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Matru Navami 2025: 14 या 15 सितंबर, कब पड़ रही है मातृ नवमी? मृत माताओं का श्राद्ध करने की सही तिथि के साथ जानें नियम

हिंदू धर्म में जितना महत्व पितृपक्ष का होता है उतना ही मातृ नवमी का भी होता है। इस दिन सभी मृत माताओं का श्राद्ध कर्म होता है और इसका विशेष महत्व है। आइए जानें इस साल कब पड़ेगी यह तिथि और इससे जुड़े नियमों के बारे में।
Editorial
Updated:- 2025-09-09, 20:32 IST

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी के रूप में मनाया जाता है। यह पितृपक्ष की नवमी तिथि होती है। जिस प्रकार पितृपक्ष के दौरान पुत्र अपने पिता, बाबा और अन्य पितरों के लिए श्राद्ध व तर्पण करते हैं, उसी प्रकार मातृ नवमी के दिन घर की दिवंगत माताओं और महिला पितरों की शांति हेतु तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन के बाद से मृत महिलाओं की आत्मा पृथ्वी से वापस अपने लोक लौट जाती हैं और उनकी श्रद्धापूर्वक विदाई की जाती है। इसके साथ ही इस दिन उन महिलाओं का श्राद्ध कर्म भी किया जाता है जिनकी मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो। यही नहीं जिनकी तिथि का सही ज्ञान न हो उनका श्राद्ध भी मातृ नवमी के दिन ही होता है। मातृ नवमी को ब्राह्मणी को भोजन कराना और सुहागिन महिलाओं को अन्न या वस्त्र दान करना पुण्यकारी माना गया है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें मातृ नवमी इस साल कब पड़ेगी। इस दिन के श्राद्ध का महत्व क्या है और इस दिन किन बातों और नियमों का पालन जरूरी होता है।

साल 2025 में कब है मातृ नवमी?

  • हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल पितृपक्ष की नवमी तिथि यानी कि मातृ नवमी 15 सितंबर, सोमवार के दिन पड़ेगी।
  • मातृ नवमी कुतुप मूहूर्त- प्रातः11:51 बजे से दोपहर 12:41 तक
  • मातृ नवमी रौहिण मूहूर्त- 15 सितंबर, दोपहर 12:41 बजे से लेकर 01:30 बजे तक
  • यदि आप मातृ नवमी का श्राद्ध करती हैं तो यही समय उचित माना जा रहा है क्योंकि श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ समय अभिजीत मुहूर्त ही होता है।

matru navami kab hai 2025

मातृ नवमी पर मिलता है सुहागिन महिला का आशीर्वाद

ज्योतिष में ऐसी मान्यता है कि मातृ नवमी के दिन दिवंगत स्त्रियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए किसी सुहागिन ब्राह्मण महिला को भोजन कराया जाता है और उन्हें सामर्थ्य के अनुसार दान दिया जाता है। यही नहीं उन्हें सुहाग की सामग्री भी अर्पित की जाती है। ऐसा करने से मृत सुहागिन महिलाओं को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही नहीं इससे आपको भी अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

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matra navami ke din kya karen

मातृ नवमी पर श्राद्ध करने के नियम क्या हैं?

  • मातृ नवमी के दिन घर की महिलाएं प्रातः जल्दी उठें और स्नान आदि से निवृत्त होकर श्राद्ध कर्म करें।
  • घर की दक्षिण दिशा में एक चौकी लगाएं और उसमें मृतक की तस्वीर रखें।
  • मृतक की तस्वीर के सामने तेल का दीपक जलाएं और उनकी आत्मा की शांति के लिए उपाय किए जाते हैं।
  • विधि विधान से श्राद्ध कर्म करें और तर्पण करें। किसी सुहागिन महिला को भोजन कराएं।
  • यदि संभव हो तो ब्राह्मण महिला को भोजन कराना शुभ माना जाता है। ब्राह्मणी को सुहाग की सामग्री अर्पित करें।
  • मातृ नवमी के दिन भी पंचबलि कर्म भी किया जाता है और ब्राह्मणी को भोजन कराने के बाद मृत महिलाओं की विदाई की जाती है।

मातृ नवमी श्राद्ध का महत्व

मातृ नवमी को स्त्री पितरों के श्राद्ध के लिए सबसे उपयुक्त तिथि माना गया है। इस दिन सभी दिवंगत माताओं और महिला सदस्यों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। मान्यता है कि यदि इस तिथि में श्राद्ध कर्म न किये जाएं तो मृतक महिलाओं की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, जिससे घर में पितृ दोष आ सकते हैं। इसी वजह से नवमी के श्राद्ध को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। श्राद्ध की इस तिथि पर देवी-देवताओं की बजाय अर्धदेवता धूरीलोचन का आह्वान किया जाता है। धूरी का अर्थ धुआं और लोचन का अर्थ आंख होता है, अतः धूरीलोचन वे देवता माने गए हैं जिनकी आंखें धुएं से आधी बंद रहती हैं। इस दिन मृत पूर्वजों की विदाई धुंए के माध्यम से की जाती है।

इस दिन परंपरागत रूप से महिलाओं के निमित्त श्राद्ध कर्म किया जाता है और दिवंगत स्त्रियों की आत्मा की शांति के लिए भोजन और तर्पण कर्म होता है।
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