
हिंदू पंचांग जिसे पंचांग कहा जाता है पांच मुख्य अंगों पर आधारित एक पारंपरिक हिंदू कैलेंडर है। यह न केवल समय और तिथियों को दर्शाता है बल्कि शुभ-अशुभ मुहूर्त, त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों के सही समय की जानकारी भी देता है। पंचांग मुख्य रूप से सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित होता है। इसे तैयार करने के लिए गणित ज्योतिष का उपयोग किया जाता है जिसमें ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों की चाल और सूर्योदय-सूर्यास्त के समय की सटीक गणना की जाती है ताकि एक कैलेंडर वर्ष के लिए सभी ज्योतिषीय समयों को निर्धारित किया जा सके। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि किन 5 अंगों से मिलकर बना है पंचांग और कैसा पड़ता है इसका हमारे शरीर या जीवन पर प्रभाव?
पंचांग का नाम ही पांच अंगों से बना है: पंच (पांच) + अंग (भाग)। ये 5 अंग किसी व्यक्ति के शरीर के 5 महत्वपूर्ण अंगों से जुड़े हुए माने जाते हैं जो जीवन की समग्रता को दर्शाते हैं।

तिथि: पंचांग का सबसे महत्वपूर्ण अंग है जो चंद्रमा की कलाओं पर आधारित होती है। यह सूर्य और चंद्रमा के बीच की दूरी को दर्शाती है। जैसे मुख अभिव्यक्ति का केंद्र है तिथि दिन के महत्व और धार्मिक आयोजनों की अभिव्यक्ति करती है। एक माह में 30 तिथियां होती हैं जिन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में बांटा जाता है।
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वार: वार का अर्थ है दिन जो सप्ताह के सात दिनों को दर्शाता है। यह ज्योतिष में सात ग्रहों (सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि) पर आधारित है। वार को हाथों से जोड़ा जाता है क्योंकि हाथ कर्म (कार्य) और क्रियाशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वार बताता है कि कौन सा कार्य किस दिन शुरू करना शुभ रहेगा।
नक्षत्र: नक्षत्र का तात्पर्य चांद की यात्रा से है। ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र होते हैं जिनमें चंद्रमा लगभग 27 दिनों में एक चक्र पूरा करता है। नक्षत्रों को पैर से जोड़ा जाता है क्योंकि पैर गति और यात्रा के प्रतीक हैं। नक्षत्र किसी भी कार्य के लिए व्यक्ति की मानसिक स्थिरता और ऊर्जा को दर्शाते हैं।
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योग: योग पंचांग में सूर्य और चंद्रमा के कोणीय संबंध को दर्शाता है। ज्योतिष में कुल 27 योग होते हैं। यह धड़ या कमर से जुड़ा है, जो शरीर के मध्य भाग को संतुलित रखता है। योग दिन की प्रकृति यानी वह दिन कितना शुभ या अशुभ है, इसे निर्धारित करता है।

करण: करण तिथि का आधा भाग होता है। प्रत्येक तिथि में दो करण होते हैं, इस प्रकार कुल 11 करण होते हैं। इसे हृदय से जोड़ा गया है, क्योंकि यह अत्यंत सूक्ष्म समय की गणना करके शुभ-अशुभ के निर्णय में सहायता करता है, ठीक जैसे हृदय शरीर का केंद्रीय निर्णयकर्ता होता है।
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