सनातन धर्म में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का विशेष महत्व है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाता है। यह यात्रा ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से बड़े भव्य और धूमधाम तरीके से निकाली जाती है। यह मंदिर चार पवित्र धामों में से एक है। बता दें, यह यात्रा कुल 10 दिनों तक चलती है। इसके 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन हो जाता है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए श्रद्धालु देश-विदेश के कोने-कोने से आते है। बता दें, जगन्नाथ मंदिर पर भगवान श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की भी विधिवत पूजा की जाती है। जगन्नाथ मंदिर में तीन प्रतिमा विराजमान हैं। वहीं इस साल जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा 07 जुलाई से आरंभ हो रही है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि जगन्नाथ रथ के हर दिन का क्या महत्व है।
इस साल जगन्नाथ यात्रा की शुरुआत 07 जुलाई से लेकर 16 जुलाई तक होगी। इस बीच में 10 दिनों की अवधि में भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए बेहद शुभ और महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसी कारण इस यात्रा में दूर-दूर से श्रद्धालु आकर शामिल होते हैं।
रथ यात्रा का पहला दिन नवमी के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को स्नान कराया जाता है। यह स्नान "स्नान पूर्णिमा" के रूप में जाना जाता है। इसके बाद, तीनों मूर्तियों को रथों पर विराजमान कराया जाता है।
इस दिन को गुंडिचा विजय के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा पुरी से निकलकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।
तीसरे दिन को बड़ा दिन या अरुणा सूर्य दर्शन के रूप में जाना जाता है। इस दिन भक्त रथों को खींचकर गुंडिचा मंदिर के सामने स्थित अरुणा स्तंभ तक ले जाते हैं। वहां से भगवान सूर्य को दर्शन देते हैं।
चौथे दिन को भातुकली के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान बलराम को रंगों से सजाया जाता है।
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पांचवें दिन को बसंत उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा का विवाह होता है।
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छठे दिन को ललिता दर्शन के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ और देवी ललिता का मिलन होता है।
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सातवें दिन को सप्तशती के रूप में जाना जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
आठवें दिन को नवमी के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर से वापस रथों पर विराजमान होकर पुरी लौटते हैं।
नौवें दिन को दशमी या परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को वापस जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया जाता है।
रथयात्रा भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ की भक्ति का प्रतीक है। यह त्योहार समानता और भाईचारे का संदेश देता है। रथ यात्रा पुरी शहर और ओडिशा राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है। लाखों श्रद्धालु हर साल रथ यात्रा में भाग लेने के लिए पुरी आते हैं।
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Image Credit- HerZindagi
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