भगवान शिव की पूजा कई रूपों में की जाती है जिनमें शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग प्रमुख हैं। ये दोनों ही भगवान शिव के प्रतीक हैं। शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग दोनों ही शिव शंभू शंकर के निराकार स्वरूप को दर्शाते हैं। शिवलिंग हो या ज्योतिर्लिंग दोनों में जो 'लिंग' शब्द आता है उसका अर्थ है चिह्न या प्रतीक। हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए उनके शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग की पूजा करना शुभ होता है।
वहीं, ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग की आराधना करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही, उन्होंने यह भी साझा किया कि शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग भले ही भगवान शिव का प्रतीक हों, लेकिन दोनों में बहुत अंतर होता है। हालांकि, ज्यादातर लोगों को शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग के बीच का अंतर नहीं पता है, तो चलिए जानते हैं।
शिवलिंग भगवान शिव का एक प्रतीकात्मक रूप है जिसे भक्त पूजा और ध्यान के लिए स्थापित करते हैं। ये विभिन्न सामग्रियों से बनाए जाते हैं। जहां कई शिवलिंग पत्थर से निर्मित होते हैं तो वहीं, कुछ शिवलिंग धातु जैसे कि सोना, चांदी, तांबा आदि से बने होते हैं। कई लोग मिट्टी से भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं। शिवलिंग को मनुष्य द्वारा निर्मित या स्थापित किया जा सकता है।
ये छोटे घर के मंदिरों से लेकर बड़े मंदिरों तक कहीं भी स्थापित हो सकते हैं। शिवलिंग शिव के अनादि और अनंत रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसका कोई आदि और अंत नहीं है। इनकी पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परिवार पर भोले शंकर का आशीर्वाद बना रहता है। कुछ शिवलिंग स्वयंभू भी होते हैं यानी वे अपने आप प्रकट हुए होते हैं और फिर उन्हें मंदिरों में स्थापित किया जाता है।
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ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का एक विशेष और दिव्य रूप है। 'ज्योति' का अर्थ है 'प्रकाश' और 'लिंग' का अर्थ है 'प्रतीक' तो ज्योतिर्लिंग का अर्थ हुआ 'प्रकाश का प्रतीक' या 'प्रकाशमय शिवलिंग'। शिव पुराण के अनुसार, जहां-जहां भगवान शिव स्वयं प्रकाश के रूप में प्रकट हुए उन स्थानों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
ये मानव निर्मित नहीं होते बल्कि इन्हें स्वयंभू माना जाता है यानी ये स्वयं ही उत्पन्न हुए हैं और बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के अस्तित्व में आए हैं। पूरे भारत में कुल 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग हैं और इन सभी का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। माना जाता है कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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शिवलिंग की पूजा आमतौर पर सरल और व्यक्तिगत होती है। शिवलिंग की पूजा किसी भी भक्त द्वारा आसानी से की जा सकती है। इसमें किसी विशेष व्यक्ति द्वारा शिव पूजन करना अनिवार्य नहीं होता है। भक्त शिवलिंग पर जल, बिल्व पत्र, फूल, चंदन आदि अर्पित करते हैं। शिवलिंग की पूजा विधि-विधान से बंधी नहीं होती है।
ज्योतिर्लिंग की पूजा अधिक विशेष और विस्तृत होती है। चूंकि ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान शिव के प्रकाशमय रूप में प्रकट हुए हैं इसलिए इनकी पूजा में विशेष मंत्रोच्चारण, रुद्राभिषेक और महादेव के विभिन्न रूपों का ध्यान किया जाता है। साथ ही, ज्योतिर्लिंग की पूजा-आराधना मंदिर के पुजारी द्वारा ही किए जाने की परंपरा स्थापित है।
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