Rukmini Ashtami 2024: रुक्मिणी अष्टमी के दिन करें इस स्तोत्र का जाप, मिल सकता है मनचाहा वर

हिंदू धर्म में सभी तिथियों को महत्वपूर्ण माना गया है। वहीं रुक्मिणी अष्टमी तिथि के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। अब ऐसे में आइए इस लेख में विस्तार से रुक्मिणी स्तोत्र का बारे में जानते हैं। 
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हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मां रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत रखा जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन द्वापर युग में विदर्भ के राजा भीष्मक के घर देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था। देवी रुक्मिणी को मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन व्रत करने और देवी रुक्मिणी की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को अन्न, धन, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अब ऐसे में रुक्मिणी अष्टमी का स्तोत्र करने से व्यक्ति को उत्तम परिणाम मिल सकते हैं। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

रुक्मिणी अष्टमी के दिन करें इस स्तोत्र का पाठ

Rukmini stotra

अथ श्री पांडुरंग रुक्मिणी कवच स्तोत्र मंत्रस्य
श्री स्वामी समर्थ सद्गुरू देवता
ओंकार बीजं
पुंडलीक शक्ती
श्री ज्ञानेश्वर किलकम्
इह जन्मे चिदानंद सन्मान प्रतिष्ठा प्राप्यर्थम्
इदं स्तोत्र जपे विनियोगः।

अथ न्यासः -

ॐ नमो भागवते विठ्ठलाय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ तत्वप्रकाशात्मने तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ शंखचक्रगदाधरात्मने मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ सृष्टिसंरक्षणार्थाय अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ त्रिमूर्त्यात्मकाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ वरदाभयहस्ताय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

एवं हृदयादिन्यासः -

महायोगपीठे तटे भीमरथ्या वरं नीलमेघावभासं आनंदमकंदं ।
परब्रह्म लिंगं प्रमाणं कौस्थुभालंकृतं श्रीनिवासमं शिवं शांतम् ॥
चारूहासयम कंजनेत्रं सुरैरर्चितं दिव्यरत्नविभुषितम्
तुलसीमला धरम् तम् पांडुरंगं मम् ध्यानं कुरु ॥
जगन्मातरं मातरं पद्मजाः
परब्रह्मशक्तिं परामप्रमेयं ।
अनंतरूपामं अचिंत्याम् शु‍भां सुमान्यां शरण्यामं च् ॥
विदर्भेशकन्यां चंद्रभागातीरे वसन्याम् हरिप्रिया
हरिवल्लभी श्री रुक्मिणी माता मम् ध्यानं कुरु ॥
पूर्वे श्री ज्ञानेश्वर माऊली सहित सर्वदेवस्वरुपाय
सर्वयंत्रस्वरुपिणे सर्वतंत्रस्वरुपाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
अग्नेयां श्री तुकाराम सहित परमंत्रप्रणाशाय परयंत्रनिवारिणे
परतंत्रविनाशाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
दक्षिणस्यां गोरा कुंभार सहित परात्परस्वरुपाय परमात्मस्वरुपिणे
परब्रह्मस्वरुपाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
नैऋत्याम् श्री निवृत्तीनाथ सहित विश्वरुपस्वरुपाय विश्वव्यापीस्वरुपिणे
विश्वम्भरस्वमित्राय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
पश्चिमे श्री सोपान काका सहित परमहंसस्वरुपाय सोऽह
हंसस्वरुपिणे हंसमंत्रस्वरुपाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
वायव्यां श्री मुक्ताई सहित अनिर्वाच्य स्वरुपी अखण्ड
ब्रह्म रुपिणे आत्मतत्वप्रकाशाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
उत्तरस्यां श्री एकनाथ महाराज सहित क्षराक्षरस्वरुपाय
अक्षरायस्वरुपिणे ओंकारवाच्यरुपाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
ईशान्याम् श्री नामदेव महाराज सहित बिंदूनादकलातीत
भिन्नदेहसमप्रभ अभिन्नायैव विश्वाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
ऊर्ध्वदिशेनं भक्त पुंडलिक सहित भीमातीरनिवासाय
पंढरीपुरवासीने पांडुरंगप्रकाशाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥
अधोदिशेनं श्री जनाई सहित अन्य सर्व संत सहित सर्वयोगार्थत
तत्वज्ञ सर्वभूतहितेरत सर्वलोकहितार्थाय श्री पांडुरंग रुक्मिणी मम् ध्यानं कुरु ॥

इति ध्यानं -

अथ प्रयॊगमंत्रम्

ॐ नमो भागवते परमात्मने
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते परमात्मने ॐ
नं नं नं नं नं नं नं नं नं
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते परमात्मने
ॐ मं मं मं मं मं मं मं मं मं
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते परमात्मने
ॐ नां नां नां नां नां नां नां नां नां
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते परमात्मने ॐ
रां रां रां रां रां रां रां रां रां
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते परमात्मने ॐ
यं यं यं यं यं यं यं यं यं
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते परमात्मने ॐ
णां णां णां णां णां णां णां णां णां
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते परमात्मने ॐ
यं यं यं यं यं यं यं यं यं
श्री पांडुरंग पिता रुक्मिणी माता हुँ फट् घे घे घे स्वाहा ।

अथ मूल मंत्र

ॐ नमो भागवते श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी माता

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ॐ ज्ञानेश्वर संजीवन कारी
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
पूर्वे इंद्रधता ज्ञानधाता ज्ञानवेत्ता ज्ञानशिरोमणी
ज्ञानदा ज्ञानदर्शी ज्ञानपर्जन्यकारी शंखधारी
तुकाराम ज्ञानदायी हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते
श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी माता
ॐ ज्ञानेश्वर संजीवन कारी ॐ
नं नं नं नं नं नं नं नं नं
अग्नेयां अग्निधाता मंगलकारी मंगलधाता
मंगलकर्ता मंगलप्रसारी मंगलप्रकाशी
सुदर्शनधारी तुकाराम ज्ञानदायी

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हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते
श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी माता
ॐ ज्ञानेश्वर संजीवन कारी ॐ
मं मं मं मं मं मं मं मं मं
दक्षिणस्यां यमधाता जीवनधाता जीवनमार्गदर्शी
जीवनप्रीणनकर्ता जीवनव्यापकी जीवनसंचार
गदाधारी तुकाराम ज्ञानदायी
हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते
श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी माता
ॐ ज्ञानेश्वर संजीवन कारी ॐ
वां वां वां वां वां वां वां वां वां
नैऋत्याम् निऋतीधाता भाग्यशाली भाग्यधाता
भाग्यप्रकाशी भाग्यज्ञाता भाग्यप्रफुल्लितकारी
पद्मधारी तुकाराम ज्ञानदायी
हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते
श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी माता
ॐ ज्ञानेश्वर संजीवन कारी ॐ
सुं सुं सुं सुं सुं सुं सुं सुं सुं
पश्चिमे वरुणधाता प्रेमशाली प्रेमधाता प्रेमप्रकाशी
प्रेमज्ञाता प्रेमप्रफुल्लितकारी कौस्तुभधारी
तुकाराम ज्ञानदायी
हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते
श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी माता ॐ
ज्ञानेश्वर संजीवन कारी
ॐ दें दें दें दें दें दें दें दें दें वायव्याम
वायुधाता कामधेनुधारी गोपाली गोवर्धनधारी
गोकुळवासी गोपी गोवत्सधारी तुकाराम
ज्ञानदायी हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी माता
ॐ ज्ञानेश्वर संजीवन कारी ॐ
दां दां दां दां दां दां दां दां दां
उत्तरस्यां कुबेरधाता धनधान्यदायी धनधान्यकी
धनाढ्य धनधान्यवर्धनकारी धनधान्यसमृद्धीकारी
तुलसीमालाधारी तुकाराम ज्ञानदायी
हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भागवते श्री विठ्ठल पिता रुक्मिणी मात
ॐ ज्ञानेश्वर संजीवन कारी ॐ
यं यं यं यं यं यं यं यं यं
ईशान्यां ईशधाता संजीवनकारी संजीवनदायी
संजीवनप्रकाशी संजीवनप्रसारी संजीवनधाता
संजीवनबुटीधारी तुकाराम ज्ञानदायी
हुँ फट् घे घे घे घे घे घे घे घे घे स्वाहा ।

इति मूलमंत्र -

rukmini devi

यं इदं कवचं धारणेन अष्टसिद्धीम लभते
प्रतिपदां पठणेन सुखं अवाप्नोति ।
द्वितियां पठणेन समृद्धी प्राप्नोति ।
तृतियां पठणेन मनः शांती च लभते ।
चतुर्थयां पठणेन आत्मसौख्यं प्राप्नोति ।
पंचम्याम् पठणेन पुत्रपौत्र संपत भवती ।
षष्ठ्याम पठणेन सर्व देवदेवता वश्यमं करोति ।
सप्तम्याम् पठणेन सौभाग्य वर्धयती ।
अष्ठम्याम् पठणेन नवदुर्गाशक्तिं च लभते ।
नवम्याम् पठणेन विश्वव्यापी सिद्धीं च लभते ।
दशम्म्याम् पठणेन मृत्युंजय सिद्धीं च लभते ।
एकादश्याम् पठणेन चतुःषष्ठीकलाम् प्राप्नोति ।
द्वादश्याम् पठणेन शिवशक्ती सानिध्य लभते ।
त्रयोदश्याम् पठणेन कामदेव रती प्रसन्नं करोति ।
चतुर्दश्याम् पठणेन ज्ञानवंत करोति ।
पौर्णिमा पठणेन महातेजोमयी प्रतिष्ठां च लभते ।
अमावस्यां पठणेन शत्रुनाशनं तथा षट्कर्म सिद्धीं च लभते ।
आषाढी कार्तिकी एकादश्याम् पंढरपूर यात्रा कालेच
पठणेन स सर्व सिद्धीं च लभते ।
तथा विष्णुलोकं प्राप्नोति न संशयः ॥
॥ श्री विठ्ठलरुक्मिपर्णमस्तु ॥
॥इति श्री पांडुरंग रुक्मिणी कवच संपूर्ण॥
॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||

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Image Credit- HerZindagi

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