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क्या किचन के अंदर पूजा का स्थान बनाना ठीक है? जानें क्या कहता है वास्तु

किचन और पूजा का स्थान दोनों ही घर के लिए बहुत मायने रखते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन स्थानों को हमेशा वास्तु के अनुरूप ही बनाना चाहिए जिससे घर में खुशहाली बनी रहती है।
Editorial
Updated:- 2024-08-15, 14:30 IST

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के भीतर स्थानों की व्यवस्था का अत्यधिक महत्व दिया जाता है। घर में कौन सी चीज कहां रखी है और उसका स्थान कहां होना चाहिए ये बात बहुत ज्यादा मायने रखती है।

लिविंग रूम से लेकर बेडरूम तक और किचन से लेकर पूजा के स्थान तक, हर एक क्षेत्र सद्भाव और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तु की मानें तो यदि आपके घर का कोई भी स्थान उचित तरीके से व्यवस्थित नहीं है तो वास्तु दोष लग सकते हैं।

ऐसे ही कई लोगों के घर में जगह की कमी होने की वजह से घर के किचन में ही मंदिर होता है। ऐसा माना जाता है कि जिस स्थान पर पूजा का मंदिर हो उसे साफ और किसी भी व्यसन से मुक्त होना चाहिए। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कि आपके घर में क्या पूजा का स्थान और किचन एक साथ रखना ठीक है। 

घर में पूजा के स्थान को एकांत जगह पर रखने का महत्व 

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यदि आपके घर में पूजा का स्थान है तो इसे घर के अन्य हिस्सों से दूर होना चाहिए और ऐसी जगह पर होना चाहिए जहां ज्यादा शोर-शराबा न हो। पूजा का मंदिर हमेशा व्यक्ति में मन को शांत रखने में योगदान देता है।

जब भी हमारा मन अशांत होता है उस समय हम एक शांत स्थान की तलाश में होते हैं, ऐसे में पूजा का स्थान बहुत ज्यादा महत्व रखता है। प्रार्थना कक्ष को घर में एक पवित्र स्थान माना जाता है जहां लोग धार्मिक अनुष्ठान, ध्यान और पूजा करते हैं। इसे आध्यात्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता का स्रोत माना जाता है। इसलिए, इसका स्थान यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़े और घर के अन्य क्षेत्रों के साथ टकराव न हो।

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पूजा कक्ष के लिए वास्तु कैसा होना चाहिए 

वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूजा कक्ष आदर्श रूप से ऐसे स्थान पर स्थित होना चाहिए जो शांत और ध्यान और प्रार्थना के लिए अनुकूल हो। पूजा कक्ष के लिए सबसे अनुशंसित स्थानों में घर का पूर्वोत्तर कोना, पूर्व या उत्तर कोना होना चाहिए। पूजा के स्थान के लिए ये सभी दिशाएं सबसे ज्यादा शुभ मानी जाती हैं।

ये सभी दिशाएं ऊर्जा के प्राकृतिक प्रवाह के अनुरूप होती हैं। इस स्थान के लिए यदि हम सबसे अच्छी दिशा की बात करें तो वह उत्तर पूर्व ही मानी जाती है। यदि संभव न हो तो पूर्व या उत्तर दिशा पर भी पूजा का स्थान रख सकते हैं। इसके अलावा पूजा कक्ष हमेशा साफ-सुथरा और अव्यवस्था से मुक्त होना चाहिए। पूजा के स्थान पर हमेशा अच्छी रोशनी होनी चाहिए। 

क्या किचन में पूजा का स्थान बनाया जा सकता है 

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वास्तु की मानें तो आपको पूजा कक्ष और किचन एक साथ कभी भी नहीं रखना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि किचन अग्नि तत्व से जुड़ा होता है।  का स्थान रसोई में रखने से इन तत्वों के बीच टकराव पैदा हो सकता है, जिससे संभावित रूप से सकारात्मक ऊर्जा बाधित हो सकती है। इसके अलावा कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से आपको पूजा का स्थान किचन से अलग रखना चाहिए। 

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किचन और पूजा का स्थान एक साथ रखने से पवित्रता बाधित होती है 

रसोई एक ऐसा स्थान है जहां भोजन तैयार किया जाता है और इसमें अक्सर विभिन्न सामग्रियों और खाना पकाने की प्रक्रियाओं का उपयोग शामिल किया जाता है। किचन में कई तरह की अशुद्धियां बनी रहती हैं।

किचन में हर तरह का खाना बनाया जाता है और यदि इस जगह पर पूजा का स्थान होता है तो मंदिर की पवित्रता पर भी इसका असर होता है। किचन और पूजा का स्थान दोनों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए एक साथ न रखने की सलाह दी जाती है। किचन में इस्तेमाल की जाने वाली चीजें पूजा कक्ष के लिए आवश्यक पवित्र और स्वच्छ प्रकृति के अनुरूप नहीं हो सकती हैं।

किचन और पूजा का स्थान एक साथ रखने से पूजन में बाधा आ सकती है 

किचन आमतौर पर एक उच्च गतिविधि वाला क्षेत्र होता है और इसका प्राथमिक कार्य भोजन तैयार करना होता है। पूजा के स्थान के लिए शांत वातावरण और व्याकुलता हो सकती है। वास्तु सिद्धांतों के अनुसार, आपके किचन में ऊर्जा प्रवाह गतिशील है और इसमें निरंतर गति होती रहती है। ऐसे में यह पूजा कक्ष के लिए आवश्यक शांति और सकारात्मक ऊर्जा में हस्तक्षेप कर सकता है। इन्हीं कारणों से किचन और पूजा का स्थान एक साथ नहीं रखना चाहिए। 

यदि आप किसी वजह से पूजा का स्थान किचन के भीतर बनाते हैं तो यह वास्तु के अनुरूप नहीं होता है। ऐसा करने से मंदिर की पवित्रता बाधित होती है और यह घर में वास्तु दोष का कारण भी बन सकता है। 

 

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