India's Black Tiger: जासूसी की दुनिया में कई कहानियां ऐसी हैं, जो इतिहास की दरारों से फिसल कर गायब हो जाती हैं। ऐसी कहानियां और उनके किरदार परछाइयों और खामोशियों में खो जाती हैं। लेकिन जब उनकी कहानी सामने आती है, तो रूह कांप जाती है। देश की रक्षा के लिए वे न केवल अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं बल्कि अपनी पहचान को भी बदल देते हैं। अगर दुश्मन देश भी उन्हें पकड़ या अपने कब्जे में ले ले, कितने भी सितम डाले। इसके बाद भी उनके होठ सिले रहे। भूख, प्यास और निवालों की तड़प भी उनकी हिम्मत को हिला नहीं पाते हैं। देश की सेवा में मर-मिटे लेकिन तिरंगे की आन-बान और शान में कोई कमी नहीं आने दी। हम बात करें वीर जवान रविन्द्र कौशिश की, उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी पहचान बदलकर पाकिस्तान आर्मी में शामिल हुए और लंबे समय तक किसी को भी भनक नहीं लगने दी। साथ ही हर एक जरूरी जानकारी भारत को दी। लेकिन रॉ की एक गलती की वजह से उन्हें घुटने टेकने पड़ गए थे। भारत रक्षा पर्व की इस सीरीज में रविन्द्र कौशिश की अनकही कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं।
अगर कभी कोई ऐसा व्यक्ति था, जो किसी दूसरे देश के नाम से पुकारे जाने के बावजूद एक राष्ट्र के लिए सांस ली, तो वह रविन्द्र कौशिक थे।
भारत देश की रक्षा के लिए रविन्द्र कौशिक ने अपनी जान हथेली में लेकर दुश्मन देश की सेना में भर्ती होना। यह एक बड़ी बात है, जब आप उस देश में खुफिया एजेंट की तरह काम करते हैं और जरूरी बात निकालकर अपने देश को देते हैं। बता दें कि भारत के खुफिया हलकों और बाद में लोक कथाओं में रविंद्र कौशिक को ब्लैक टाइगर के नाम से जाना जाता है।
1970-80 के दशक में, जब भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे और दुश्मनी की कड़वाहट बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। दोनों देशों को लगता था कि एक-दूसरे से खतरा है, इसलिए जासूसी का खेल बहुत बढ़ गया था। साल 1962 और 1965 की जंग के बाद भारत को एक खुफिया एजेंसी बनाने की जरूरत महसूस हुई और इसी क्रम में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) की नींव रखी गई।
इस दौरान भारत की खुफिया एजेंसी 'रॉ' को ऐसे लोगों की तलाश थी जो पाकिस्तान में जाकर आसानी से घुल-मिल सकें। रविंद्र कौशिक राजस्थान के श्रीगंगानगर के एक साधारण परिवार से थे। कॉलेज में उनकी सबसे बड़ी खासियत थी, किसी भी किरदार को हूबहू अपना लेना। वे अलग-अलग आवाजों में बोल सकते थे और कमाल का अभिनय करते थे। उनकी इसी प्रतिभा ने रॉ का ध्यान खींचा।
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साल 1970 के दशक के मध्य में, रविंद्र कौशिक को उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा रोल मिला,जिसमें पाकिस्तान जाकर भारत के लिए जासूसी करना। इसके लिए उन्हें अपना नाम धर्म और पहचान सब कुछ बदलना पड़ा। रविंद्र ने खतना करवाया, इस्लाम धर्म की पढ़ाई की और अपनी हर आदत को बदल दिया। वे रविंद्र कौशिक से नबी अहमद शाकिर बन गए।
नबी अहमद शाकिर ने कराची यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की और बाद में पाकिस्तानी सेना में भर्ती हो गए। वे अपनी काबिलियत से सेना में मेजर के पद तक पहुंच गए। उन्होंने शादी की और एक बच्चे के पिता भी बने। लेकिन यह सब उनकी असल जिंदगी नहीं थी। मेजर नबी अहमद शाकिर बनकर रविंद्र ने भारत के लिए बहुत अहम जानकारियां भेजीं। उनकी रिपोर्ट इतनी भरोसेमंद होती थी कि सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंचती थी। उन्हीं जानकारियों की वजह से भारत को पाकिस्तान की सैन्य योजनाओं का पता चलता था और कई खतरे टल गए। उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें 'ब्लैक टाइगर' का कोडनेम दिया गया।
साल 1983 में रॉ की एक गलती ने ब्लैक टाइगर की जिंदगी बदल दी। रॉ ने उनसे मिलने के लिए एक और एजेंट इनाम मसीहा को भेजा। उसे पाकिस्तान ने पकड़ लिया। पूछताछ में उसने 'ब्लैक टाइगर' की पहचान बता दी। इस एक गलती से रविंद्र पकड़े गए। उन्हें साल 1985 में मौत की सजा सुनाई गई, जो बाद में उम्रकैद में बदल गई। रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तान की जेलों में 16 साल बिताए और 2001 में उनकी मौत हो गई।
(लेखक- लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम, पीएचडी)
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