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विनायक चतुर्थी के दिन इस विधि से करें भगवान गणेश की पूजा, जानें सामग्री और नियम

हिंदू धर्म में आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है। आइए इस लेख में बप्पा की पूजा विधि और सामग्री के बारे में विस्तार से जानते हैं। 
Editorial
Updated:- 2025-06-28, 07:31 IST

हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला विनायक चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। यह व्रत विशेष रूप से सुख-समृद्धि, बुद्धि और मनोकामना पूर्ति के लिए रखा जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है, इसलिए मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी कष्ट और बाधाएं दूर हो जाती हैं। भगवान गणेश सभी विघ्नों के हर्ता हैं। इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली हर तरह की रुकावटें दूर होती हैं। गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। जो बच्चे या विद्यार्थी इस व्रत को करते हैं, उन्हें पढ़ाई में सफलता मिलती है और उनकी एकाग्रता बढ़ती है। अब ऐसे में आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा किस विधि से करें और पूजा का महत्व क्या है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए सामग्री

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भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर: यह मिट्टी, धातु या किसी भी सामग्री की हो सकती है।
चौकी या पाटा: जिस पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
लाल वस्त्र: चौकी पर बिछाने के लिए।
गंगाजल: शुद्धिकरण के लिए।
कुमकुम (रोली): तिलक लगाने के लिए।
चंदन: तिलक और सुगंध के लिए।
अक्षत (चावल): बिना टूटे हुए चावल।
दूर्वा घास: 21 गांठों वाली दूर्वा गणेश जी को अत्यंत प्रिय है।
पुष्प: लाल गुड़हल, गेंदा या अन्य सुगंधित फूल।
मोदक या लड्डू: गणेश जी को प्रिय भोग।
केला: अन्य फल जैसे सेब, अमरूद आदि भी रख सकते हैं।
नारियल: श्रीफल।
सुपारी: साबुत सुपारी।
लौंग और इलायची: पूजा में उपयोग के लिए।
पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण।
धूप और दीप: धूपबत्ती और घी या तेल का दीपक।
अगरबत्ती: सुगंध के लिए।
कपूर: आरती के लिए।
कलावा (मौली): गणेश जी को धारण कराने और स्वयं बांधने के लिए।
सिंदूर: गणेश जी को सिंदूर बहुत प्रिय है।
शमी पत्र: शमी के पत्ते भी गणेश जी को अर्पित किए जाते हैं।

आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा विधि

सबसे पहले हाथ में जल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। मन में भगवान गणेश का ध्यान करते हुए अपनी मनोकामना कहें।
चौकी पर स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें पवित्र करें।
सबसे पहले भगवान गणेश को जल अर्पित करें।
इसके बाद पंचामृत से भगवान गणेश को स्नान कराएं। स्नान के बाद शुद्ध जल से पुनः स्नान कराएं।
भगवान गणेश को नए वस्त्र या मौली अर्पित करें। आभूषण के रूप में जनेऊ और फूलों की माला चढ़ाएं।
भगवान गणेश को रोली, कुमकुम और चंदन का तिलक लगाएं।
उन्हें लाल या पीले फूल अर्पित करें। दूर्वा भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें 21 गांठों वाली दूर्वा अर्पित करें।
पूजा के दौरान "ॐ गं गणपतये नमः" या "वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।" मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
आखिर में भगवान गणेश की आरती करें।

भगवान गणेश की पूजा करने के नियम

चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन से बचना चाहिए। यदि संभव न हो तो चंद्र दर्शन के समय "श्रीमद्भागवत" का पाठ करें।
व्रत रखने वाले भक्त दिन में फलाहार कर सकते हैं।
शाम को चंद्रोदय के बाद गणेश जी की पूजा करने के बाद ही व्रत का पारण करें।

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आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा का महत्व

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गणेश जी की कृपा से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। दरिद्रता दूर होती है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। गणेश जी बुद्धि के देवता हैं। उनकी पूजा से ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि होती है, जिससे छात्रों और नौकरीपेशा लोगों को विशेष लाभ मिलता है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों की सभी वैध मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अविवाहितों को योग्य वर या वधू की प्राप्ति होती है।

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