श्री कृष्ण ने देवकी के आठवें पुत्र के रूप में ही क्यों लिया जन्म? जानें इस रोचक रहस्य के बारे में

कृष्ण जी ने देवकी के आठवें पुत्र के रूप में ही जन्म क्यों लिया था और इस अंक का रहस्य क्या है। इसके बारे में विस्तार से जानकारी लेने के लिए आप भी यह लेख जरूर पढ़ें। यहां एस्ट्रोलॉजर अमिता रावल इस प्रश्न के रहस्य के बारे में बता रही हैं।
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भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हिंदू धर्म की सबसे अद्भुत घटनाओं में से एक माना जाता है। उनका जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र में, मथुरा के कारागार हुआ था। देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण जी का जन्म हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मथुरा का राजा कंस अपनी बहन देवकी के विवाह में आकाशवाणी सुनकर भयभीत हो गया था कि देवकी का आठवां पुत्र ही उसका विनाश करेगा। इसी डर से कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में कैद कर लिया और उनकी हर संतान को जन्म लेते ही मार डाला। लेकिन एक प्रश्न यह भी दिमाग में आता है कि भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेते समय आठवें पुत्र के रूप में ही क्यों जन्म लिया? आइए एस्ट्रोलॉजर अमिता रावल से जानें कि क्या है इसका रहस्य और 8 अंक का महत्व।

श्रीकृष्ण ने आठवें पुत्र के रूप में भी जन्म क्यों लिया था?

श्री कृष्ण के पहले उनके साथ भाइयों ने जन्म लिया था लेकिन उनमें से 6 को कंस ने मार दिया था। भागवत महापुराण के अनुसार देवकी के छह पुत्र मरीचि के पुत्रों के पुनर्जन्म थे, इसलिए श्री कृष्ण ने उनके बाद जन्म लिया क्योंकि उनसे पहले सभी पुत्रों को अपने जन्म लेने का मकसद पूरा करना था।

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देवकी के छह पुत्रों को ब्रह्मा जी ने उनकी हंसी उड़ाने के लिए श्राप दिया था इसलिए वह कालनेमि की पुत्रों के रूप में भी पैदा हुए। कालनेमि के रूप में कंस उनके पिछले जन्म में पिता थे। क्योंकि उन्हें अमरत्व का वरदान भी प्राप्त था तो श्राप और वरदान के विरोध को खत्म करने के लिए योग माया ने कालनेमि के छह पुत्रों को गहरी नींद में डाल दिया और उनकी आत्मा को उन सोए हुए शरीर से निकाल कर देवकी के गर्भ में डाल दिया। सातवें पुत्र बलराम थे और त्रेता युग में भगवान राम ने लक्ष्मण को वचन दिया था कि वह अपने अगले अवतार में उनके छोटे भाई बनेंगे, इसी वजह से कृष्ण जी ने द्वापर युग में बलराम के छोटे भाई के रूप में जन्म लिया। यही वजह थी कि कृष्ण ने देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।

कंस का अत्याचार और भविष्यवाणी

मथुरा का राजा कंस बहुत ज्यादा अत्याचारी और निर्दयी था। अपनी बहन देवकी के विवाह के दिन एक आकाशवाणी हुई कि 'हे कंस तुम्हारा अंत तुम्हारी बहन देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगा।' यह सुनते ही कंस क्रोधित हो उठा और देवकी को मारने के लिए आगे बढ़ा। जब देवकी के पति वासुदेव ने यह सब देखा तो उसने कंस से प्रार्थना की कि वे देवकी को न मारें और वो अपनी हर संतान के जन्म के तुरंत बाद ही कंस को सौंप देंगे।

कंस ने इस भविष्यवाणी से भयभीत होकर देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद कर दिया और उनकी हर संतान को जन्म होते ही मार डाला। इस तरह से भविष्यवाणी और पहले से निर्धारित समय की वजह से आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।

ज्योतिष में 8 अंक का महत्व क्या है

हिंदू शास्त्रों और ज्योतिष के अनुसार में ‘8’ अंक को विशेष महत्व दिया जाता है। इसी वजह से अष्टमी तिथि को ही कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटित होती हैं। अष्टमी तिथि देवी दुर्गा और भगवान विष्णु की उपासना के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।

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अष्टांग योग, अष्टसिद्धियां, अष्टलक्ष्मी आदि में ‘8’ को पूर्णता और दिव्यता का प्रतीक माना गया है। यही नहीं 8 अंक को अनंत का प्रतीक भी कहा जाता है और यह भगवान की अनंत शक्तियों और लीला का प्रतीक भी है।इसी वजह से श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र में और आठवें पुत्र के रूप में हुआ।

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कृष्ण जन्म के लिए योगमाया की योजना क्या थी?

श्रीकृष्ण के जन्म से ठीक पहले, योगमाया ने कंस को भ्रमित करने और अपनी योजना को सफल बनाने के लिए बलराम को रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया, जिससे आठवें गर्भ के रूप में स्वयं भगवान का अवतरण संभव हो सका। आठवां पुत्र केवल एक क्रम संख्या नहीं, बल्कि यह भगवान की अनंतता और पूर्णता का प्रतीक भी है। ‘8’ अंक जब क्षैतिज रूप से लिखा जाता है, तो यह अनंत का चिह्न बन जाता है।

निष्कर्ष: भगवान श्रीकृष्ण का देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म कोई साधारण घटना नहीं थी बल्कि इसके पीछे कई गहरे पौराणिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक कारण छिपे हुए थे।

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