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उम्र छोटी थी, पर नियत बड़ी... अल्लाह ने बुलाया और यूं हमारा उमराह मुकम्मल हुआ

मैं और मेरा परिवार सालों से उमराह करने की दुआ मांग रहा था। पता नहीं था एक दिन अचानक हमारे टिकट कन्फर्म हो जाएंगे और हमारा सपना पूरा हो जाएगा।  
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Editorial
Updated:- 2025-07-17, 18:57 IST

जब दुआ दिल से निकलती है, तो दरवाजे खुल ही जाते हैं...उम्र का ताल्लुक एक्सपीरियंस से होता, इबादत से नहीं। मुझे एक बात समझ में आ गई कि अगर इरादे पक्के हों, तो हर चीज आसानी से हासिल की जा सकती है। जहां बच्चे छुट्टियों में घूमने की प्लानिंग करते हैं, वहीं मेरा दिल अल्लाह के घर की एक झलक पाने को तरसता था। 

उसकी आंखों में हर रात मक्का की तस्वीरें और होठों पर एक ही दुआ हुआ करती हैं कि या अल्लाह, मुझे अपने घर बुला ले..। लगता नहीं था यह दुआ इतनी जल्दी कबूल हो जाएगा...लेकिन जब यह दुआ कबूल हुई और उमराह का बुलावा आया तो यकीन नहीं हुआ।

5 फरवरी को टिकट हुई कन्फर्म

मैं और मेरा परिवार सालों से उमराह करने की दुआ मांग रहा था। पता नहीं था एक दिन अचानक हमारे टिकट कन्फर्म हो जाएंगे और हमारा सपना पूरा हो जाएगा। 5 फरवरी को हमारी टिकट कन्फर्म हुई और अब्बू ने इस बात की जानकारी दी। अब्बू ने बताया कि ईद के बाद पूरा परिवार उमराह के लिए रवाना होगा, तो मुझे कुछ पल के लिए यकीन ही नहीं हुआ।

मेरे साथ मेरी अम्मी, पापा और भाई जा रहे हैं। जब टिकट हाथ में आए तो मैंने अम्मी से कहा क्या सच में हम मक्का जा रहे हैं? इस बात पर अम्मी मुस्कुराहट के साथ कहती हैं कि जब अल्लाह चाहे, बुला लेगा..।

सबसे पहले किया काबे शरीफ का दीदार 

दिल्ली से साउदी जाते ही हमें मक्का जाने का प्लान किया। मक्का पहुंचते ही हमारी आंखों में अलग ही चमक थी, वो शायद दुनिया का कोई कैमरा कैद नहीं कर सकता था। जब मैंने पहली बार हरम शरीफ के अंदर काबा को देखा, तो हमारे होंठ कांप रहे थे, आंखों से आंसू बह रहे थे और दिल सिर्फ यही कह रहा था....या अल्लाह, तूने मेरी सुन ली...।

 

Dua acceptance for Umrah


भीड़ में सब बड़े थे, इसलिए मेरे भाई ने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था ताकि मैं कहीं गुन न हो जाऊं। इसके अलावा, हमने अम्मी अब्बू को साथ कर दिया था।

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20 दिन का सफर बन गया यादगार

उमराह मुकम्मल करना यकीनन मेरे लिए सपना था। यहां बहुत ही गर्मी थी, लेकिन खुशी इतनी गहरी थी कि महसूस ही नहीं हुई। यहां के होटल बहुत ही शानदार थे, हर सुविधा थी। खास बात यह है कि हमारा होटल मक्का से बहुत ही पास था, जहां से पांच वक्त की नमाज पढ़ने मक्का आराम से जाया जा सकता था।  

जब हमारा उमराह पूरा हुआ और हमने आखिरी बार काबा की तरफ देखा, तो उसके दिल में सिर्फ ये ख्याल कि अल्लाह से रिश्ता उम्र से नहीं, यकीन से बनता है।

इस्लामिक जगहों की जियारत की

हम पूरे 20 दिन हरम शरीफ में रुके थे। यहां हमने कई तरह का खाना चखा और वहां पर मौजूद पर इस्लामिक जगहों की जियारत की। कुल मिलाकर अम्मी के साथ उमराह करने में मजा ही आ गया।

वहां से लौटकर आने के बाद मैं पूरी तरह से बदल गई। मैंने पांच वक्त की नमाज अदा करनी शुरू कर दी। अब मैं हर छोटी-छोटी चीजों के लिए शुक्र अदा करती हूं और सबसे बड़ी बात, हर नमाज में दूसरों के लिए भी दुआ करती हूं। मैं आपसे इतना ही कहना चाहूंगी कि दिल से मांगी गई दुआ कभी रद्द नहीं होती।

अल्लाह बुलाता है, जब वक्त सही होता है। उम्र नहीं, नियत देखी जाती है अगर आप भी मेरी तरह अल्लाह के घर जाने की ख्वाहिश रखती हैं, तो दिल से दुआ करना मत छोड़िए...क्योंकि अल्लाह का बुलावा जब आता है, तो सब कुछ मुमकिन हो जाता है।

हुदा ने अल्लाह से रिश्ता गहरा किया और 23 साल की उम्र में उमराह मुकम्मल किया।   

 

ये लेख हुदा के द्वारा लिखा गया है, बता दें हुदा दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट हैं।

 

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