नवरात्रि के आखिरी दो दिनों यानी कि दुर्गाष्टमी और महानवमी के दिन हवन करना बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह नौ दिनों की पूजा और साधना को पूरा करता है और देवी दुर्गा को धन्यवाद करने का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हवन की पवित्र अग्नि देवताओं का मुख होती है जिसके माध्यम से हवन सामग्री की आहुतियां सीधे मां दुर्गा तक पहुंचती है जिससे वह प्रसन्न होती हैं।
नवरात्रि के दौरान किए गए हवन से निकलने वाला धुआं घर के वातावरण को शुद्ध करता है, सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं को खत्म करता है और पूरे परिवार के लिए सुख, शांति और समृद्धि लाता है। अष्टमी और नवमी के दिन हवन करने से नौ दिनों के व्रत और पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि अष्टमी एवं नवमी पर हवन करने का क्या है शुभ मुहूर्त।
नवरात्रि हवन के लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं बल्कि थोड़ी सी सामग्री की आवश्यकता होगी क्योंकि यह हवन मुख्य रूप से सभी लोग अपने घरों में खुद ही करते हैं न कि सामाजिक तौर पर किसी पंडित द्वारा करवाया जाता है।
अन्य जरूरी चीजें: गंगाजल, रोली या सिंदूर और पान के पत्ते आरती एवं संकल्प के लिए।
दुर्गाष्टमी पर किया गया हवन मां दुर्गा के अष्टम स्वरूप यानी कि मां महागौरी को समर्पित होता है। इस साल दुर्गाष्टमी 30 सितंबर को पड़ रही है। ऐसे में अष्टमी के दिन हवन का शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 12 मिनट से दोपहर 1 बजकर 40 मिनट तक का है।
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महानवमी के दिन हवन के दौरान दी जाने वाली आहुति मां के नवम स्वरूप मां सिद्धिदात्री को अर्पित होती है। ऐसे में 1 अक्टूबर यानी कि महानवमी के दिन हवन का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 14 मिनट से शाम 6 बजकर 7 मिनट तक रहने वाला है।
नवरात्रि हवन को नौ दिनों की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है क्योंकि इसके बिना साधना अधूरी रहती है। हवन में विभिन्न देवताओं के मंत्रों के साथ आहुतियां दी जाती हैं जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और माता रानी की कृपा मिलती है।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा, यह मां दुर्गा का सबसे शक्तिशाली मंत्र माना जाता है। इस मंत्र से हवन करने पर माता के नौ स्वरूपों का एक साथ आशीर्वाद मिलता है। यह मंत्र जीवन की सभी बाधाओं, भय और नकारात्मक शक्तियों को खत्म करता है, और साधक को शक्ति, बुद्धि और विजय प्रदान करता है। इसे कम से कम 108 बार जपने या आहुति देने का विधान है।
ॐ दुं दुर्गायै नमः स्वाहा, यह मां दुर्गा का मूल मंत्र है, जो देवी को सीधा समर्पित है। इस मंत्र से आहुति देने पर मनोकामनाएं पूरी होती हैं, घर में सुख-समृद्धि आती है, और माँ दुर्गा सभी कष्टों और संकटों से रक्षा करती हैं। यह मंत्र विशेष रूप से घर की शुद्धि के लिए सहायक है।
ॐ गणेशाय नमः, ॐ नवग्रहाय नमः स्वाहा:, ॐ ब्रह्माय नमः स्वाहा, ॐ विष्णुवे नमः स्वाहा, ॐ शिवाय नमः स्वाहा:, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वाहा। इन मंत्रों के जाप से धन और आरोग्य का घर में वास होता है और हवन को पूर्णता मिलती है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा। हवन के अंत में पूर्णाहुति मंत्र बोलकर नारियल और हवन सामग्री की आहुति दी जाती है। यह मंत्र यह दर्शाता है कि आपने अपनी पूरी भक्ति और समर्पण देवी को दे दिया है। इसे बोलने से हवन का पूरा फल मिलता है और पूजा में हुई अनजाने में हुई भूल-चूक के लिए देवी से क्षमा मांगी जाती है।
नवरात्रि हवन में पूर्णाहुति एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अंतिम चरण होता है। यह हवन को पूरा करने का प्रतीक है और इसमें भक्त मां दुर्गा से जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं और उनसे अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।
पहले से चल रहे हवन में जब सभी मंत्रों की आहुतियां पूरी हो जाएं तो पूर्णाहुति की तैयारी करें। एक सूखा नारियल लें और उस पर कलावा लपेट दें। नारियल के ऊपरी सिरे को थोड़ा काट लें और उसके अंदर घी, थोड़ी सी हवन सामग्री, पान का पत्ता, सुपारी, लौंग, इलायची, जायफल और थोड़ा सा प्रसाद (जैसे हलवा-पूरी) रखें।
अगर नारियल नहीं है, तो आप एक पान के पत्ते पर भी ये सारी सामग्री रखकर पूर्णाहुति दे सकते हैं। परिवार के सभी सदस्य हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं। तैयार किए हुए नारियल को दोनों हाथों में लें। अब पूर्णाहुति मंत्र बोलते हुए इसे हवन कुंड की प्रज्वलित अग्नि में पूरी श्रद्धा के साथ अर्पित कर दें। पूर्णाहुति का एक प्रचलित मंत्र यह है: 'ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ स्वाहा॥'
यह आहुति हवन की समाप्ति का संकेत देती है। पूर्णाहुति के बाद मां दुर्गा की आरती करें। आरती के बाद, हाथ जोड़कर देवी मां से हवन और पूजा में हुई किसी भी भूल या कमी के लिए क्षमा मांगें। उनसे प्रार्थना करें कि वे आपकी भक्ति को स्वीकार करें और आपकी मनोकामनाएं पूर्ण करें। अंत में, सभी को प्रसाद वितरित करें और कन्या पूजन के बाद ही अपना व्रत खोलें।
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