे। इस प्रकार से जीमूतवाहन के कारण नागों के वंश की रक्षा हुई और तभी से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीमूतवाहन की पूजा विधिवत रूप से की जाती है और जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत भी रखा जाता है।

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Image Credit- HerZindagi

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