हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ का बहुत महत्व माना गया है। वहीं, अगर पूजा-पाठ के दौरान व्रत का पालन किया जाए तो इससे पूजा-पाठ का चौगुना फल मिलता है, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आप कितने भी व्रत रख लें मगर देवी-देवताओं द्वारा आपका वह व्रत स्वीकार नहीं होता है और न ही व्रत पूर्ण माना जाता है। इसके पीछे का कारण हमें वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने बताया।
कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से पूजा-पाठ और व्रत का फल नहीं मिल पाता है। ज्योतिष और धर्म दोनों में इसका गहरा महत्व बताया गया है कि व्रत या पूजा केवल शरीर को भूखा रखने का नाम नहीं है बल्कि यह मन, वचन और कर्म की शुद्धता से जुड़ा है। जब हम इन नियमों का पालन नहीं करते तो हमारे व्रत का उद्देश्य पूरा नहीं होता और हमें उसका फल नहीं मिल पाता।
जब हम व्रत रखते हैं तो हमारा मन शांत और पवित्र होना चाहिए। अगर व्रत के दौरान हम दूसरों के प्रति क्रोध, घृणा या ईर्ष्या का भाव रखते हैं तो हमारे व्रत का कोई फल नहीं मिलता। ज्योतिष के अनुसार, मन का सीधा संबंध चंद्रमा से होता है। अगर मन अशांत है तो चंद्रमा भी कमजोर होता है जिससे पूजा का फल नहीं मिल पाता। धार्मिक ग्रंथों में भी कहा गया है कि भगवान उसी की पूजा स्वीकार करते हैं जिसका मन निर्मल और शुद्ध हो।
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व्रत के दौरान अगर हम लहसुन, प्याज, मांस या शराब का सेवन करते हैं, तो व्रत खंडित हो जाता है। ज्योतिष में इन चीजों को तामसिक माना गया है जो राहु-केतु जैसे पाप ग्रहों को मजबूत करती हैं। इन चीजों का सेवन करने से शरीर और मन दोनों अशुद्ध हो जाते हैं जिससे पूजा का सकारात्मक प्रभाव नष्ट हो जाता है। इसलिए व्रत के दौरान सात्विक भोजन, जैसे फल, दूध और सादा भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
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व्रत के दौरान झूठ बोलना, किसी की निंदा करना या अपशब्दों का प्रयोग करना भी व्रत को भंग कर देता है। धर्म में कहा गया है कि वाणी की शुद्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब हम नकारात्मक बातें करते हैं तो हमारी सकारात्मक ऊर्जा कम हो जाती है। ज्योतिष में वाणी का संबंध बुध ग्रह से होता है। अगर हम अपनी वाणी को दूषित करते हैं तो बुध ग्रह कमजोर होता है जिससे हमारे व्रत का फल नहीं मिलता।
कुछ लोग व्रत इसलिए रखते हैं ताकि समाज में उनकी तारीफ हो या वे अपनी भक्ति का दिखावा कर सकें। जब व्रत या पूजा में अहंकार का भाव आता है तो उसका आध्यात्मिक महत्व खत्म हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार, अहंकार का संबंध सूर्य से होता है। अगर हम अहंकार में आकर कोई पूजा करते हैं तो सूर्य ग्रह नकारात्मक फल देता है। भगवान केवल सच्ची श्रद्धा और विनम्रता से की गई पूजा को ही स्वीकार करते हैं, न कि दिखावे वाली पूजा को।
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हर व्रत के अपने विशेष नियम होते हैं, जैसे किस समय खाना है, क्या खाना है और क्या नहीं। अगर हम इन नियमों का ठीक से पालन नहीं करते तो व्रत का फल नहीं मिलता। उदाहरण के लिए, कुछ व्रतों में दिन में सोना मना होता है जबकि कुछ में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। इन नियमों का पालन न करने पर न केवल व्रत अधूरा रहता है बल्कि यह हमारे कर्मों को भी प्रभावित करता है जिससे पूजा का शुभ फल हमें नहीं मिल पाता।
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image credit: herzindagi
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