भोजन हमारे जीवन का अहम हिस्सा होता है और हिंदू धर्म शास्त्रों में इसे अन्न देव कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हम जैसा अन्न खाते हैं, हमारे विचार भी वैसे ही बन जाते हैं। कई बार भोजन करते समय अनजाने में बाल निकल आता है। ऐसे में मन में यही सवाल उठता है कि उस खाने का क्या करना चाहिए? क्या वह खाना अशुद्ध हो जाता है या फिर उसे खा सकते हैं? इस विषय में संतों और आचार्यों की अलग-अलग राय मिलती है। इसी बात पर प्रेमानंद जी महाराज ने भी इस सवाल का गहरा आध्यात्मिक जवाब दिया है। आइए प्रेमानंद जी से जानें ऐसे भोजन को ग्रहण करना चाहिए या नहीं।
शास्त्रों की मानें तो भोजन बनाने से लेकर उसे ग्रहण करने तक के लिए शुद्धि पर विशेष जोर दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अशुद्ध या दूषित भोजन करने से शरीर और मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यदि भोजन में बाल निकल आए तो यह इस बात का संकेत हो है कि भोजन पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं है। ऐसे भोजन को हमेशा ही खाने से मन किया जाता है। जिस भोजन में बाल निकल आए वो पितृदोष का संकेत हो सकता है। ऐसे पूरे ही भोजन को आपको हटा देना चाहिए। ऐसे भोजन को ग्रहण करना न सिर्फ स्वास्थ्य की दृष्टि से खराब माना जाता है बल्कि ग्रह नक्षत्रों का दोष भी माना जाता है। ऐसे खाने को अलग कर देना या बदल देना ही उचित माना जाता है।
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प्रेमानंद जी महाराज जी के अनुसार भोजन केवल पेट भरने का जरिया नहीं होता है, बल्कि यह हमारी साधना और संपूर्ण जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि यदि भोजन में गलती से बाल या मक्खी गिर जाए तो उस भोजन को तुरंत त्याग देना चाहिए। ऐसा भोजन अशुद्ध माना जाता है और आपकी साधना में बाधा डाल सकता है।
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प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि आपको शाम का बना हुआ भोजन कभी भी सुबह नहीं खाना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि रोटी और दाल जैसी खाने की चीजें बासी होने पर अपनी पवित्रता खो देती हैं। ऐसे में केवल घी में बने तले हुए पकवान ही एक या दो दिन तक खाए जा सकते हैं। आपको सेहत के बारे में सोचते हुए भी बासी भोजन खाने से बचना चाहिए। ऐसा भोजन अशुद्ध माना जाता है। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि जब भी आप भोजन शुरू करते हैं तो ईश्वर को भोग लगाना जरूरी माना जाता है, इसी वजह से बासी भोजन का भोज लगाना संभव नहीं है। इसी वजह से आपको बासी भोजन ग्रहण करने से बचना चाहिए।
प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार साधक को कांसे के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसकी जगह पीतल या मिट्टी के बर्तन भोजन बनाने और ग्रहण करने के लिए अधिक उपयुक्त और शुद्ध माने जाते हैं। भोजन करते समय मन की अवस्था भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। प्रेमानंद जी कहते हैं कि भोजन करते समय किसी वस्तु, स्थान या साधारण व्यक्ति का चिंतन नहीं करना चाहिए। यदि साधु या संत का स्मरण करेंगे तो उनकी ऊर्जा और गुण आप में भी आ सकते हैं। लेकिन यदि किसी नकारात्मक व्यक्ति का चिंतन भोजन करते समय किया जाता है तो व्यक्ति की प्रवृत्ति भी आप पर हावी हो सकती है।
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