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भारत के इन 10 सूर्य मंदिरों के बारे में कितना जानती हैं आप?

सूर्य का हमारे जीवन में कितना महत्व है, यह बात ग्रंथों में ही नहीं, बल्कि विज्ञान ने भी साबित की है। सूर्य यानी भगवान सूर्य भारत के नौ ग्रहों में से एक हैं, जीवन में इसके महत्व को समझते हुए ही शायद सूर्य मंदिरों का निर्माण हुआ। भारत में ऐसी कई अद्भुत जगह हैं जहां हमें प्रकृति और मानव निर्मित दुर्लभ और बेहद खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं। वहीं, ऐसे दो सबसे प्रमुख सूर्य मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर और मोढेरा सूर्य मंदिर को ही अधिकांश लोग जानते हैं। मगर आज हम आपको भारत के दस सबसे खूबसूरत और अविस्मरणीय सूर्य मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं।

Ankita Bangwal

Editorial

Updated:- 03 Jun 2021, 12:06 IST

कोर्णाक मंदिर, ओडिशा

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ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर एक विश्व धरोहर है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान के साक्षात दर्शन होते हैं। वहीं इस मंदिर में 52 टन का चुंबक लगा है, अद्वितीय मूर्तिकला और इससे जुड़ी कहानियां इस मंदिर को खास बनाती हैं। यह विशाल मंदिर एक बड़े से रथ और पत्थर के पहियों के आकार में बनाया गया है। यहां सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से टकराती है।

ओसियां का सूर्य मंदिर, राजस्थान

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कहा जाता है कि राजस्थान के ओसियां शहर की स्थापना प्रतिहार वंश के राजपूत राजा राजपूत उत्तपलीदोव ने की थी। ओसियां को राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है। इस मंदिर में हालांकि कि भगवान की मूर्ति नहीं है, और समय की मार से यह प्रभावित भी हुआ है, लेकिन यह आज भी अपनी बनावट, आकार और शैली के कारण आकर्षण का केंद्र है।

 

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मोढेरा मंदिर, गुजरात

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मोढेरा का सूर्य मंदिर गुजरात के मेहसाणा जिले में पुष्पावती नदी के किनारे बना है। मंदिर परिसर तीन भाग में बटा हैं, जिसमें गुधा मंडप, सभा मंडप और कुंड है। इतना ही नहीं, इसका सभा मंडप 52 खंभों पर खड़ा हुआ है, जो साल के 52 हफ्तों को दर्शाता है। इसकी दीवारों पर पंच तत्वों को देखा जा सकता है। वहीं, अलग-अलग हिस्सों पर सूर्य की कई आकृतियां देखी जा सकती हैं।

मार्तंड मंदिर, कश्मीर

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ऐसा माना जाता है कि 8वीं सदी में बने इस मंदिर को कर्कोटा वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापिदा ने करवाया था। कश्मीरी वास्तुशिल्प कौशल का एक जीता-जागता उदाहरण है यह सूर्य मंदिर। हालांकि इसे 15वीं शताब्दी में शासक सिकंदर बुतशिकन ने नष्ट कर दिया था। पुरातत्वविदों ने मंदिर को गंधार, गुप्त, ग्रीक, चीनी, रोमन, सीरियाई वास्तुकला की मिक्स शैली का एक अच्छा उदाहरण है।

कटारमल मंदिर, उत्तराखंड

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कट्युरी राजा काटरमल्ला ने इस मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में करवाया था। इस मंदिर को घेरे 44 अन्य छोटे-छोटे मंदिर हैं। इन अन्य मंदिरों में भगवान शिव, पार्वती, लक्ष्मीनारायण आदि भगवानों की मूर्तियों को स्थापित किया गया है। चट्टानों के बड़े और भारी ब्लॉकों से बना यह मंदिर उत्तराखंड की कत्यूरी वास्तुकला शैली का एक महत्वपूर्ण नमूना है।

ब्राह्मणया देव मंदिर, उन्नाव-मध्य प्रदेश

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इस मंदिर को उन्नाव-बालाजी सूर्य मंदिर भी कहा जाता है। एक परंपरा के अनुसार यहां निचली जाती के पुरुष ही पंडिताई का काम करते हैं। इस मंदिर के पास पहुज नदी है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति उसमें डुबकी लगा ले, उसका हर तरह का त्वचा रोग सही हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महान राजा मारूछ ने कई हजार साल पहले करवाया था।

सूर्य मंदिर, ग्वालियर

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अगर आप ओडिशा के कोर्णाक मंदिर नहीं जा पा रही हैं, तो आप ग्वालियर के इस सूर्य मंदिर के दर्शन कर सकती हैं। इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है, लेकिन फिर भी यह अपनी बनावट के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर को कोर्णाक की तरह बनाया गया है। हुबहू तो नहीं, मगर कोर्णाक मंदिर की छवि आप इसमें देख सकती हैं। ग्वालियर में ही लोकप्रिय शनि मंदिर से कुछ ही दूरी पर यह मंदिर स्थित है।

सूर्यनारायण मंदिर, आंध्र प्रदेश

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यह मंदिर 7वीं सदी में कलिंगा वंश के राजा देवेंद्र वर्मा ने बनवाया था। भगवान सूर्यनारायण स्वामी की छवि यहां एक ऊंचे ग्रेनाइट के टुकड़े पर बनाई गई है। सूर्य देवालयम को इस तरह से विशिष्ट रूप से डिजाइन किया गया है कि सूर्य की किरण साल में दो बार मूर्ति के पैर छूती है। यह दुर्लभ घटना मार्च में होती है जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर बढ़ता है और फिर अक्टूबर में जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ता है।

श्री सूर्यनार कोविल, तमिलनाडु

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तमिलनाडु में कुंभकोणम के पास सूर्यनार कोविल भारत के कुछ ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है जो सूर्य भगवान को समर्पित है। सूर्यनार कोविल तमिलनाडु का एकमात्र मंदिर है जिसमें सभी ग्रह देवताओं के लिए अलग मंदिर है। पौराणिक कथाओं में भी इसका जिक्र है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से कई समस्याएं दूर हो जाती हैं।

देव सूर्य मंदिर, बिहार

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यह मंदिर बिहार में उड़िया शैली में बनाया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर को सिर्फ एक रात में विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया था। ऐसी मान्यता है कि इस जगह का नाम यहां के राजा रहे वृषपर्वा के पुरोहित शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के नाम पर देव पड़ा था।

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