
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष स्थान है जो भगवान शिव और माता पार्वती की असीम कृपा पाने का सबसे सरल माध्यम माना जाता है। पंचांग के अनुसार, प्रत्येक मास के दोनों पक्षों कृष्ण और शुक्ल की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। 'प्रदोष' का अर्थ है संध्या काल और मान्यता है कि इस समय महादेव कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। दिसंबर 2025 का आखिरी प्रदोष व्रत साल का अंतिम अवसर है जब भक्त अपने पूरे वर्ष की गलतियों की क्षमा मांगकर नए वर्ष के लिए सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शांति देता है बल्कि जीवन के समस्त कष्टों का नाश भी करता है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि साल 2025 का आखिरी प्रदोष व्रत जो कल पड़ रहा है, क्या है इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि?
साल 2025 का अंतिम प्रदोष व्रत बुध प्रदोष कहलाएगा क्योंकि यह बुधवार के दिन पड़ रहा है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 16 दिसंबर को मंगलवार के दिन रात 11 बजकर 57 मिनट पर होगा।

वहीं, इसका समापन 18 दिसंबर को गुरुवार के दिन रात 2 बजकर 32 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, दिसंबर का आखिरी प्रदोष व्रत 17 दिसंबर को रखा जाएगा।
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प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय की जाती है जिसे प्रदोष काल कहा जाता है। 17 दिसंबर 2025 को पूजा का सबसे उत्तम समय यानी कि प्रदोष काल शाम 5 बजकर 27 मिनट से शुरू हो रहा है और इसका समापन रात 8 बजकर 11 मिनट पर होगा।
ऐसे में पूजा के लिए कुल अवधि लगभग 2 घंटे 44 मिनट उपलब्ध है। इस समय अवधि में महादेव का अभिषेक और पूजन करना भक्तों के लिए विशेष फलदायी रहेगा। साथ ही, इस मुहूर्त में किया गया शिव पूजन अक्षय फल की प्राप्ति कराएगा।
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सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान शिव के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें। आप अपनी श्रद्धा अनुसार निर्जला या फलाहार व्रत रख सकते हैं। दिन भर मन में 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करें और क्रोध या गलत विचारों से दूर रहें।
प्रदोष काल में दोबारा स्नान करें या हाथ-पैर धोकर साफ कपड़े पहनें। उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। शिवलिंग पर गंगाजल, कच्चा दूध, दही, शहद और घी से अभिषेक करें। इसके बाद शुद्ध जल चढ़ाएं।

भगवान शिव को बेलपत्र, शमी पत्र, धतूरा, सफेद फूल और अक्षत अर्पित करें। बुधवार का प्रदोष होने के कारण गणेश जी को दूर्वा चढ़ाना भी शुभ रहता है। प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। इसके बाद धूप-दीप जलाकर भगवान शिव की आरती करें।
पूजा के बाद शिव जी को भोग लगाएं और परिवार में प्रसाद बांटकर अपना व्रत खोलें। इस विधि से की गई पूजा भक्त के जीवन में स्थिरता, संपन्नता, शांति और खुशहाली लेकर आती है।
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