
हिंदू धर्म में विवाह का कार्य अहम होता है। जब भी किसी की शादी होती है, तो सभी रीति-रिवाजों का ध्यान रखकर शादी को संपन्न कराया जाता है। हर एक रस्म को अपने हिसाब से लोग पूरी करते हैं। लेकिन सिंदूरदान एक ऐसी रस्म होती है, जो हर किसी के यहां एक जैसी होती है। इसमें दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है। इसके बाद ही शादी संपन्न होती है। लेकिन मांग में कितनी बार सिंदूर भरा जाता है। इसके बारे में आपको आर्टिकल में बताते हैं, जिसकी जानकारी हमें पंडित विघाशंकर जी ने दी।
सिंदूरदान हिंदू विवाह की अहम रस्म होती है। इसमें दूल्हा, दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है। यह रस्म विवाह के दौरान निभाई जाती है। इसे सुहाग का प्रतीक कहा जाता है। कई लोग सिंदूर को सोने की अंगूठी से भरते हैं, तो कुछ लोग चांदी के सिक्के से सिंदूर भरा जाता है।

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जब भी दूल्हा-दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है, तो पंडित जी अक्सर कहते हैं कि नाक पर सिंदूर जरूर गिरना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, जिस सिंदूर को शादी के समय भरा जाता है। उसे ही महिला को 1 साल तक लगाना चाहिए। इससे दोनों के बीच प्यार बना रहता है।
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पंडित जी के बताए अनुसार ऐसे होता है सिंदूरदान। साथ ही, इसका महत्व भी उन्होंने हमें बताया।
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