
छठ पूजा, सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का महापर्व है जो शुद्धता, पवित्रता और कठोर नियमों के पालन के लिए जाना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत में व्रती और उनके परिवार को अत्यंत संयमित जीवन जीना होता है। यह व्रत संतान के भाग्योदय, परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना के लिए रखा जाता है। इस दौरान छोटी-सी गलती भी व्रत के पुण्य को कम कर सकती है, इसलिए हर नियम का ध्यान रखना अनिवार्य है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिहचारी राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं छठ पूजा के नियमों के बारे में।
छठ पूजा में सबसे जरूरी है पवित्रता। व्रत शुरू होने के पहले दिन (नहाय-खाय) से ही घर और पूजा का स्थान पूरी तरह साफ-सुथरा होना चाहिए। व्रती और परिवार के सदस्य को गंदे कपड़े नहीं पहनने चाहिए और बिना हाथ धोए प्रसाद या पूजा की सामग्री को नहीं छूना चाहिए। थोड़ी सी भी गंदगी या अशुद्धता व्रत को खंडित कर सकती है।

व्रत के चार दिनों तक घर के सभी सदस्यों को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। लहसुन-प्याज, मांस, मछली और शराब का सेवन पूरी तरह वर्जित है। व्रत का प्रसाद बनाते समय भी व्रती को कुछ भी खाना या चखना नहीं चाहिए क्योंकि इससे प्रसाद जूठा हो जाता है।
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भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय चांदी, स्टील, कांच या प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अर्घ्य हमेशा तांबे के लोटे से देना सर्वोत्तम माना जाता है। इसके अलावा, पूजा में इस्तेमाल होने वाली टोकरी यानी कि सूप बांस की ही होनी चाहिए और वह कटी-फटी या पुरानी नहीं होनी चाहिए।
व्रती महिलाओं को नहाय-खाय से लेकर अंतिम दिन तक पलंग या गद्देदार बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए। यह एक साधना का व्रत है, इसलिए व्रती को जमीन पर आसन या कंबल बिछाकर ही विश्राम करना चाहिए। यह व्रत मानसिक शांति और संयम का प्रतीक है। इसलिए व्रत के दौरान व्रती या परिवार के किसी भी सदस्य को किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए, न ही किसी से झगड़ा करना चाहिए। अपशब्दों या कड़वे शब्दों का प्रयोग करना भी इस दौरान सख्त मना है।

खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद से लेकर अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक, व्रती को करीब 36 घंटों का निर्जला व्रत रखना होता है। इस नियम का पालन पूरी निष्ठा से करना चाहिए। शाम को डूबते सूर्य और अगले दिन सुबह उगते सूर्य को जल में खड़े होकर अर्घ्य देना सबसे महत्वपूर्ण नियम है। अर्घ्य में जल के साथ दूध और लाल फूल अवश्य मिलाएं।
व्रती को हर दिन नए या साफ-धुले हुए शुद्ध वस्त्र ही पहनने चाहिए। सुहागिन महिलाओं को नारंगी रंग का लंबा सिंदूर लगाना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जिस नदी, तालाब या घाट का इस्तेमाल किया जाता है, उसकी साफ-सफाई में सहयोग करना और उसे स्वच्छ रखना भी व्रत का एक जरूरी हिस्सा है।
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प्रसाद यानी कि ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि हमेशा साफ-सुथरी जगह पर नए चूल्हे या साफ किए हुए चूल्हे पर ही बनाना चाहिए और इसे बनाते समय पवित्रता का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
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