हमेशा इतिहास का मतलबा विजय प्राप्त करना नहीं होता। कभी-कभी कुछ लोग, कुछ पल और कुछ फैसले ऐसे होते हैं जो अलग पहचान बना जाते हैं। ऐसा ही कुछ जून 2020 में हुआ था, जब लद्दाख की गलवान घाटी में भारत ने चीन को यह दिखा दिया कि हमारी शांति को भूल समझने की गलती न करें। निहत्थे होकर भी देश के एक सिपाही ने इस तरह लड़ाई लड़ी, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह कहानी सिर्फ एक सैन्य अधिकारी की नहीं है, बल्कि देश की रक्षा करने वाले उस कर्नल की है, जो हर सैनिक को प्रेरणा का कारण बनती है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको भारतीय सेना की 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर, कर्नल बी. संतोष बाबू की वीरता के बारे में बताएंगे, जिसकी शहादत ने देश को गर्वित किया।
कर्नल बाबू तेलंगाना के सूर्यापेट शहर के रहने वाले थे। बचपन से उनका स्वभाव काफी शांत था। उनके अंदर गजब की समझदारी और जिम्मेदारी थी। उन्होंने कभी अपना ध्यान भटकने नहीं दिया, क्योंकि उनका पहले से ही सपना था कि उन्हें देश की सेवा करनी है। जहां बाकी बच्चे खेल-कूद में लगे रहते, वहीं संतोष बाबू पढ़ाई और अनुशासन में आगे रहते।
साल 2004 में उनका सपना पूरा हुआ जब वे भारतीय सेना में अफसर बने। उन्हें 16 बिहार रेजिमेंट में पोस्ट मिल गई थी। यहां उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से खुद को एक ऐसे लीडर के तौर पर साबित किया, जो सैनिकों की तकलीफें समझता था और हर कदम पर उनके साथ खड़ा रहता था।
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15 जून, 2020 का वो दिन था जब, जब कर्नल बी. संतोष बाबू सैनिकों के अवैध निर्माण को हटाने के लिए पहुंचे थे। दरअसल, गलवान घाटी एक ऐसी खूबसूरत घाटी है, जिसे लेकर साल 1962 में भारत और चीन के बीच समझौता हुआ था। ऐसे समझौते के दौरान कहा गया था कि दोनों देश में से को भी हथियार लाएगा। गलवान घाटी एक खूबसूरत जगह है, जो ऊंचाई पर स्थित है। यहां से श्योक नदी, दौलत बेग ओल्डी रोड और काराकोरम पर निगरानी होती है। इसलिए यह जगह खूबसूरती के साथ-साथ रणनीतिक रूप से बहुत जरूरी है। इस क्षेत्र में अक्सर चीन कुछ न कुछ निर्माण कार्य करने लगता है, जिसकी वजह से तनाव बढ़ता है।
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उस दिन भी यही हुआ था, समझौते के अनुसार कर्नल बी. संतोष बाबू अपने साथ हथियार लेकर नहीं गए थे। निहत्थे होने के बाद भी कर्नल ने बिना डरे कहा चीनी सैनिकों से कहा- यह निर्माण कार्य आपको रोकना होगा।
जब शांति से बात नहीं बनी, तो दोनों देशों में हाथापाई शुरू हुई। कर्नल बाबू ने आवाज लगाई- 'बिहार रेजिमेंट, आगे बढ़ो!' वो इस हमले में घायल होते रहे, लेकिन पीछे नहीं हटे। उनकी बहादुरी देखकर जवानों में भी जोश भर गया था। उनकी बहादुरी ने जवानों में जोश भर दिया। बिना हथियारों के भी सभी ने पूरे जोश के साथ चीनी सैनिकों का विरोध किया। इस युद्ध में भले ही उन्होंने जान गंवा दी, लेकिन उन्हें देश ने जाना, दुनिया ने पहचाना।
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जब घर तक उनके शहीद होने की खबर पहुंची, तो आंखें नम थीं, लेकिन सीना गर्व से चौड़ा था। छोटी सी उम्र में उनकी बेटी की यह तस्वीर सभी की आंखें नम करती है। बच्ची की सलामी ने पूरे देश को भावुक कर दिया। उनके जाने के बाद उन्हें 'महा वीर चक्र' से सम्मानित भी किया गया।
(लेखक- लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम, पीएचडी)
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