सरयू नदी, जिसे घाघरा नदी भी कहा जाता है, भारत के उत्तरी भाग में बहने वाली एक महत्वपूर्ण नदी है। यह नदी न केवल धार्मिक महत्व की है बल्कि स्थानीय लोगों के जीवन में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरयू नदी उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से उद्गम होती है।
यह नदी शारदा नदी में विलय हो जाती है, जो काली नदी भी कहलाती है और उत्तर प्रदेश राज्य से गुजरती है। यह बिहार के आरा और छपरा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को इसके ऊपरी हिस्से में काली नदी के नाम से जाना जाता है। मैदान में उतरने के पश्चात् इसमें करनाली या घाघरा नदी आकर मिलती है और इसका नाम सरयू हो जाता है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में इसे शारदा भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सरयू नदी का रामायण में विशेष महत्व है। यह नदी अयोध्या में बहती है, जो भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है। हिंदू धर्म में सरयू नदी को पवित्र माना जाता है और इसमें स्नान करने से पाप धुल जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि सरयू नदी को भगवान शिव ने श्राप दिया था। आइए इस लेख में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से इसके बारे में जानते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने सरयू नदी में ही जल समाधि ली थी। सरयू नदी ही प्रभु श्रीराम ने अपनी लीला का अंत किया था। जिसके कारण भगवान शिव सरयू नदी से भगवान शिव बेहद क्रोधित हुए थे और उन्होंने सरयू को श्राप दिया कि तुम्हारा जल मंदिर में अर्पित करने के लिए उपयोग में नहीं लिया जाएगा।
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साथ ही किसी भी पूजा-पाठ में तुम्हारे जल का प्रयोग गलती से भी नहीं किया जाएगा। इसी कारण सरयू नदी का जल पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
रामचरितमानस के अनुसार, सरयू नदी भगवान राम से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। अयोध्या में राम की जन्मभूमि के निकट होने के कारण इस नदी का विशेष महत्व है। माना जाता है कि भगवान राम ने इसी नदी में स्नान किया था और यहीं से उन्होंने अपने वनवास की शुरुआत की थी। सरयू नदी को सभी तीर्थों का संगम माना जाता है।
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यहां स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्य मिलता है ऐसी मान्यता है। माना जाता है कि सरयू के पावन जल में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। बता दें,सरयू नदी के तट पर स्थित अक्षयवट और राम की पादुका भी इस नदी के पौराणिक महत्व को दर्शाते हैं।
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Image Credit- HerZindagi
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