भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन राधा अष्टमी मनाई जाती है। इस साल राधा अष्टमी 11 सितंबर, दिन बुधवार की है। मान्यता है कि राधा अष्टमी के दिन जितना लाभकारी राधा रानी की पूजा करना होता है, उतना ही शुभ राधा अष्टमी की व्रत कथा सुना या पढ़ना माना जाता है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं राधा अष्टमी की व्रत कथा के बारे में विस्तार से।
राधा अष्टमी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, श्री राधा रानी और श्री कृष्ण के धाम गोलोक में एक बार श्रीदामा जी पधारे जो कान्हा के परम भक्त और उनके साथी माने जाते हैं। यूं तो श्रीदामा श्री कृष्ण के साथ रहते थे लेकिन एक बार ब्रह्म ज्ञान के बारे में जानने हेतु वह गोलोक से बाहर गए।
जब श्रीदामा वापस लौटे और कृष्ण दर्शनों के लिए उनके पास पहुंचे तब श्री राधा रानी के साथ श्री कृष्ण लीला करने में इतने लीन थे कि उन्हें श्रीदामा के आने का आभास ही नहीं हुआ। यह देख श्रीदामा बहुत दुखी हुए और उन्हें श्री राधा रानीके ऊपर भयंकर क्रोध आ गया।
श्रीदामा का मानना था कि राधा रानी के कारण ही श्री कृष्ण उनसे दूर हो गए हैं। बस यही सोचते हुए उन्होंने श्री राधा रानी को यह श्राप दे दिया कि वह श्री कृष्ण से दूर हो जाएंगी और पृथ्वी पर जन्म लेंगी। असल में यह सब राधा रानी और कान्हा की ही रचाई हुई लीला थी।
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कृष्ण अवतार के दौरान प्रेम की मूल वाख्या को समझाने के लिए ही राधा रानी और श्री कृष्ण ने श्राप का यह खेल रचा ताकि कृष्ण से पहलेराधा रानीका पृथ्वी पर अवतरण हो जाए। इसके बाद राधा रानी का भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन बरसाना में जन्म हुआ।
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image credit: herzindagi
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