रासलीला से लेकर रामलीला तक, जानें भारत के इन पारंपरिक नाटकों के बारे में

जब इंटरनेट, टीवी और मोबाइल तक हमारी पहुंच नहीं थी, तो लोग सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर पारंपरिक नाटक या लोकनाट्य किया करते थे। इसे गांव का रंगमंच भी कहा जाता है। इस तरह के नाटक सामाजिक और सांस्कृतिक घारणाओं पर आधारित होते थे। एक दौर में लोकनाट्य काफी मशहूर हुआ करते थे। इसमें नाटक के अलावा डांस भी दिखाया जाता है। भारत में लोकनाट्य का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है। पुराने समय में इन पारंपरिक नाटकों को विशेष कार्यक्रम पर प्रस्तुत किया जाता था। इसमें लोगों की जीवन शैली से लेकर पौराणिक कथाएं होती थीं। इंटरनेट के इस दौर में भारत की इस सांस्कृतिक विरासत को लोग भूलते जा रहे हैं। आइए जानते हैं कुछ मशहूर लोकनाट्य/रंगमंचों के बारे में- <div>&nbsp;</div>

Smriti Kiran

Editorial

Updated:- 15 Apr 2022, 14:04 IST

करियाला

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करियाला हिमाचल प्रदेश का एक पारंपरिक लोकप्रिय लोकनाट्य है, जो मुख्यत: दशहरा के आसपास अक्टूबर-नवंबर में प्रस्तुत किया जाता है। इसे आमतौर पर गांव के लोगों की दैनिक गतिविधियों पर बनाया जाता है। इस नाटक में डांस और हास्य आधारित कृत्यों को भी शामिल किया जाता है। यह लोकनाट्य खासकर हिमाचल प्रदेश के शिमला, सोलन और सिमोर में मशहूर है। 

भांड पाथेर

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कश्मीर का सदियों पुराना पारंपरिक रंगमंच, भांड पाथेर डांस, संगीत और एक्टिंग का एक अनूठा संगम है। इस लोक नाटक स्थानीय पौराणिक कथाओं को प्रदर्शित किया जाता है। इसमें कलाकार ढोल और नगाड़ा जैसे वाद्ययंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं, जिसे छोक कहा जाता है। 

 

कूडियाट्टम

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भारत के सबसे पुराने पारंपरिक रंगमंचों में से एक है कूडियाट्टम। यह केरल की संस्कृति को प्रदर्शित करने वाला एक प्राचीन नाटक फॉर्म है, जिसे 2001 में आधिकारिक तौर पर यूनेस्को द्वारा विरासत की कृति के रूप में मान्यता दी गई है। 

नौटंकी

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नौटंकी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध पारंपरिक लोकनाट्य है। इसे लगभग 400 साल पुराना माना जाता है। यह रंगमंच लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। 

 

इस तरह के लोकनाट्यों में कलाकारों के जीवंत हावभाव को देखा जा सकता है। साथ ही भारत की इस विरासत को संजोना हमारा कर्तव्य है, इसलिए इसे आदर व सम्मान के साथ अपनाएं। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे लाइक और शेयर करें। ऐसे अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें herzindagi.com के साथ

रमन

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रमन एक धार्मिक लोकनाट्य है, जो उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में काफी मशहूर है। हर साल अप्रैल महीने के अंत में, भूमियाल देवता के सम्मान के रूप में यह लोकनाट्य प्रस्तुत किया जाता है। इस नाट्य फॉर्म में महाकाव्य रामायण और विभिन्न पौराणिक कथाएं शामिल होती हैं। साथ ही इसमें स्थानीय गीत और मुखोटा नृत्य भी किया जाता है। 

 

तमाशा

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तमाशा, महाराष्ट्र का एक पारंपरिक लोकनाट्य है, जो 18वीं और 19वीं शताब्दी के समय मराठा शासकों के दरबार में फला-फूला। इस रंगमंच में किरदार मुख्यत महिलाएं निभाती हैं, जबकि भारत के सभी पारंपरिक नाटकों में मुख्य रूप से पुरुष भाग लेते हैं। इस लोकनाट्य में नाटक के अलावा, डांस, शास्त्रीय संगीत, लावणी नृत्य भी होते हैं। यह लोकनाट्य अपने आप में एक खूबसूरत कला है।

तेरुक्कुट्टू

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तमिलनाडु के गांवों में मशहूर तेरुक्कुट्टू एक लोकप्रिय रंगमंच है, जिसका प्रदर्शन वर्षा की देवी मरिअम्मा को खुश करने के लिए जाता है। यह मनोरंजन के अलावा सामाजिक निर्देश पर अधारित है। इस नाट्य में शास्त्रीय संस्कृत का बहुत महत्व है। तेरुकुट्टु पौराणिक कहानियों और महाकाव्यों का संगम है। इस लोकनाट्य में पुरुषों के साथ महिलाएं भी भाग लेती हैं। इसमें किरदार रंगीन कपड़े और चमकदार मेकअप करते हैं। 

जात्रा

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जात्रा, पूर्वी भारत का एक धार्मिक लोकनाट्य है, जो बिहार और ओडिशा में काफी मशहूर है। इस लोकनाट्य की शुरूआत 15 वीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन के दौरान हुई। इसे कृष्ण जात्रा के रूप में भी जाना जाता है। इस लोकनाट्य में प्रेम कहानियां और सामाजिक-राजनीतिक विषय शामिल होते हैं। इसमें संगीत के साथ एक्शन रूपी संवा्द भी होते हैं। ओडिशा में जात्रा लोकनाट्य मुख्य रूप से संगीत के साथ प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि, इसे पारंपरिक और ग्रामीण शैली के साथ भी शुरू किया जाता है।

रामलीला

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रामलीला काफी मशहूर लोकनाट्य है, जो महाकाव्य रामायण पर मुख्य रूप से अधारित होता है। इसमें रामायण की कहानी होती है और साथ में कई स्लोगन का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसे दशहरा के समय प्रस्तुत किया जाता है। सभी उम्र के लोगों के लिए यह मनोरंजन का एक साधन है। यह भारत के कई राज्यों में मशहूर है। 

रासलीला

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रासलीला भगवान कृष्ण के बालक रूप और युवा रूप का वर्णन है, जिसे नाटक के रूप में दिखाया जाता है। इसे जन्माष्टमी के मौके पर प्रस्तुत किया जाता है। श्रीकृष्ण की रासलीला का आनन्द मथुरा, वृंदावन ही नहीं भारत के कई राज्यों में मशहूर है। जन्माष्टमी के समय इस लोकनाट्य को विभिन्न रंग-रूप में भारत के कई राज्यों में प्रदर्शित किया जाता है। 

दशावतार

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दशावतार गोवा के कोंकण तट के किसानों के लिए एक मशहूर लोकनाट्य है। इसमें कलाकार विष्णु के दस अवतारों, जैसे- मत्‍स्‍य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्‍ण या बलराम, बुद्ध व कल्कि का रोल करते हैं। यह पारंपरिक रूप से वार्षिक उत्सव के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। कलाकार इसमें पारंपरिक मेकअप के अलावा लकड़ी और पेपर के मुखौटे भी पहनते हैं। इस नाटक में हारमोनियम, तबला और झांझ का इस्तेमाल किया जाता है। 

 

स्वांग

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स्वांग, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में एक लोकप्रिय लोकनाट्य के रूप में मशहूर है। इसमें संगीत,  धार्मिक कहानियों और लोक कथाओं को एक दर्जन या उससे अधिक कलाकारों के समूह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। स्वांग की दो महत्वपूर्ण शैलियां हैं - एक रोहतक, जो बंगरू भाषा से संबंधित है और दूसरी हाथरस, जो ब्रजभाषा भाषा से संबंधित है।