
वास्तु शास्त्र की मानें तो प्रत्येक दिशा में एक अनूठी ऊर्जा होती है जो हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर सकती है। जिस तरह हर एक दिशा का अपना अलग महत्व है उसी तरह दक्षिण दिशा को विशेष रूप से पूर्वजों या पितरों से जुड़ा हुआ माना जाता है।
पितर हमारे वो पूर्वज होते हैं जो अब हमारे बीच मौजूद नहीं हैं और इनकी स्मृतियां ही मौजूद होती हैं। ऐसा माना जाता है कि घर के दक्षिणी हिस्से में पूर्वजों का निवास होता है और इस वजह से ही इस दिशा का अलग ही महत्व होता है।
यह दिशा हमारी विरासत का मार्गदर्शन करने वाली ब्रह्मांडीय शक्तियों से जुड़ी हुई होती है। देश या विदेश में अपने घर में इस स्थान को वास्तु के सिद्धांतों के साथ संरेखित करके, आप एक सामंजस्यपूर्ण वातावरण बना सकते हैं और पूर्वजों को प्रसन्न कर सकते हैं।
आइए वास्तु विशेषज्ञ डॉ मधु कोटिया जी से जानें कि वास्तु सिद्धांतों के अनुसार अपने पूर्वजों को कैसे प्रसन्न किया जा सकता है और घर की दक्षिण दिशा में किन वस्तुओं को रखा जा सकता है।

वास्तु के अनुसार घर की दक्षिण दिशा पर भगवान यम का निवास होता है जिन्हें मृत्यु और पैतृक ऊर्जा के देवता के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि अपने पूर्वजों का सम्मान और उन्हें प्रसन्न करके हम उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन को अपने जीवन में आकर्षित कर सकते हैं।
घर की दक्षिण दिशा में सकारात्मक और जीवंत ऊर्जा प्रवाह बनाने से न केवल पूर्वज प्रसन्न होते हैं बल्कि घर की समग्र ऊर्जा में संतुलन भी बना रहता है। इससे आपको पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है और जीवन में खुशहाली बनी रहती है। यदि हम वास्तु की मानें तो इस दिशा को साफ़ रखने से पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है।
पितरों को प्रसन्न करने के लिए यदि आप घर की दक्षिण दिशा को अव्यवस्था मुक्त रखते हैं तो घर के सभी वास्तु दोषों से मुक्ति मिलती है। वैसे किसी भी दिशा को वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप बनाने का पहला चरण उस स्थान को अव्यवस्था मुक्त रखना ही होता है जिससे इस दिशा में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सके।
पितरों को प्रसन्न करने के लिए आप घर की दक्षिण दिशा को हमेशा साफ़ रखें और इस जगह पर कूड़ा इकठ्ठा न करें, जिससे आपके घर में समृद्धि बनी रहेगी और पितृ दोषों से मुक्ति भी मिलेगी।
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यदि आप पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं तो घर की दक्षिण दिशा में पितरों की तस्वीर रखें, इस दिशा को हमेशा पूर्वजों की दिशा के रूप में जाना जाता है, इस वजह से जब आप इस दिशा में पूर्वजों की तस्वीर लगाते हैं तो पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। यदि आपके घर में वास्तु से जुड़ा कोई दोष है तो वो भी दूर होता हो। पूर्वजों की तस्वीर रखने के साथ इस स्थान पर पूर्वजों की कोई प्रिय वास्तु या उनकी निशानी भी रखें। यदि आप पितरों की तस्वीर रखते हैं तो उसे नियमित रूप से साफ़ करना जरूरी है।
ऐसा माना जाता है कि दक्षिण दिशा में यदि आप पानी का फव्वारा, जल का कटोरा जैसी छोटी जल से जुड़ी वस्तुएं रखते है तो इन्हें रखने से पैतृक ऊर्जा में वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि झरने से बहता पानी पूर्वजों के आशीर्वाद के प्रवाह का प्रतीक होता है, इसलिए यदि आप दक्षिण दिशा में पानी का झरना रखने के साथ इसे अक्सर चालू रखते हैं तो इससे गिरने वाला पानी और पानी की आवाज पितरों को प्रसन्न करने में मदद करती है।

यदि आप घर की दक्षिण दिशा में कुछ ऐसी वस्तुएं रखती हैं जो पारिवारिक विरासत, पारंपरिक कलाकृतियों से जुड़ी हों या ऐसी वस्तुएं जो पीढ़ियों से चली आ रही हों उन्हें इस दिशा में रखना सबसे अच्छा माना जाता है। ये वस्तुएं आपके वंश की ऊर्जा लेकर चलती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा घर की दक्षिण दिशा में ताजे फूल रखें और धूप का धुंआ दिखाएं।
दक्षिण दिशा में वास्तु के इन नियमों का पालन करने के साथ पितरों को प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना करें, पितृ दोष निवारण मंत्रो का जाप करें। श्राद्ध की तिथि के अनुसार तर्पण करें तो पितरों को शांति मिलती है और उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है।
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