वास्तुकला के सबसे प्राचीन विज्ञानों में से एक है वास्तु और यह वैदिक काल के ऋषियों द्वारा निर्धारित विशिष्ट नियमों और निर्देशों से बना है। वास्तु शास्त्र घर को प्राण युक्त एक जीवित आत्मा के रूप में देखता है। 'वास्तु' शब्द किसी भी चीज का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे कि घर, भवन आदि।
संस्कृत में शास्त्र का अर्थ है प्रणाली या ज्ञान। इसका मतलब यह है कि आपके घर की सभी चीजों का ज्ञान और आपके आस-पास मौजूद सभी वस्तुओं को सही नियम से रखना वास्तु होता है। वहीं, फेंगशुई एक चीनी प्राचीन कला है, जो संतोष और खुशी से जीवन जीने के लिए पर्यावरण के साथ सामंजस्य बैठाने पर विचार करती है।
चीनी भाषा में 'फेंग' का अर्थ है 'हवा' और 'शुई' का अर्थ है 'पानी', जिसका अर्थ है, ब्रह्मांडीय शक्तियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की एक प्रणाली। वास्तव में ये दोनों ही एक-दूसरे से बिलकुल अलग होते हैं और दोनों के अपने नियम होते हैं। आइए, वास्तु एक्सपर्ट डॉ. मधु कोटिया से जानें, इसके बारे में विस्तार से।
जहां एक तरफ वास्तु शास्त्र विज्ञान पर आधारित होता है वहीं, फेंगशुई स्थानीय भौगोलिक विचारों और परंपराओं पर आधारित होता है। वास्तु शास्त्र दिशाओं के संतुलन पर आधारित होता है।
मान्यता है कि उत्तर दिशा शुभ है, क्योंकि इसे चुंबकीय ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। पूर्व दिशा को इसलिए शुभ माना जाता है, क्योंकि यह दिशा सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है। वहीं, फेंगशुई में उत्तर दिशा को अशुभ माना जाता है।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि चीन में, उत्तर दिशा वह जगह है जहां से मंगोलिया से रेत और ठंडी हवाएं आती हैं। फेंगशुई में, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व दिशा को आमतौर पर शुभ माना जाता है, क्योंकि इन दिशाओं से सूर्य की गर्मी महसूस की जा सकती है। यदि दोनों की आपस में तुलना करें, तो दोनों ही विज्ञान एक-दूसरे से अलग हैं और अपनी अलग पहचान रखते हैं।
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वास्तु शास्त्र में, रसोई में खाना पकाने का स्टोव आमतौर पर दाईं ओर रखा जाना चाहिए, जबकि सिंक को बाईं ओर रखा जाना चाहिए। वहीं, फेंगशुई में, खाना पकाने के स्टोव और सिंक पर मूल सिद्धांत यह है कि उन्हें एक-दूसरे का सामना नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, वास्तु शास्त्र में, दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर सिर करके सोना शुभ माना जाता है, जबकि फेंगशुई में, सोने की दिशा आम तौर पर व्यक्ति की शुभ दिशाओं के अनुसार होनी चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में बड़ा या भारी फर्नीचर जैसे सोफा, टीवी, रेडियो उपकरण आदि रखना चाहिए। इससे उत्तर और पूर्व क्षेत्र में अधिक जगह बचेगी जिसे शुभ माना जाता है। फेंगशुई में, बड़े या भारी फर्नीचर को उत्तर क्षेत्र में रखा जाना चाहिए।
वास्तु, डिजाइन के तीन सिद्धांतों पर काम करता है, जो पूरे परिसर को कवर करता है । पहला है भोगद्यम, जो कहता है कि डिजाइन किया गया आधार उपयोगी होना चाहिए ।
दूसरा है सुखा दर्शम, जिसमें डिजाइन किया गया परिसर सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन होना चाहिए। भवन के अंदरूनी और बाहरी हिस्सों में रिक्त स्थान और उपयोग की जाने वाली सामग्री का रंग, खिड़कियों, दरवाजों और कमरों के आकार और प्रक्षेपण का होना चाहिए।
तीसरा सिद्धांत राम्या है, जहां डिजाइन किए गए परिसर को उपयोगकर्ता में कल्याण की भावना पैदा करनी चाहिए।
पारंपरिक फेंगशुई समय, स्थान और क्रिया को समान महत्व देता है। इसलिए, अच्छा प्रदर्शन करने के लिए सही समय पर और सही जगह पर, सही कार्रवाई का मिश्रण होना महत्वपूर्ण है। फेंगशुई का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं 'पृथ्वी भाग्य', ऊर्जा जो आपके स्थान और समय में मौजूद हैं। दूसरा है, 'मनुष्य का भाग्य', जो आपका अपना कर्म और स्वतंत्र इच्छा है।
आप उपलब्ध अवसरों का उपयोग कैसे करते हैं, इससे आपके जीवन में फर्क पड़ता है। तीसरा है, 'स्वर्ग भाग्य', जो आपका भाग्य और नियति है और आपके हाथ में है। ये तीन सिद्धांत हमारे लिए यह समझना आसान बनाते हैं कि एक ही घर में रहने वाले अलग-अलग लोग अपने जीवन में अलग-अलग चीजें क्यों कर सकते हैं।
भले ही वास्तु और फेंगशुई, दोनों के बीच कुछ बड़े अंतर क्यों न हों, लेकिन दोनों के बीच कुछ समानताएं भी हैं। जैसे कि ये दोनों ही विज्ञान पांच तत्वों का उपयोग करते हैं। हालांकि, वास्तु पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष का उपयोग करता है, जबकि फेंगशुई पृथ्वी और अंतरिक्ष को लकड़ी और धातु से बदल देता है।
यदि आप इनमें से किसी भी एक विज्ञान की बातें मानते हैं, तो आपको उस एक विज्ञान का ही पालन करने की सलाह दी जाती है, जिससे इनका सकारात्मक परिणाम मिले।
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