एक लड़की कई सारे सपने देखती है। जब वो बड़ी होती है तो उसकी कुछ इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और कुछ दबकर रह जाती हैं। मुझे चूंकि शुरू से घूमने का शौक रहा तो यह इच्छा हमेशा दिल में रही। ऐसा नहीं है कि मैं घूमी नहीं, लेकिन शादी के बाद सब कम और फिर बंद हो गया। यही शौक मेरी बेटी को भी है और इस साल उसने जिद्द पकड़ी थी कि वो पूरे परिवार के साथ एक वेकेशन पर जाना चाहती है। हम एक मिडिल क्लास परिवार से हैं तो मुझे पता था कि इसमें अच्छा-खासा खर्च आने वाला है।
बेटी की जिद्द के आगे किसी की नहीं चली और उसने 10-12 दिन की लंबी छुट्टी प्लान कर ली। इसी महीने की शुरुआत में हमारा गोवा-मुंबई का प्लान बना। मैं पहली बार गोवा जा रही थी और सबसे बड़ी बात यह है कि मैं हवाई जहाज में पहली बार बैठने वाली थी। यह मेरे लिए बेहद खास एहसास था।
घर की छत पर बैठे कई हवाई जहाज को जब ऊपर उड़ते देखती थी तो हमेशा छोटे बच्चों की तरह हाथ हिलाती थी। कभी सोचा नहीं था कि एक दिन खुद उसमें बैठकर सफर करूंगी। फ्लाइट में बैठने की जितनी खुशी थी उतना ही डर भी थी, क्योंकि मैंने सुना था कि कितने सिक्योरिटी चेक से गुजरने के बाद आपको आगे जाना पड़ता है। हमेशा लगता था किसी ने कुछ पूछ लिया तो कैसे जवाब दूंगी? उस हवाई जहाज में तो खिड़कियां भी नहीं खुलती फिर कैसे सांस लूंगी?
बच्चे हमेशा कहते थे हर कुछ नहीं होता। सब हो जाएगा... लेकिन पता नहीं था कि इतनी जल्दी होगा। मेरे बच्चों ने सारी तैयारी की और हम अपने सफर की ओर चल दिए।
कुछ ऐसा था मेरा सफर
मैंने पहली बार एयरपोर्ट को इतने करीब से देखा था। कितने हजारों लोग रोजाना उससे सफर करते हैं। सिक्योरिटी पर खड़े अधिकारी और बैग पकड़े एक लंबी लाइन, यह सब एकदम नया था। बेटी ने सारी बातें पहले ही समझा दी थीं। आईडी कार्ड रख लेना, गेट पर चेक होगा। बोर्डिंग पास अपने हाथ में रखना। तस्वीरें मत लेना यह भी...।
मैं बड़े-बड़े हवाई जहाज देखकर एकदम दंग थी और बच्चों की तरह बेहद खुश भी। बेटी ने हमारे लिए खास खिड़की वाली सीट बुक की थी ताकि मैं आसमान से पूरे जहान को देख सकूं। यह मेरे लिए मुश्किल था क्योंकि मुझे ऊंचाई से डर लगता है।
हवाई जहाज ने जैसे ही उड़ान भरी तो मेरे कानों में दर्द होने लगा। बेटी बता चुकी थी कि हवा के दबाव से दर्द होगा लेकिन फिर ठीक हो जाएगा। उसने पहले ही ईयर फोन दे दिए थे, ताकि कुछ देर के लिए मुझे आराम मिले।
2.5 घंटे के सफर के बाद मैंने गोवा के एयरपोर्ट पर उतरी पता ही नहीं लगा कि कब हम पहुंच गए। पूरा परिवार रास्ते भर बीच में निकले शहरों को गिन रहा था। गोवा पहुंचने के बाद हमारा 10 दिन का वेकेशन शुरू हुआ और वापसी में भी फ्लाइट से ही आना था।
जब वापस आते हुए फ्लाइट में बैठी तो मेरे अंदर भी कॉन्फिडेंस आ चुका था। अब सारे सिक्योरिटी चेक पता थे। कैसे और कहां जाना है सब पता लग गया था। दूसरी बार जब खिड़की के पास बैठी तो डर नहीं रही थी। खिड़की से बाहर झांक रही थी और बादलों को बहुत करीब से निहार रही थी।
अपने इस फ्लाइट एक्सपीरियंस के दौरान मैंने ये बातें सीखीं-
- आपकी आईडी और बोर्डिंग पास हमेशा हाथ में होने चाहिए क्योंकि एयरपोर्ट में एंट्री करने से लेकर हवाई जहाज में बैठने तक के दौरान आपको यह दिखाने की जरूरत पड़ती है।
- एयरपोर्ट पर अपनी टाइमिंग से कम से कम डेढ़ घंटा पहले पहुंच जाना चाहिए, क्योंकि चेक इन और एंट्री में बहुत टाइम लगता है।
- अपने बैग्स को लाइट ही पैक करना चाहिए। हमने इस ट्रिप में यह गलती की कि हमारे पास एक बड़ा बैग था, जिसके साथ ट्रैवल करना मुश्किल हो रहा था।फ्लाइट में हवा के दबाव से कान बंद होते हैं, इसलिए आप भी हेडफोन या ईयरफोन जरूर साथ ले जाएं। इसे लगाने से आपको दबाव कम महसूस होता है और दर्द भी कम होगा।
मैं अब अपने बच्चों से कहती हूं कि फ्लाइट में जाना तो बहुत आसान है। ऐसा लगता है कि मुझे आदत हो गई है और अब मैं कहीं भी आ-जा सकती हूं। अब ऊपर हवाई जहाज को देखकर हाथ नहीं हिलाती। बस खुशी होती है और गर्व होता है कि मैंने अपना पहला फ्लाइट का एक्सपीरियंस भी कर लिया है।
लेखक- सुनीता बंगवाल
(देहरादून की रहने वाली सुनीता बंगवाल एक गृहणी हैं। उन्हें घूमने-फिरने और फिल्में देखने का बहुत शौक है। वह घर पर खाली नहीं बैठ सकती हैं, इसलिए अक्सर कोई नई स्किल सीखती रहती हैं।)
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