Jitiya Sargi Significance

Jivitputrika Vrat Sargi Importance 2025: जितिया में सरगी का क्या है महत्व, ज्योतिष एक्सपर्ट से जानें

Jivitputrika Vrat Sargi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार जितिया व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत सबसे कठिन माना जाता है।   
Editorial
Updated:- 2025-09-13, 22:56 IST

(Significance of Sargi) हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का विशेष महत्व बताया गया है। यह निर्जला रखने के कारण सभी व्रतो में सबसे कठिन जितिया व्रत माना जाता है। इस व्रत के दौरान दातुन और स्नान करना भी वर्जित माना जाता है। यह व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।  बता दें, इसका नहाय-खाय 13 सितंबर, शनिवार के दिन, सप्तमी तिथि पर होगा। इसका आरंभ दिनांक 14 सितंबर, दिन रविवार के दिन, सुबह 5 बजकर 4 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 15 सितंबर, सोमवार के दिन, रात 3 बजकर 6 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, जितिया व्रत 14 सितंबर को रखा जाएगा। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र, वंश वृद्धि और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। जितिया में सरगी का क्या महत्व है।

इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि जितिया में सरगी का महत्व क्या है। 

जानें जितिया की शुभ तिथि और मुहूर्त (Jivitputrika Vrat Shubh Tithi and Muhurat)

JITIYA VRAT SIGNIFICANCE

इस बार दिनांक 14 सितंबर को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 33 मिनट से शुरू होगा और सुबह 5 बजकर 19 मिनट पर इसका समापन कर पारण कर सकते हैं। 

जितिया व्रत का नहाय-खाय एक दिन पहले करते है। ऐसे में पंचांग के अनुसार, यह 13 सितंबर, शनिवार के दिन, सप्तमी तिथि पर होगा। साथ ही, 14 सितंबर को सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में जितिया का ओठगन होगा। निशिता काल में जितिया व्रत की पूजा करने से संतान के भाग्य में वृध्दि होती है और उसे आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है।

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जितिया में सरगी का महत्व (Significance of Sargi on Jivitputrika Vrat)

Jitiya Pooja

जितिया में सरगी का विशेष महत्व बताया गया है। इसके बिना व्रत की शुरूआत नहीं होती है। यह व्रत छठ पूजा की तरह निर्जला रखी जाती है और इस दौरान सोने भी वर्जित होता है। आपको बता दें, जितिया के सरगी में दही, चूड़ा, पूड़ी, मिठाई, नारियल पानी, फल आदि खाते हैं। उसके बाद पूरे दिन तक बिना अन्न, जल के रहा जाता है।

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जितिया का पर्व कुल तीन दिन तक मनाया जाता है। उसके बाद परंपरा का अनुसार व्रत का पारण करने के बाद पुरोहित को भोज भी कराया जाता है। जिससे महिलाओं को व्रत के शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है। 

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इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप यह व्रत रख रहे हैं, तो इसे बीच में न छोड़ें। ऐसी मान्यता है कि पहले सास इस व्रत को रखती है और उसके बाद घर की बहुओं के द्वारा यह व्रत किया जाता है। 

जितिया व्रत में शालीवहन राता के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की विशेष पूजा-अर्चना का जाती है। जिससे संतान (संतान गोपाल मंत्र)के ऊपर कभी किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आती है। 

 

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