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Dev Uthani Ekadashi Paran Muhurat 2025: देव उठनी एकादशी पर रख रही हैं भगवान विष्‍णु का व्रत, तो पारण करने की सही विधि और समय जान लीजिए

देवउठनी एकादशी पर अगर आप भी भगवान विष्‍णु का व्रत रख रही हैं, तो उसके पारण करने का सही समय और विधि जरूर जान लें। यहां लेख में पंडित सौरभ त्रिपाठी बता रहे हैं कि देवउठनी एकादशी का व्रत कैसे खोला जाता है। 
Editorial
Updated:- 2025-11-01, 11:15 IST

देवउठनी एकादशी व्रत पारण का शुभ समय और सही विधि

देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र तिथि मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के योग निद्रा से जागते हैं और चातुर्मास का समापन होता है। माना जाता है कि इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत करना शुभ रहता है।

देव उठानी एकादशी की तिथि और मुहूर्त

* एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर , सुबह 9:13 बजे
* एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवंबर 2025, सुबह 7:33 बजे
* व्रत पारण (व्रत खोलने का समय): 2 नवंबर , दोपहर 1:11 बजे से 3:23 बजे तक

देवउठनी एकादशी व्रत की विधि

1. दशमी तिथि की तैयारी:
व्रत से एक दिन पहले (दशमी) तामसिक भोजन से परहेज करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

2. एकादशी के दिन:

- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की पीली वस्त्रों, तुलसी पत्तों, धूप-दीप, चावल, पंचामृत और फूलों से पूजा करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- तुलसी विवाह की कथा या भगवान विष्णु के जागरण की कथा का श्रवण करें।
- पूरे दिन सात्विक आहार लें या निर्जल उपवास रखें।

3. पारण विधि (व्रत खोलने की प्रक्रिया):
- द्वादशी तिथि में पारण करें।
- सबसे पहले स्नान करें और भगवान विष्णु को प्रणाम कर तुलसी पत्र अर्पित करें।
- विष्णु भगवान को नैवेद्य चढ़ाने के बाद फलाहार या सात्विक भोजन से व्रत खोलें।

देव उठानी एकादशी का धार्मिक महत्व

* चार महीनों की विष्णु योगनिद्रा (चातुर्मास) इसी दिन समाप्त होती है।
* इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी देवी का विवाह भी मनाया जाता है, जिसे तुलसी विवाह कहा जाता है।
* मान्यता है कि जो भक्त इस व्रत को श्रद्धा से करते हैं, उन्हें समृद्धि, सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
* इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है।
विशेष सुझाव
* व्रत के दौरान क्रोध, अपशब्द और नकारात्मक विचारों से बचें।
* व्रत का पालन केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक संयम से करें।
* पारण का सही समय अत्यंत महत्वपूर्ण है — समय से पहले या देर से पारण करने से व्रत का फल घट सकता है।

आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। यह दिन हमें आत्मनियंत्रण, भक्ति और कर्तव्य की याद दिलाता है। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन सच्चे मन से उपवास और पूजा करें।

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