
दिवाली के बाद छठ पूजा कर त्योहार बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष 25 से 28 अक्टूबर तक यह पर्व मनाया जाएगा। इस त्योहार में सूर्य को अर्घ्य देने से लेकर उपवास रखने तक का बड़ा महत्व बताया गया है। इस त्योहार को बहुत सारे विधि विधान के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार से जुड़ी बहुत सारी परंपराएं भी हैं। छठ पूजा में सबसे ज्यादा बांस के सूप को महत्व दिया गया है।
छठ पूजा में बांस के सूप का ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है? इस बारे में हमारी बात बिहार स्थित गया के पंडित एवं ज्योतिषाचार्य शुभम मिश्रा से हुई। पंडित जी कहते हैं, "बांस को बहुत ज्यादा पवित्र माना जाता है। इस त्योहार को प्रकृति से जोड़ा जाता है और बांस प्राकृतिक और शुद्ध होता है, इसलिए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सूप का ही इस्तेमाल किया जाता है।"
केवल बांस का सूप ही नहीं बल्कि बांस की टोकरी भी छठ पूजा में इस्तेमाल होता है। इस तरह से देखा जाए तो बांस को छठ पूजा में बहुत अधिक महत्व दिया गया है। इस विषय में पंडित जी कहते हैं, " पहले के समय में लोगों के पास बहुत अधिक बर्तन नहीं होते थे। भगवान को भोग लगाने के लिए सबसे शुद्ध बर्तन चाहिए होता है, इसलिए पहले के लोग बांस से ही पूजा के लिए बर्तन तैयार कर लेते थे। सूप और टोकरी में एक साथ बहुत सारा सामान रखा जा सकता है, इसलिए छठ पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।"
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इसके अलावा बांस के सूप से जुड़ी एक मान्यता और भी है। दरअसल, बांस बहुत तेजी से बढ़ने वाला पेड़ होता है, सूर्य का तेज भी सबसे ज्यादा होता है, इसलिए छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देते वक्त बांस के सूप का प्रयोग किया जाता है। सूप में ही ठेकुआ, केला, नारियल, गन्ना, सिंघाड़ा, नींबू, मिठाई और फल आदि प्रसाद रखकर सूर्य देव को अर्पित करते हैं।
बांस एक अखंडता और सामूहिकता का प्रतीक भी है, क्योंकि यह खोखला होते हुए भी अत्यंत मजबूत होता है। यह विनम्रता, सहनशीलता और स्थायित्व का संदेश देता है। छठ पूजा का मूल भाव भी यही है- त्याग, श्रद्धा और संयम के माध्यम से प्रकृति और ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करना। सूर्य अर्घ्य के बाद यह सूप घर के मुख्य द्वार या छत पर टांग दिया जाता है। ऐसा करने के पीछे यह मान्यता है कि यह घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाता है। कुछ क्षेत्रों में माना जाता है कि पूजा के बाद सूप को घर में ऊँचाई पर रखने से सूर्य देव की कृपा बनी रहती है और घर में किसी प्रकार की नकारात्मकता प्रवेश नहीं करती।
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छठ पूजा के माध्यम से हम न केवल सूर्य देव की उपासना करते हैं, बल्कि यह भी सीखते हैं कि प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। यही कारण है कि आज भी बांस का सूप छठ पूजा की परंपरा और आस्था का अभिन्न प्रतीक बना हुआ है। यह लेख यदि आपको पसंद आया हो, तो इसे शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल्स पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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