आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी के रूप में मनाया जाता है। यह पितृपक्ष की नवमी तिथि होती है। जिस प्रकार पितृपक्ष के दौरान पुत्र अपने पिता, बाबा और अन्य पितरों के लिए श्राद्ध व तर्पण करते हैं, उसी प्रकार मातृ नवमी के दिन घर की दिवंगत माताओं और महिला पितरों की शांति हेतु तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन के बाद से मृत महिलाओं की आत्मा पृथ्वी से वापस अपने लोक लौट जाती हैं और उनकी श्रद्धापूर्वक विदाई की जाती है। इसके साथ ही इस दिन उन महिलाओं का श्राद्ध कर्म भी किया जाता है जिनकी मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो। यही नहीं जिनकी तिथि का सही ज्ञान न हो उनका श्राद्ध भी मातृ नवमी के दिन ही होता है। मातृ नवमी को ब्राह्मणी को भोजन कराना और सुहागिन महिलाओं को अन्न या वस्त्र दान करना पुण्यकारी माना गया है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें मातृ नवमी इस साल कब पड़ेगी। इस दिन के श्राद्ध का महत्व क्या है और इस दिन किन बातों और नियमों का पालन जरूरी होता है।
ज्योतिष में ऐसी मान्यता है कि मातृ नवमी के दिन दिवंगत स्त्रियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए किसी सुहागिन ब्राह्मण महिला को भोजन कराया जाता है और उन्हें सामर्थ्य के अनुसार दान दिया जाता है। यही नहीं उन्हें सुहाग की सामग्री भी अर्पित की जाती है। ऐसा करने से मृत सुहागिन महिलाओं को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही नहीं इससे आपको भी अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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मातृ नवमी को स्त्री पितरों के श्राद्ध के लिए सबसे उपयुक्त तिथि माना गया है। इस दिन सभी दिवंगत माताओं और महिला सदस्यों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। मान्यता है कि यदि इस तिथि में श्राद्ध कर्म न किये जाएं तो मृतक महिलाओं की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, जिससे घर में पितृ दोष आ सकते हैं। इसी वजह से नवमी के श्राद्ध को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। श्राद्ध की इस तिथि पर देवी-देवताओं की बजाय अर्धदेवता धूरीलोचन का आह्वान किया जाता है। धूरी का अर्थ धुआं और लोचन का अर्थ आंख होता है, अतः धूरीलोचन वे देवता माने गए हैं जिनकी आंखें धुएं से आधी बंद रहती हैं। इस दिन मृत पूर्वजों की विदाई धुंए के माध्यम से की जाती है।
इस दिन परंपरागत रूप से महिलाओं के निमित्त श्राद्ध कर्म किया जाता है और दिवंगत स्त्रियों की आत्मा की शांति के लिए भोजन और तर्पण कर्म होता है।
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