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Jain Symbols: जैन धर्म के इन 8 प्रतीक चिह्नों के बारे में नहीं जानते होंगे आप

<strong>Jain Symbols:</strong> आज हम आपको जैन धर्म के बारे में बताने जा रहे हैं। जैन धर्म से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बेहद रोचक हैं। माना जाता है कि जैन धर्म में 24 तीर्थंकर होते हैं। इस धर्म के सभी दीक्षाई अत्यंत कठिन नियमों का पालन करते हैं। हमारे ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स का कहना है कि जैन धर्म की स्थापना महावीर भगवान ने की थी। जैन धर्म की दो शाखाएं हैं जिसके अनुसार एक शाखा का नाम दिगंबर है तो दूसरी शाखा का नाम श्वेतांबर है। यूं तो जैन धर्म को कुछ पंक्तियों में समेटना मुश्किल है लेकिन आज हम आपको जैन धर्म के दिगंबर जैनियों से जुड़े कुछ प्रतीक चिह्नों के बारे में बताने जा रहे हैं।&nbsp;

Gaveshna Sharma

Editorial

Updated:- 02 Dec 2022, 16:12 IST

परसोल/छत्र

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जैन तीर्थंकरों के वक्ष के मध्य में श्रीवत्स होता है। वहीं, सिर के ऊपर तीन छत्र होते हैं। ये तीन छत्र भगवान महावीर के तीनों लोकों के स्वामी होने के भाव को प्रदर्शित करते हैं। 

ध्वजा

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जैन धर्म की ध्वजा अत्यंत निराली है। इस ध्वजा में पांच रंग होते हैं। जो कुछ इस प्रकार से हैं: लाल, पीला,सफेद, हरा और नीला। जैन ध्वजा में स्वास्तिक (स्वास्तिक के लाभ) का चिह्न भी अंकित है। 

कलश

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जैन धर्म में भी हिन्दू धर्म की तरह कलश होता है। कलश (कलश पर नारियल रखने का महत्व) को शुभता का प्रतीक माना जाता है। जैन धर्म में भी कलश पर स्वास्तिक का चिह्न अनिवार्य रूप से किसी भी पूजा या शुभ कार्य के लिए बनाया जाता है। 

चवर

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चवर को अत्यंत पवित्र माना जाता है। चवर का प्रयोग देवमूर्तियों के सिर पर, पीछे या बगल से डुलाया जाता है। इसके पीछे का कारण माना जाता है कि ऐसा करने से रोगों का नाश होता है।  

 

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आसन

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यूं तो जैन धर्म में गुरुओं का आसन पर बैठना वर्जित होता है लेकिन आसन के विपरीत महाराज जी चटाई पर विराजमान होते हैं। ये चटाई फूफ यानी कि पुराली से बनी होती है।  

मोरपंख की पिच्छी

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मोरपंख की पिच्छी का प्रयोग सभी जैन गुरुओं द्वारा किया जाता है। जैन धर्म में जीव को आहात करना सबसे बड़ा पाप माना गया है। ऐसे में मोरपंख की पिच्छी का इस्तेमा जीव को हटाने के लिए किया जाता है।  

 

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पूजा पात्र

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जैन धर्म का पूजा पात्र कुछ कुछ हिन्दू धर्म  से मिलता जुलता है। क्योंकि दोनों ही धर्मों के पूजा पात्र में आचमनी, लुटिया, एक छोटा ग्लास, एक अन्य ग्लास और, एवं कटोरी का इस्तेमाल होता है। 

स्वास्तिक

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जैन धर्म में स्वास्तिक का अत्यंत महत्व है। स्वास्तिक को बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है। इसी कारण से जैन धर्म से जुड़े हर प्रतीक चिह्न में कहीं न कहीं स्वास्तिक अंकित होता है।