
छठ पूजा जो मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, चार दिनों तक चलने वाला एक अत्यंत पवित्र और कठोर लोकपर्व है। यह पर्व अनुशासन, आत्म-संयम और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का सबसे बड़ा उदाहरण है। इन चार दिनों में व्रती हर दिन एक विशेष विधि का पालन करते हुए अपनी आस्था को प्रकट करते हैं। इस महापर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है और हर दिन का अपना एक अलग धार्मिक महत्व और पूजा विधि होती है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं छठ पूजा के चार दिनों की संपूर्ण विधि।
व्रत का आरंभ 'नहाय-खाय' से होता है, जिसका अर्थ है 'स्नान करके खाना'।

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छठ का दूसरा दिन 'खरना' कहलाता है जो शुद्धि और 36 घंटे के निर्जला व्रत की तैयारी का दिन है।
यह छठ पूजा का मुख्य दिन है जब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

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यह पर्व का अंतिम दिन है जिसे 'पारण' या 'उदयगामी सूर्य को अर्घ्य' देने के साथ समाप्त किया जाता है।
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