भगवान विष्णु हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। विष्णु को विशेष रूप से सृष्टि के पालनकर्ता और रक्षक के रूप में पूजा जाता है। भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों को "दशावतार" कहा जाता है, जो उनकी धरती पर विभिन्न समय पर अवतार लेने की परंपरा को दर्शाते हैं। भगवान विष्णु ने मछली के रूप में अवतार लेकर उन्होंने मानव जाति को प्रलय से बचाया था। बोअर के रूप में अवतार लेकर उन्होंने पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाला था। नर-सिंह के रूप में अवतार लेकर उन्होंने राक्षस हिरण्यकश्यपु का वध किया था। बौने ब्राह्मण के रूप में अवतार लेकर उन्होंने राजा बलि को तीन पग में धरती, पाताल और स्वर्ग जीत लिया था। रामचंद्र के रूप में अवतार लेकर उन्होंने रावण का वध किया था। कृष्ण के रूप में अवतार लेकर उन्होंने कौरवों का संहार किया और धर्म की स्थापना की थी। विठ्ठल नाम भगवान विष्णु के एक विशेष रूप को दर्शाता है। विठ्ठल स्वरूप की पूजा खासकर महाराष्ट्र में की जाती है। अब ऐसे में भगवान श्रीहरि विष्णु का नाम विठ्ठल कैसे पड़ा। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
विठ्ठल' शब्द 'विट्' बुद्धिमान और 'ठल' स्थान शब्दों से मिलकर बना है। इस प्रकार, विठ्ठल का अर्थ हुआ 'बुद्धिमानों का स्थान' या 'ज्ञानी पुरुष'। विठ्ठल का अर्थ सृष्टि का आधार। विठ्ठल रूप मुख्यतः महाराष्ट्र में पूजा जाता है और यहां के लोगों के लिए यह एक बहुत ही प्रिय देवता हैं। इतना ही नहीं विठ्ठल को अक्सर 'विठोबा' के नाम से भी पुकारा जाता है।
कथा के अनुसार, एक बार देवी रुक्मिणी, भगवान विष्णु से कुछ कारणवश नाराज होकर द्वारका से चली गईं। भगवान विष्णु उन्हें ढूंढते हुए दिंडीवन पहुंचे, जहां उन्हें देवी रुक्मिणी मिलीं और उनका क्रोध शांत हुआ।
उसी समय, वहां एक आश्रम में पुंडलिक नाम का एक भक्त रहता था। वह अपने माता-पिता की अत्यंत सेवा करता था। भगवान विष्णु, पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न होकर, देवी रुक्मिणी के साथ उसके आश्रम गए।
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जब भगवान पुंडलिक के आश्रम पहुंचे, तो पुंडलिक अपने माता-पिता की सेवा में मग्न था। भगवान ने पुंडलिक से मिलने की इच्छा जताई, लेकिन पुंडलिक ने उन्हें थोड़ा इंतजार करने को कहा। उसने एक ईंट फेंककर भगवान से कहा कि वे उस पर खड़े रहें।
भगवान विष्णु, पुंडलिक की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस ईंट पर खड़े होकर उसकी प्रतीक्षा की। जब पुंडलिक ने सेवा समाप्त की और भगवान के पास आया, तो भगवान ने उससे वर मांगने को कहा। पुंडलिक ने भगवान से यहीं रहने का निवेदन किया।
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भगवान विष्णु ने पुंडलिक की भक्ति को देखकर उसकी इच्छा पूरी की और उसी ईंट पर खड़े होकर, कमर पर हाथ रखकर, प्रसन्न मुद्रा में विठ्ठल के रूप में अवतरित हो गए।
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Image Credit- HerZindagi
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