प्रदोष व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित होता है। सितंबर माह में दूसरा प्रदोष व्रत 19 को पड़ रहा है और इस बार भी पहले की तरह यह शुक्रवार को ही पड़ रहा है। मगर हिंदी माह बदल चुका है इसलिए इसे आश्विन माह का शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है। खासतौर पर इस दिन शिवलिंग पर विशेष चीजों को अर्पित किया जाता है। हमने इस पर्व पर पंडित मनीष शर्मा जी से चर्चा की। वह कहते हैं, " यह व्रत कई लिहाज से बहुत ही अच्छा माना गया है। यह व्रत केवल अखंड सौभाग्य के लिए ही नहीं बल्कि पारिवारिक सुख-शांति के लिए भी बहुत फलदायक होता है।"
शुक्र प्रदोष 18 सितंबर गुरुवार को रात 11 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगा और 19 सितंबर शुक्रवार को रात 11 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। इसलिए उदय तिथि 19 सितंबर को माना जा रहा है। इसलिए आप इस दिन यदि व्रत रखती हैं, तो 19 सितंबर को यह व्रत रखना चाहिए। 19 को सुबह 4:30 से रात 8:41 तक सिद्ध योग रहेगा। वहीं सुबह 07:05 पर अश्लेषा नक्षत्र रहेगा।
इस पर्व पर शिव-पार्वती पूजा तो करनी ही होती है, मगर शिवलिंग पर अलग-अलग चीज अर्पित करने से भी आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पंडित जी कहते हैं, "शिवलिंग पर शहद चढ़ाने से दांपत्य जीवन में मधुरता आती है, यदि आप शिवलिंग पर गन्ने का रस अर्पित करती हैं, तो आपके जीवन में चल रहे कष्ट कम हो जाते हैं। शिवलिंग पर भांग चढ़ाने से आपके शत्रुओं का नाश होता है। यदि आपको आर्थिक समस्या है, तो आपको शिवलिंग को दूध अर्पित करना चाहिए। "पंडित जी के मुताबिक इस बार सिद्ध योग में शिवलिंग पर आप भगवान शिव की प्रिय चीज अर्पित करेंगी तो आपको बहुत अच्छा फल मिलेगा। मगर आपको सुबह प्रात: काल ही अश्लेषा नक्षत्र में शिवलिंग की पूजा कर लेनी चाहिए क्योंकि यह सबसे अच्छा समय होता है।
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प्रदोष व्रत विशेषकर शिवजी को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। आश्विन मास में आने वाला शुक्र प्रदोष व्रत सौभाग्य, आरोग्य और समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।
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आपको बाजार से प्रदोष व्रत की कथा पुस्तक मिल जाएगी, मगर हम आपको बहुत शॉर्ट में इस कथा के बारे में बताते हैं-
प्राचीन काल में विक्रमनगर में एक गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। ब्राह्मण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी सतीला अपने दो पुत्रों धर्मपाल और धर्मगुप्त के साथ भिक्षा मांगकर जीवन यापन करने लगी। कठिनाइयों से घिरी सतीला एक दिन शांडिल्य ऋषि के आश्रम पहुँची। ऋषि ने उसे प्रदोष व्रत की महिमा बताई और कहा कि इससे सभी दुख दूर होते हैं।
सतीला ने श्रद्धा से व्रत करना शुरू किया। धीरे-धीरे उसके जीवन में चमत्कार हुए। बड़ा पुत्र धर्मपाल एक धनी सेठ द्वारा गोद लिया गया और छोटा पुत्र धर्मगुप्त राजा का उत्तराधिकारी बन गया। सतीला का जीवन सुख-समृद्धि से भर गया।
कथा का संदेश है कि प्रदोष व्रत से शिव कृपा प्राप्त होती है, दुख-दरिद्रता दूर होती है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
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