जैन धर्म के इन प्रतीक चिह्नों का रहस्य
Gaveshna Sharma
2023-03-15,08:49 IST
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जैन धर्म में 24 तीर्थंकर होते हैं। इस धर्म के सभी दीक्षाई कठिन नियमों का पालन करते हैं। जैन धर्म की दो शाखाएं हैं, एक दिगंबर और दूसरे श्वेतांबर। इसी कड़ी में ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं जैन धर्म के दिगंबर जैनियों से जुड़े कुछ प्रतीक चिह्नों के बारे में।
परसोल/छत्र
जैन तीर्थंकरों के वक्ष के मध्य में श्रीवत्स होता है। वहीं, सिर के ऊपर तीन छत्र होते हैं। ये तीन छत्र भगवान महावीर के तीनों लोकों के स्वामी होने के भाव को प्रदर्शित करते हैं।
ध्वजा
जैन धर्म की ध्वजा अत्यंत निराली है। इस ध्वजा में पांच रंग होते हैं। जो कुछ इस प्रकार से हैं: लाल, पीला,सफेद, हरा और नीला। जैन ध्वजा में स्वास्तिक का चिह्न भी अंकित है।
कलश
जैन धर्म में भी हिन्दू धर्म की तरह कलश होता है। कलश को शुभता का प्रतीक माना जाता है। जैन धर्म में भी कलश पर स्वास्तिक का चिह्न अनिवार्य रूप से बनाया जाता है।
चवर
चवर को अत्यंत पवित्र माना जाता है। चवर को देवमूर्तियों के सिर पर, पीछे या बगल से डुलाया जाता है। इसके पीछे का कारण माना जाता है कि ऐसा करने से रोगों का नाश होता है।
आसन
यूं तो जैन धर्म में गुरुओं का आसन पर बैठना वर्जित होता है लेकिन आसन के विपरीत महाराज जी चटाई पर विराजमान होते हैं। ये चटाई फूफ यानी कि पुराली से बनी होती है।
मोरपंख की पिच्छी
मोरपंख की पिच्छी का प्रयोग सभी जैन गुरुओं द्वारा किया जाता है। जीव को आहत होने से बचाने के लिए मोरपंख की पिच्छी का इस्तेमाल किया जाता है। ताकि रास्ते में आने वाले जीव सुरक्षित रहें।
पूजा पात्र
जैन धर्म का पूजा पात्र कुछ कुछ हिन्दू धर्म से मिलता जुलता है। क्योंकि दोनों ही धर्मों के पूजा पात्र में आचमनी, लुटिया, एक छोटा ग्लास, एक अन्य ग्लास और, एवं कटोरी का इस्तेमाल होता है।
स्वास्तिक
जैन धर्म में स्वास्तिक का अत्यंत महत्व है। स्वास्तिक को बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है। इसी कारण से जैन धर्म से जुड़े हर प्रतीक चिह्न में कहीं न कहीं स्वास्तिक अंकित होता है।
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