भगवान शिव के अनेक नाम है और हर नाम का खास मतलब और उसमें गहरा संदेश छिपा है। पशुपतिनाथ भी ऐसा ही एक नाम है, जिसका महत्व केवल पशुओं के देवता होने तक सीमित नहीं है। शिवजी को न केवल मनुष्य बल्कि सभी जीव-जंतुओं से प्रेम होने के कारण पशुपतिनाथ कहा जाता है। लेकिन धार्मिक ग्रंथों में पशु शब्द का अर्थ केवल जानवरों से नहीं है, बल्कि उन सभी जीवों से जुड़ा है, जो अज्ञानता, मोह और सांसारिक बंधनों में फंसे हुए हैं। वहीं, पति का अर्थ स्वामी या रक्षक से है। इस तरह, भगवान शिव को पशुपतिनाथ कहा जाता है, क्योंकि वह पूरी सृष्टि के रक्षक हैं और जीवों को अज्ञानता व बंधनों से मुक्त करने वाले हैं।
नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है, जो यूनेस्को विश्व धरोहर में भी शामिल है। यहां देश-विदेश से लोग दर्शन के लिए आते हैं। माना जाता है कि जो इंसान इस मंदिर के पास मरता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। लेकिन, मन में कई बार सवाल आता है कि आखिर भगवान शिव ने पशुपतिनाथ के रूप में अवतार क्यों लिया? इस अवतार के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है? आज हम इस आर्टिकल में आपको भगवान शिव के पशुपतिनाथ रूप की प्रचलित पौराणिक कथाओं के बारे में बताने वाले हैं।
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पौराणिक कथानुसार, जब हिमालय की गुफाओं में महान ऋषि निकुंभ कठोर तपस्या कर रहे थे। वह भगवान शिव के परमभक्त थे और पूरी निष्ठा से उनकी आराधना कर रहे थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी उन्हें पशुपति विद्या का वरदान दिया था। यह एक ऐसी शक्ति थी, जिससे जीवों को मोक्ष प्राप्त करने में सहायता मिलती थी। जब स्वर्गलोग के राजा इंद्रदेव को इस विद्या का पता चला, तो वह भी पशुपति विद्या को जानने के लिए उत्सुक हो गए। वह इसे स्वर्गलोक में भी उपयोग करना चाहते थे। इंद्र ने मुनि निकुंभ से यह विद्या पाने का प्रयास किया, लेकिन मुनि ने विद्या को साझा करने से मना कर दिया, तो इंद्र ने मुनि की तपस्या को भंग करना शुरू कर दिया। जब मुनि के समझ आया कि कोई उनकी साधना में विघ्न डाल रहा है, तो वे बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने इंद्र को श्राम देने का निश्चय किया।
राजा इंद्र को जब मुनि के क्रोध का आभास हुआ, तो वह डरते हुए भगवान शिव के पास पहुंचे। उन्होंने शिव जी के सामने जाकर क्षमा मांगी और मुनि के श्राप से बचने का उपाय भी। इंद्र की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने मुनि निकुंभ को शांत किया और उनसे कहा, "हे मुनि! क्रोध से कोई लाभ नहीं होता। यह विद्या अत्यंत पवित्र है और केवल एक योग्य व्यक्ति ही इसे धारण कर सकता है। इसलिए, अब मैं स्वयं इस विद्या का उपयोग करूंगा और पूरे संसार को मोक्ष का मार्ग दिखाऊंगा। मैं पशुपतिनाथ (संपूर्ण जीवों का स्वामी) बनूंगा और सभी प्राणियों की रक्षा करूंगा।" इस तरह भगवान शिव ने पशुपतिनाथ रूप धारण किया और समस्त जीवों के मुक्तिदाता बन गए।
नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर को लेकर पौराणिक कथा यह है कि एक बार भगवान भोलेनाथ को संसार के मोह-माया से विरक्ति हो गई। वह एकांत की तलाश में हिमालय की ओर चले गए। वह उन्होंने हिरण का रूप धारण किया और एक गुफा में रहने लगे। जब देवी पार्वती यह पता चला कि शिवजी अचानक से गायब हो गए हैं, तो वह चिंतित हो उठीं। उन्होंने देवताओं से मदद मांगी और उनके साथ शंकर जी को ढूंढने निकल पड़ी। कई जगहों पर खोज करने के बाद, अंततः देवताओं को शिवजी हिरण के रूप में एक गुफा में बैठे हुए दिखाई दिए। लेकिन, जब सभी ने उन्हें वापस बनारस लाने का प्रयास किया तो वह नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगाकर भाग गए। कहा जाता है कि उस दौरान उनका सींग चार टुकड़ों में टूट गया। इसके बाद, इसके बाद, देवी पार्वती और देवताओं ने भगवान भोलेनाथ की स्तुति और प्रार्थना शुरू कर दी। सभी ने मिलकर कहा कि हे प्रभु! आप केवल मनुष्यों के ही नहीं, बल्कि समस्त प्राणियों के भी रक्षक हैं। कृपया अपने असली स्वरूप में लौट आइए और संसार का मार्गदर्शन कीजिए।
देवताओं की भक्ति और पार्वती जी के प्रेम को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए। उन्होंने हिरण का रूप त्याग दिया और पशुपतिनाथ स्वरूप में प्रकट हुए। शिवजी ने कहा कि मैं केवल मनुष्यों का नहीं, बल्कि समस्त प्राणियों का स्वामी हूँ। पशु, पक्षी, देवता और मनुष्य सभी मेरे बच्चे हैं। मैं उन्हें अज्ञान और बंधनों से मुक्त करने के लिए सदैव उपस्थित रहूँगा।
वर्तमान में, नेपाल के काठमांडू में भगवान पशुपतिनाथ मंदिर है। पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान शिव की पांच मुंह वाली मूर्ति स्थित है और पांचों मुख अलग-अलग दिशा में और गुणों को बताते हैं। मान्यता है कि अगर कोई भक्त पशुपतिनाथ का दर्शन करता है, तो आगे के किसी भी जन्म में पशु योनि में जन्म नहीं लेता है। इस मंदिर के बाहर आर्य नाम का घाट स्थित है और यह मंदिर के अंदर केवल इसी घाट का पानी चढ़ाया जाता है। किसी अन्य स्रोत से लाया गया जल मंदिर में अर्पित करना वर्जित माना गया है।
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