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क्या आप जानती हैं पैरों में आलता लगाने का महत्व?

हिंदू धर्म में कई ऐसी बातें हैं जो वैवाहिक जीवन का हिस्सा मानी जाती हैं। ऐसे ही सोलह श्रृंगार को दुल्हन के लिए जरूरी माना जाता है और इसमें कई आवश्यक सामग्रियां शामिल होती हैं। 
Editorial
Updated:- 2023-12-26, 17:00 IST

हिन्दू परंपरा में ऐसी कई चीजें हैं जिनका महत्व सदियों से चला आ रहा है। ऐसी ही कुछ सामग्रियां दुल्हन के सोलह श्रृंगार का हिस्सा हैं, इनमें से एक है अलता। यह एक ऐसी सामग्री है जो एक दुल्हन और शादीशुदा महिला की खूबसूरती में चार-चांद लगाता है।

यह गहरे लाल रंग का तरल पदार्थ होता है जिसका उपयोग हथेलियों और पैरों को सजाने के लिए किया जाता है। आजकल यह भले ही फैशन सिंबल क्यों न बन चुका हो, लेकिन इसका भारतीय परंपरा से भी गहरा संबंध है।

जिसे सुहाग की निशानी के रूप में देखा जाता है। इस लाल रंग से पैरों को रंगना और पैरों की सुंदरता को निखारने के लिए यह एक अच्छी सामग्री माना जाता है। आलता को महावर के नाम से भी जाना जाता है जो गहरे गुलाबी रंग का होता है। यह एक सुहाग की ऐसी सामाग्री के रूप में सामने आता है जिसे हिंदू शादियों का अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। लाल रंग को उर्वरता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है और इसका लाल रंग सौभाग्य का संकेत देता है। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी से जानें कि आखिर क्यों सदियों से पैरों में आलता लगाने की परंपरा चली आ रही है और इसका क्या महत्व है।  

क्या है आलता का इतिहास 

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हालांकि इस बात का सीधा प्रमाण नहीं है कि आलता की उत्पत्ति कहां से हुई, लेकिन हिंदू उपनिषदों में इसके कई प्रमाण मिलते हैं कि कैसे यह भारतीय हिंदू परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना।

इस पदार्थ को सोलह श्रृंगार का रूप दिया गया। अगर इसके इतिहास की बात करें तो पौराणिक कथाओं में कृष्ण जी राधा रानी का श्रृंगार करते समय उनके पैरों में आलता लगाते थे। इसका पता पौराणिक चित्रणों में भी मिलता है, जिसमें भगवान कृष्ण को अपनी प्रिय राधा के पैरों पर अल्ता लगाते हुए देखा गया था। ऐसा माना जाता है कि इसका इतिहास महाभारत काल से चला आ रहा है। 

आलता के महत्व के बारे में एक और उल्लेखनीय बात यह कही जाती है कि इसका रंग लाल होता है जो समृद्धि का प्रतीक है। जब कोई भी सुहागन स्त्री पैरों में आलता लगाती है तो ये उसकी और परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। 

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पैरों में आलता लगाने का महत्व 

पैरों पर आलता लगाना एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में सामने आता है। इसका जुड़ाव कई धार्मिक प्रथाओं से है। हिंदू धर्म में आलता विभिन्न अनुष्ठानों और त्योहारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इसका लाल रंग पवित्रता और दिव्य स्त्री ऊर्जा का प्रतीक है। धार्मिक समारोहों, शादियों या त्योहारों के दौरान, पैरों पर आलता लगाना बहुत शुभ माना जाता है जो किसी भी अवसर की पवित्रता को दर्शाता है और उस अवसर के महत्व को बढ़ाता है। हिंदू धर्म के किसी भी व्रत त्योहार  में शादी शुदा महिलाओं का आलता लगाना बहुत जरूरी माना जाता है। 

हिंदू शादियों में आलता लगाने का महत्व 

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हिंदू शादियों में दुल्हन के श्रंगार के अनिवार्य हिस्से के रूप में महिलाएं पैरों पर आलता लगाती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह अनुष्ठान समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए देवताओं का आशीर्वाद प्रदान करता है।

विवाह में दुल्हन ही नहीं बल्कि दूल्हे के पैरों में भी आलता या महावर लगाया जाता है जिसे वैवाहिक जीवन की सफलता का संकेत माना जाता है। यही नहीं इसे दो आत्माओं के मिलन के रूप में भी देखा जाता है। 

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शुभता का प्रतीक है अलता 

भारतीय संस्कृति में आलता को एक शुभ प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इससे जीवन में सौभाग्य और शुभता बनी रहती है। इसी  विवाह में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि आलता में सुरक्षात्मक शक्तियां भी मौजूद होती हैं और इसे पैरों में लगाने से शरीर के साथ मानसिक सुरक्षा भी बनी रहती है। यही नहीं अलता लगाने वाली महिला या पुरुष के आस-पास एक सुरक्षात्मक कवच बन जाता है जो सकारात्मक बातावरण को प्रेरित करता है। 

सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है आलता 

अलता सोलह श्रृंगार का ऐसा हिस्सा है जी न सिर्फ पैरों की बल्कि पूरे शरीर की खूबसूरती बढ़ाता है। किसी भी वस्त्र और आभूषण के साथ आलता का लाल रंग दुल्हन या किसी भी महिला की खूबसूरती को कई गुना तक बढ़ाने में मदद करता है।  

वास्तव में आलता सौभाग्य, सौंदर्य और धर्म का प्रतीक होने की वजह से भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और  खूबसूरती बढ़ाने के साथ कई ज्योतिष लाभों की वजह से आप भी इसे अपने श्रृंगार का हिस्सा बना सकती हैं। 

 

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