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Guru Purnima Vrat Katha 2025: पाना चाहते हैं जीवन में सफलता तो गुरु पूर्णिमा के दिन पढ़ें ये व्रत कथा

Guru Purnima Vrat 2025 ki Kahani: ऐसी मान्यता है कि जीवन में अगर असफलता ने घेरा हुआ हो तो उस समय गुरु द्वारा दिए हुए ज्ञान का स्मरण करना चाहिए। इससे आपको न सिर्फ सफलता प्राप्ति का मार्ग मिलता है बल्कि जीवन की हर परेशानी का समाधान भी नजर आने लगता है।  
Updated:- 2025-07-10, 06:01 IST

आषाढ़ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, इसलिए इसका एक नाम व्यास पूर्णिमा भी है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं का सम्मान किया जाता है, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है और गुरु का पूजन कर उनका आशीर्वाद पाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जीवन में अगर असफलता ने घेरा हुआ हो तो उस समय गुरु द्वारा दिए हुए ज्ञान का स्मरण करना चाहिए। इससे आपको न सिर्फ सफलता प्राप्ति का मार्ग मिलता है बल्कि जीवन की हर परेशानी का समाधान भी नजर आने लगता है। इसी कड़ी में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत कथा सुनने या पढ़ने से भी जीवन में तरक्की के रास्ते खुलते हैं एवं गुरु ग्रह की भी कृपा होती है।

गुरु पूर्णिमा 2025 व्रत कथा

प्राचीन काल में एक बहुत ही ज्ञानी और तपस्वी ऋषि थे, जिनका नाम पराशर मुनि था। एक बार वे यमुना नदी के किनारे से जा रहे थे। तभी उन्हें नदी पार करने की आवश्यकता हुई। वहां उन्होंने एक सुंदर युवती को देखा जिसका नाम सत्यवती था। सत्यवती मछुआरे की पुत्री थी और नाव चलाने का काम करती थी। पराशर मुनि सत्यवती की सुंदरता से मोहित हो गए और उन्होंने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव रखा।

guru purnima katha 2025

सत्यवती ने मुनि को अपनी समस्या बताई कि उसके शरीर से मछली जैसी गंध आती है, जिसके कारण उससे कोई विवाह नहीं करता। पराशर मुनि ने अपनी तपस्या के बल से सत्यवती को यह वरदान दिया कि उसके शरीर से कभी भी दुर्गंध नहीं आएगी बल्कि उसके स्थान पर सुगंध आएगी। इसके बाद सत्यवती और पराशर मुनि का विवाह हुआ।

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उन्हीं के संयोग से एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जो एक द्वीप पर पैदा हुआ था। इसलिए उनका नाम कृष्ण द्वैपायन पड़ा। उनका रंग सांवला होने के कारण 'कृष्ण' और द्वीप पर जन्म होने के कारण 'द्वैपायन' कहलाए। बड़े होकर यही बालक परम ज्ञानी और तपस्वी बने। उन्होंने वेदों को चार भागों में बांटा- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण उन्हें वेदव्यास के नाम से जाना जाने लगा।

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वेदव्यास जी ने केवल वेदों का विभाजन ही नहीं किया बल्कि उन्होंने महाभारत जैसे विशाल महाकाव्य, अठारह पुराणों और ब्रह्मसूत्रों की भी रचना की। उन्होंने ज्ञान का ऐसा भंडार हमें दिया जिससे आज भी पूरी मानवता लाभ उठा रही है।

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इस प्रकार, आषाढ़ पूर्णिमा का दिन महर्षि वेदव्यास जैसे महान गुरु के जन्म का स्मरण कराता है जिन्होंने अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान की ज्योति फैलाई। यही कारण है कि यह दिन गुरुओं के प्रति हमारी श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने के लिए गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

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गुरु पूर्णिमा के दिन क्या दान करना चाहिए?  
गुरु पूर्णिमा के दिन अगर आप विद्या का दान करते हैं तो यह सबसे ज्यादा श्रेष्ठ माना जाता है।
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