Pitru Paksha 2024 Shradh Niyam: पितृपक्ष का हिंदू धर्म में बेहद महत्व है। पंचांग के अनुसार, यह हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अमावस्या तक चलता है। इस दौरान पितरों को स्मरण करके उनकी पूजा की जाती है। इस साल श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रहा है और 2 अक्टूबर तक चलेगा। पितृपक्ष के दिनों में तर्पण करने की मान्यता है। कहते हैं इस समय पितरों को तृप्ति और उनकी आत्माओं की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करने से जातक को पितृदोष से छुटकारा मिलता है। ऐसे में, लोगों के मन में अक्सर सवाल ये उठता है कि आखिर पितृपक्ष के दौरान घर का कौन सदस्य किन पूर्वज का श्राद्ध कर सकता है और इसके लिए क्या नियन हैं। तो चलिए इसके बारे में गया के ब्रह्मण अनिल उपाध्याय जी से विस्तार से जानते हैं।
पितृपक्ष में कौन कर सकता है किसका श्राद्ध?
- पुराणों के अनुसार, अगर किसी पितर के पुत्र न हो तो उनके भाई-भतीजे, माता के कुल के लोग यानी मामा या ममेरा भाई या शिष्य भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। अगर इनमें से कोई भी न हो तो कुल-पुरोहित या आचार्य भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
- विष्णुपुराण में कहा गया है कि मृत व्यक्ति के पुत्र, पौत्र या भाई के संतान आदि उनका पिण्ड दान कर सकते हैं।
- मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, किसी व्यक्ति का पुत्र न हो तो उसकी बेटी का पुत्र यानी नाती भी पिण्ड दान कर सकता है। अगर वो भी न हो तो स्वयं पत्नी भी बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है। अगर पत्नी भी न हो तो कुल का कोई भी सदस्य श्राद्ध कर्म कर सकता है।
- कुंवारी कन्याओं का पिण्ड दान उनके माता-पिता कर सकते हैं। वहीं, अगर बेटी शादीशुदा है और उनके परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं है, तो उसका भी पिण्ड दान करने का अधिकार पिता को है।
- पिता के लिए पिण्ड दान और तर्पण पुत्र को ही करना चाहिए, लेकिन पुत्र न हो तो पत्नी और पत्नी न हो तो सगा भाई भी श्राद्ध कर्म कर सकता है।
- बेटी का बेटा और नाना एक-दूसरे को पिण्ड दान करने के अधिकारी हैं। इसी तरह दामाद और ससुर भी एक-दूसरे के लिए पिंड दान कर सकते हैं। इतना ही नहीं, बहु भी अपनी सास का पिण्ड दान कर सकती है।
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पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से लाभ
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान पितरों को तृप्त करने वाली चीजों का दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। यम स्मृति में भी बताया गया है कि इन 16 दिनों में पितरों के लिए विशेष पूजा-अर्चना करना लाभप्रद होता है। पुराणों की बात करें तो ब्रह्म, विष्णु, नारद, स्कंद और भविष्य पुराण में भी श्राद्धपक्ष के दौरान पितरों की पूजा का जिक्र किया गया है। पुराणों के मुताबिक, श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही पितरण मृत्युलोक में अपने वंशजों को देखने आते हैं और तर्पण ग्रहण करके पुनः लौट जाते हैं। इसलिए, पितृपक्ष के दौरान पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और अन्य तरह के दान करना जरूरी होता है।
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Image credit- Bihar Tourism Website
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