सावन के महीने में हर मंगलवार को रखा जाने वाला मंगला गौरी व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पावन व्रत मुख्य रूप से माता पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उनका वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। वहीं, जिन कुंवारी कन्याओं के विवाह में बाधाएं आ रही हैं, उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। संतान सुख की कामना रखने वाले दंपत्तियों के लिए भी यह व्रत अत्यंत शुभ फलदायी माना गया है। सावन का तीसरा मंगला गौरी व्रत इस साल 29 जुलाई को रखा जाएगा। आइए, ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानते हैं इस व्रत की संपूर्ण कथा।
मंगला गौरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक शहर में धर्मपाल नाम का एक अमीर व्यापारी रहता था। उसके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी और उसकी पत्नी भी बहुत सुंदर और सुशील थी, लेकिन उन्हें एक बात का हमेशा दुख रहता था कि उनके कोई संतान नहीं थी। संतान की कमी के कारण वे दोनों बहुत दुखी रहते थे।
बहुत पूजा-पाठ और तपस्या करने के बाद, भगवान की कृपा से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था, लेकिन यह खुशी ज्यादा देर तक टिकने वाली नहीं थी। ज्योतिषियों ने बताया कि उनका पुत्र अल्पायु है यानी उसकी उम्र बहुत कम है। उसे 16 साल की उम्र में सांप के काटने से मृत्यु का श्राप मिला था। यह सुनकर माता-पिता बहुत परेशान हुए, लेकिन उन्होंने अपनी चिंता भगवान पर छोड़ दी।
जब पुत्र बड़ा हुआ और उसकी शादी की उम्र हुई, तो उन्होंने उसका विवाह तय कर दिया। संयोग से, जिस लड़की से उनका विवाह तय हुआ था, उसकी माता मंगला गौरी व्रत नियमित रूप से करती थी। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उस कन्या को ऐसा आशीर्वाद मिला था कि वह कभी विधवा नहीं होगी यानी उसके पति की लंबी उम्र होगी।
जब धर्मपाल के पुत्र का विवाह हुआ, तो उसकी पत्नी, अपनी माता के आशीर्वाद और मंगला गौरी व्रत के प्रभाव से अपने पति को मृत्यु के मुंह से बचाने में सफल रही। 16 साल की उम्र में जब उसके पति पर मृत्यु का संकट आया तो मंगला गौरी व्रत के प्रताप से वह टल गया और उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।
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इस घटना के बाद से मंगला गौरी व्रत का महत्व और भी बढ़ गया। ऐसा माना जाता है कि जो भी विवाहित महिला सच्चे मन से और विधि-विधान से यह व्रत करती है, उसे अखंड सौभाग्य मिलता है, उसका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और उसे संतान सुख भी प्राप्त होता है। कुंवारी कन्याएं भी अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
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