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Pitru Paksha Rules 2025: अविवाहित पुत्र की मृत्यु होने पर कौन करता है उसका श्राद्ध? तर्पण के नियम समेत जानें अन्य बातें

पितृपक्ष से जुड़े सवालों में से एक अहम् प्रश्न जो सभी के मन में आता है कि क्या अविवाहित पूर्वजों का भी श्राद्ध किया जाता है? यदि हां, तो उनका श्राद्ध कौन कर सकता है। आइए यहां जानें कि यदि अविवाहित पुत्र की मृत्यु हो जाए तो उनका श्राद्ध किसे करना चाहिए?
Editorial
Updated:- 2025-09-10, 17:05 IST

पितृपक्ष के कई नियमों में से पूर्वजों का श्राद्ध करना प्रमुख माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों में पूर्वज हमारे आस-पास मौजूद होते हैं और अपनी आत्मा की शांति की इच्छा रखते हैं। यही नहीं हमारे पितर जल और अन्न भी ग्रहण करते हैं। इसी वजह से पितृपक्ष में पूर्वजों के निमित्त कर्म किए जाते हैं और उनके लिए भोजन जल आदि अर्पित किया जाता है। गरुड़ पुराण और अन्य प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध केवल एक कर्मकांड ही नहीं, बल्कि मृतक की आत्मा की शांति और पितृ तर्पण की पूर्ति का सबसे महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। पितृपक्ष की प्रथाओं के अनुसार पिता का श्राद्ध बेटा कर सकता है, लेकिन इससे जुड़ा एक अहम सवाल यह है कि यदि अविवाहित पुत्र की मृत्यु हो जाए तो उसका श्राद्ध कर्म कौन करता है? आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इस प्रश्न के जवाब के बारे में। साथ ही, ऐसे श्राद्ध और तर्पण के नियमों के बारे में भी जानें यहां विस्तार से।

अविवाहित पुत्र की मृत्यु होने पर पिता करता है श्राद्ध

गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि अविवाहित पुत्र की मृत्यु हो जाती है, तो उसका श्राद्ध का पिता कर सकता है। अविवाहित पुत्र की कोई संतान न होने की वजह से यह कर्म पिता द्वारा किए जाने की सलाह दी जाती है। पिता को ही उसके श्राद्ध कर्म का पहला उत्तराधिकारी और मुख्य कर्ता माना जाता है। यह कर्म पुत्र की मुक्ति और पितरों की शांति का कारण बनता है।

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पिता की गैरमौजूदगी में कौन करता है अविवाहित पुत्र का श्राद्ध?

यदि पिता जीवित न हों या किसी कारणवश श्राद्ध करने की स्थिति में न हों, तो यह दायित्व घर के अन्य निकट संबंधियों द्वारा भी निभाया का सकता है। जैसे कि यह कर्म घर का सबसे बड़ा भाई कर सकता है. चाचा, ताऊ या फिर अन्य कोई ऐसा रिश्तेदार जिसका पुत्र से खून का रिश्ता हो, वो भी श्राद्ध कर सकता है। किसी भी अन्य संबंधी और पिता की अनुपस्थिति में पंडित भी श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं।

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अविवाहित लोगों का श्राद्ध विशेष क्यों माना जाता है?

शास्त्रों में मान्यता है कि जब किसी अविवाहित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उनका जीवन अपूर्ण माना जाता है, इसी वजह से उनका श्राद्ध जरूरी होती है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले। अविवाहित लोगों का श्राद्ध सामान्य श्राद्ध से अलग विधि से होता है। गरुड़ पुराण में नारायण बलि और प्रेत श्राद्ध का उल्लेख है। ऐसी मान्यता है कि इन विधियों से अविवाहित लोगों का श्राद्ध करने से ही उनकी आत्मा को शांति मिल सकती है।

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अविवाहित लोगों के श्राद्ध की विधि क्या है?

  • अविवाहित लोगों का पिंडदान करते समय, संकल्प अत्यंत महत्वपूर्ण है। कर्ता को उस मृतक का नाम और गोत्र स्पष्ट रूप से बताना चाहिए जिसके लिए पिंडदान किया जा रहा है और उनकी स्थिति का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहिए।
  • अविवाहित बेटे का श्राद्ध कर रहे हैं तो उसके नाम का स्मरण करें। ऐसा करने से अनुष्ठान की ऊर्जा और आशय सीधे उस विशिष्ट आत्मा पर केंद्रित हो जाता है।
  • अविवाहित व्यक्ति का एकोद्दिष्ट श्राद्ध यानी कि एकल आत्मा पर केंद्रित श्राद्ध किया जाता है। यह पारंपरिक रूप से किसी एक दिवंगत व्यक्ति के लिए किए जाने वाले कर्म है। अविवाहित पुत्र के लिए पिंड अर्पित करते समय यह श्राद्ध करना उचित माना जाता है।
  • इसके बाद पडित की उपस्थिति में पिंडदान किया जाता है तरह जल में तिल डालकर पुत्र का नाम स्मरण करते हुए उनके नाम पर तर्पण किया जाता है।
  • किसी भी अन्य श्राद्ध की ही तरह इसमें भी ब्राह्मण भोज कराया जाता है और दक्षिणा देखा विदा किया जाता है।

यदि अविवाहित पुत्र की मृत्यु हो जाए तो उसका श्राद्ध करना भी एक अनिवार्य कर्म है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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