
17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार का पंचांग धार्मिक दृष्टि से बहुत खास है क्योंकि इस दिन एक साथ कई शुभ संयोग बन रहे हैं। सबसे पहली और बड़ी बात यह है कि इस दिन रमा एकादशी का व्रत रखा जाएगा जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम एकादशी होती है और इसे भगवान विष्णु के 'रमा' स्वरूप अर्थात माता लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है जिससे धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी दिन गोवत्स द्वादशी या वसू बारस का पर्व भी मनाया जाएगा जिससे गाय और बछड़े की पूजा करके गाय माता के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है और इसी के साथ सूर्य देव का तुला राशि में गोचर होगा जिसे तुला संक्रांति कहा जाता है जो एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना है। इस प्रकार, एकादशी, गोवत्स द्वादशी और तुला संक्रांति का यह संयोग इस दिन को लक्ष्मी-विष्णु और समृद्धि की पूजा के लिए अत्यंत शुभ और विशेष फलदायी बनाता है। ऐसे में आइये जानते हैं एमपी, छिंदवाड़ा के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ त्रिपाठी से आज का पंचांग।
| तिथि | नक्षत्र | दिन/वार | योग | करण |
| कार्तिक कृष्ण एकादशी (सुबह 11 बजकर 12 मिनट)/द्वादशी | मघा | शुक्रवार | शुक्ल | बालव |

| प्रहर | समय |
| सूर्योदय | सुबह 6 बजकर 22 मिनट |
| सूर्यास्त | शाम 5 बजकर 48 मिनट |
| चंद्रोदय | रात 2 बजकर 32 मिनट |
| चंद्रास्त | दोपहर 3 बजकर 37 मिनट (अगले दिन) |
| मुहूर्त नाम | मुहूर्त समय |
| ब्रह्म मुहूर्त | सुबह 4 बजकर 52 मिनट से सुबह 5 बजकर 40 मिनट तक |
| अभिजीत मुहूर्त | सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक |
| अमृत काल | सुबह 11 बजकर 25 मिनट से दोपहर 1 बजकर 06 मिनट तक |
| विजय मुहूर्त | दोपहर 2 बजकर 10 मिनट से दोपहर 2 बजकर 56 मिनट तक |
| गोधुली मुहूर्त | शाम 5 बजकर 48 मिनट से शाम 6 बजकर 13 मिनट तक |
| मुहूर्त नाम | मुहूर्त समय |
| राहु काल | सुबह 10 बजकर 40 मिनट से दोपहर 12 बजकर 05 मिनट तक |
| गुलिक काल | दोपहर 2 बजकर 57 मिनट से शाम 4 बजकर 23 मिनट तक |
| यमगंड | सुबह 7 बजकर 51 मिनट से सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक |

17 अक्टूबर 2025 का दिन, जो कि शुक्रवार है, हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ है, क्योंकि इस दिन एक नहीं बल्कि तीन प्रमुख धार्मिक कार्यक्रम एक साथ मनाए जाएँगे। सबसे मुख्य व्रत रमा एकादशी का है, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के 'रमा' स्वरूप को समर्पित होता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे उन्हें सुख, समृद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है।
इसी दिन, पंचदिवसीय दीपोत्सव (दिवाली) की शुरुआत भी हो जाती है, क्योंकि गोवत्स द्वादशी या वसू बारस का त्योहार मनाया जाएगा। गोवत्स द्वादशी पर गाय और बछड़े की पूजा करने का विशेष महत्व है, जो भारतीय संस्कृति में गाय के महत्व को दर्शाता है। इस दिन गौ माता की सेवा और पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है, ऐसा माना जाता है। यह त्योहार एक तरह से दिवाली की पूरी श्रृंखला का आध्यात्मिक शुभारंभ भी माना जाता है।
इन दोनों व्रतों के साथ ही, 17 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना भी है जिसे तुला संक्रांति के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव अपनी राशि बदलकर कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के इस राशि परिवर्तन को संक्रांति के रूप में मनाया जाता है, और यह दान-पुण्य, स्नान और धार्मिक कार्यों के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस प्रकार, रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी और तुला संक्रांति का यह संयोग इस दिन को व्रत और पूजा-पाठ के लिए अत्यंत फलदायी और सौभाग्यदायक बना रहा है।
17 अक्टूबर 2025 का दिन 'रमा एकादशी', 'गोवत्स द्वादशी' और 'तुला संक्रांति' जैसे तीन बड़े शुभ संयोग लेकर आ रहा है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और गौ माता की पूजा के विशेष उपाय करने चाहिए। सबसे पहले, रमा एकादशी के कारण आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और पीले या सफेद कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा करें। पूजा में विष्णु जी को तुलसी दल (पत्ता), पीले फूल और फल चढ़ाएँ, क्योंकि तुलसी के बिना वे भोग स्वीकार नहीं करते। साथ ही, माँ लक्ष्मी को कमल का फूल चढ़ाएँ और श्री सूक्त का पाठ करें। इन उपायों से घर में धन और सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है।
इस दिन 'गोवत्स द्वादशी' भी है, जो दिवाली के पर्व की शुरुआत का प्रतीक है। इस शुभ अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा करना बहुत ही फलदायी माना जाता है। यदि संभव हो, तो गाय और बछड़े को अपने हाथों से हरा चारा, रोटी या गुड़ खिलाएँ। गौ माता की सेवा और पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और घर में संतान संबंधी परेशानियाँ भी दूर होती हैं। अगर आप गौ सेवा नहीं कर सकते, तो किसी गौशाला में जाकर दान कर सकते हैं। इसके अलावा, पूरे दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करना चाहिए और शाम को घर के मुख्य द्वार पर घी का दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है, इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
चूंकि इस दिन 'तुला संक्रांति' भी है, यानी सूर्य देव राशि बदल रहे हैं, इसलिए दान-पुण्य करना विशेष लाभ देता है। सुबह स्नान के बाद तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें थोड़ा गुड़ या लाल फूल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें और 'ॐ सूर्याय नमः' मंत्र का जाप करें। इसके अलावा, अपनी इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार ज़रूरतमंद लोगों को सफेद या पीली चीज़ों का दान करें। आप चावल, दूध, चीनी, या पीले वस्त्र दान कर सकते हैं। यह माना जाता है कि एकादशी और संक्रांति का यह महासंयोग आपके सभी पापों को नष्ट कर देता है और आपके जीवन में सकारात्मकता लाता है। इन उपायों को करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और धन, सुख और शांति मिलती है।
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image credit: herzindagi
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