
हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि का बहुत महत्व माना जाता है, हालांकि यह एक अशुभ तिथि है लेकिन पितरों की पूजा के लिए या फिर पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म के लिए यह तिथि उत्तम मानी जाती है। पंचांग के अनुसार, साल में कुल 12 अमावस्या तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है आषाढ़ माह की अमावस्या।
अन्य अमावस्या तिथियों में से आषाढ़ माह की अमावस्या इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह अमावस्या आषाढ़ के उस महीने में आती है जब चातुर्मास शुरू हो जाता है और शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। आइये जानते हैं ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से कि आषाढ़ अमावस्या इस साल कब पड़ रही है, क्या है इस दिन पूजा से लेकर पितृ तर्पण तक का शुभ मुहूर्त, कब बन रहा है राहु काल और क्या है आषाढ़ अमावस्या का महत्व।
आषाढ़ अमावस्या तिथि का आरंभ 24 जून, मंगलवार के दिन शाम 6 बजकर 59 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 25 जून, बुधवार के दिन शाम 4 बजकर 2 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, आषाढ़ अमावस्या 25 जून को मनाई जाएगी।
आषाढ़ अमावस्या के दिन यानी कि 25 जून को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04 बजकर 05 मिनट से सुबह 04 बजकर 45 मिनट तक है। यह समय पवित्र नदी में स्नान और अमावस्या के दान के लिए शुभ है।

आषाढ़ अमावस्या के दिन सुबह 04 बजकर 53 मिनट से सुबह 05 बजकर 56 मिनट तक का समय सुबह की पूजा के लिए उत्तम है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, वृद्धि योग, वेशी योग और गुरु आदित्य योग बन रहे हैं।
सुबह 05 बजकर 25 मिनट से सुबह 10 बजकर 40 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। यूं तो अमावस्या के दिन किसी भी प्रकार के शुभ काम को करने की मनाही होती है, लेकिन इस समय में आप शुभ काम कर सकते हैं।
दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से दोपहर 03 बजकर 39 मिनट तक विजय मुहूर्त होगा। वहीं, शाम 07 बजकर 21 मिनट से शाम 07 बजकर 42 मिनट तक गोधुली मुहूर्त रहेगा। इसके अलावा, अमृत काल भी बन रहे है।

अमृत काल का समय रात 11 बजकर 34 मिनट से देर रात 01 बजकर 02 मिनट यानी कि 26 जून तक का होगा। आषाढ़ अमावस्या के दिन राहु काल का समय दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 01:43 बजे तक रहेगा।
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आषाढ़ अमावस्या के दिन पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए पवित्र नदियों में स्नान, तर्पण, पिंडदान और दान-पुण्य करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन किए गए ये कर्म पितृ दोष को शांत करते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि लाते हैं।
यह तिथि किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन हल और खेती के औजारों की पूजा की जाती है जिसे 'हलहारिणी अमावस्या' भी कहते हैं। इस दिन व्रत रखने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि भी होती है।
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