सनातन धर्म में पूजा-पाठ के कई अलग-अलग नियम और महत्व है। पूजा-पाठ के अन्य उपकरण और सामग्री के अलावा, पूजा में घंटी और शंख का भी विशेष महत्व है। पूजा और आरती के वक्त शंख और घंटी बजाई जाती है। घंटी और शंख की ध्वनि के बिना पूजा और आरती संपन्न नहीं मानी जाती है। सालों से पूजा और शुभ कार्यों के दौरान शंख बजाने की परंपरा है। शास्त्रों में शंख बजाने के कई लाभ बताए गए हैं, इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और हमेशा सुख समृद्धि बनी रहती है। शंख में वातावरण को शुद्ध और पवित्र करने की क्षमता होती है। हिंदू धर्म में शंख की इतनी महत्व को देखते हुए आज हम आपको इसकी उत्पत्ति के बारे में बताएंगे।
शंख से निकलने वाली ध्वनि पूजा-पाठ करने के लिए प्रेरित करती है। इससे निकलने वाली ध्वनि इतनी पवित्र होती है कि इससे आसपास का वातावरण शुद्ध और पवित्र करती है, साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होता है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक शंख की उत्पत्ति मां लक्ष्मी की तरह ही समुद्र से हुई थी। समुद्र से शंख की उत्पत्ति होने के कारण इसे माता लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है। बता दें कि समुद्र मंथन के दौरान उसमें से 14 रत्न निकले थे, उनमें से एक शंख भी है। पूजा पाठ के दौरान शंख बजाना बहुत शुभ माना गया है। बता दें कि शंख भगवान विष्णुको बहुत प्रिय है, तभी तो उन्होंने अपने हाथों में शंख को धारण किया हुआ है।
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