पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध पक्ष के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू कैलेंडर में 15 दिनों की अवधि होती है जो मृत पूर्वजों या पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित होती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा से पितृ पक्ष का आरंभ होता है और यह अश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है। 16 दिन की इस अवधि का विशेष महत्व है और इन दिनों में पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। इसका अत्यधिक और धार्मिक महत्व होता है। इस अवधि को श्राद्ध अनुष्ठान करके पूर्ण किया जाता है। इसके बारे में मान्यता है कि पितृ पक्ष में तर्पण करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार को आशीर्वाद मिलता है। श्राद्ध के दौरान मनाए जाने वाले प्रमुख अनुष्ठानों में से एक पंचबली कर्म है, जो धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व दोनों से ही भरपूर है। पितृ पक्ष के दौरान पंचबलि कर्म को भी तर्पण और श्राद्ध जितना महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके बारे में विस्तार से।
पितृ पक्ष का समय महत्वपूर्ण क्यों होता है
पितृ पक्ष अपने पूर्वजों को याद करने और उनका सम्मान करने का समय होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस अवधि के दौरान, मृत पूर्वजों की आत्माएं अपने वंशजों से भोज प्राप्त करने के लिए पृथ्वी पर आती हैं। श्राद्ध अनुष्ठानों के माध्यम से, परिवार के सदस्य अपने पूर्वजों को भोजन, के साथ पानी देते हैं और प्रार्थना करते हैं, जिससे दिवंगत आत्माओं की शांति मिलती है। ऐसा भी माना जाता है कि भक्ति का यह कार्य जीवित परिवार के सदस्यों के लिए आशीर्वाद लाता है और यदि पितरों का श्राद्ध पूरी श्रद्धा से किया जाता है तो पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है। इससे घर की सभी बाधाओं को दूर करने में मदद मिलती है।
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पंचबली कर्म क्या है?
पंचबली कर्म एक प्राचीन वैदिक अनुष्ठान है जो श्राद्ध पक्ष के दौरान, विशेष रूप से पितृ पक्ष की अवधि में किया जाता है। पंचबलि शब्द संस्कृत के दो शब्दों से लिया गया है- पंच जिसका अर्थ है पांच और बलि जिसका अर्थ है भेंट चढ़ाना या बलिदान देना। इस अनुष्ठान में पांच अलग-अलग स्थानों पर भोजन रखा जाता है जो अलग जीवों को समर्पित होते हैं। ऐसा माना जाता है कि कुछ विशेष स्थानों पर रखा हुआ भोजन कई जीवों को समर्पित होता है और उनके माध्यम से हमारे पूर्वजों को भोजन आदि मिलता है। पंचबलि में शामिल पांच लोग होते हैं- देवता, पूर्वज, आत्माएं, मनुष्य और ब्राह्मण।
पंचबली अनुष्ठान दैवीय, पैतृक, प्राकृतिक, सामाजिक और बौद्धिक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करने वाले इन पांच तत्वों के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति के रूप में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध के दौरान इन शक्तियों को भोजन देने से ब्रह्मांडीय संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि दिवंगत आत्माओं को शांति मिले।
इस तरह से किया जाता है पंचबलि कर्म
ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों को भोजन कुछ जीवों के माध्यम से मिलता है और ये जीव और पशु ही संदेशवाहक के रूप में काम करते हैं । मान्यता है कि जो पितर जिस योनि में होता है, उसे वहीं पर मंत्रों द्वारा श्राद्धान्न पहुंचता है। श्राद्ध कर्म के दौरान पंचबलि निकालकर ही ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। पंचबलि के लिए घर के अलग-अलग पांच स्थानों पर आपने जो भी भोजन बनाया है उसे थोड़ा-थोड़ा पत्तल में परोसकर हाथ में जल, रोली, अक्षत पुष्प आदि लेकर पंचबलि दान का संकल्प किया जाता है। पंचबलि में इन पांच स्थानों पर बलि दी जाती है। इसका मतलब यह है कि भोजन को 5 स्थानों पर रखा जाता है। जिसमें सबसे पहले गोबलि यानी कि गाय के लिए भोजन निकाला जाता है। मान्यता है कि पितरों को भूलोक से भुव लोक तक गाय ही पहुंचाती है और वैतरणी नदी पार कराती है ।
पंचबलि में दूसरी बलि काकबलि को माना जाता है। मान्यता है कि कौवा यम में विराजमान पक्षी होता है इसलिए श्राद्ध के दौरान अन्न का एक अंश इसे भी दिया जाता है। इससे भोजन पूर्वजों को मिलता है।
पंचबलि में तीसरी बलि श्वानबलि को माना जाता है जिसमें कुत्ते के लिए भोजन निकाला जाता है। मान्यता है कि कुत्ता एक ऐसा जीव होता है जिसे यम का पशु माना जाता है। कुत्ता को यम पशु माना जाता है। यह दूरदर्शी भी होता है और रक्षक भी है ।
पंचबलि की चौथी बलि भिक्षुक के लिए होती है। पितृ पक्ष के दौरान किसी भिखारी को भी श्राद्ध का अन्न अवश्य दिया जाता है।
पंचबलि की पांचवीं बलि पिपीलिकादिबलि चीटीं आदि कीट पतंगों के लिए होती है। पितृ पक्ष में चींटियों को भोजन कराना विशेष माना जाता है और ये पंचबलि के का पांचवां हिस्सा होता है।
पंचबलि में अलग-अलग पांच जगहों पर भोजन निकालकर कौवों के निमित्त निकाला गया भोजन कौवे को, कुत्ते के लिए निकाला गया भोजन कुत्ते को, भिखारी को भोजन देने के बाद बाकी बचा हुआ भोजन गाय को खिलाया जाता है।
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पंचबली कर्म का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र में पंचबली कर्म को विशेष स्थान दिया गया है, क्योंकि इसे करने से कुंडली में मौजूद पितृ दोष का निवारण हो सकता है। पितृ दोष तब उत्पन्न होता है जब पूर्वजों की आत्मा अशांत रहती है और उन्हें उचित तर्पण या श्राद्ध नहीं मिलता है। यह दोष व्यक्ति के जीवन में विभिन्न समस्याओं का कारण बन सकता है जैसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, आर्थिक तंगी, पारिवारिक कलह और संतान प्राप्ति में कठिनाई। पंचबली कर्म के माध्यम से इन दोषों का निवारण किया जा सकता है और पितरों की आत्मा को शांति प्रदान की जा सकती है।
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