आज निर्भया कांड है... कानून तो बन गए हैं लेकिन फिर भी इनके बारे में कुछ ही महिला ओं को मालूम है। तो इन कानून के बारे में पता करें और अपनी सुरक्षा करें।
कई महिलाओं को मालुम नहीं होता कि रात में किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। घर में पति थोड़ी सी भी तू-तड़ाक या बद्तमीजी करता है तो वो घरेलू हिंसा में ही आती है। आपका नाम ऐसे ही कोई यूज़ कर बदनाम नहीं कर सकता। आपको कोई भी गलत शब्द जैसे, छम्मक-छल्लो, छमिया, डाहिन वगैरह कह कर, पुकार नहीं सकता।
आधी आबादी को पूरी सुरक्षा देने के लिए उन्हें कई सारे कानूनी अधिकार दिए गए हैं। प्रॉब्लम ये है कि हम में से ज्यादा महिलाओं को इन अधिकारों के बारे में मालुम ही नहीं।
लेकिन, कोई नहीं... अब समझौता नहीं।
ITC Vivel अब समझौता नहीं के तर्ज पर महिलाओं के लिए social campaign चला रहा है। यह campaign महिलाओं में self-belief और self-reliance बनाने का काम करता है। ITC Vivel ना केवल महिलाओं की शक्ति का जश्न मनाता है, बल्कि उन्हें सोसाइटी में समान जीवन के लिए भी प्रेरित करता है। इसी के साथ ITC Vivel सृष्टि नाम की लड़की को सपोर्ट कर रहा है जो कन्याकुमारी से श्रीनगर तक पैदल ट्रेवल कर रही है। सृष्टि 260 दिनों में 3800 Kms कवर करने के मिशन पर है। इसी को देखते हुए ITC Vivel ने हाल ही में www.absamjhautanahin.com नाम से वेबसाइट लॉन्च की है जिसमें महिलाओं के सारे अधिकारों की जानकारी दी गई है। इस वेबसाइट में से ही कुछ अधिकारों के बारे में हम आपको यहां बता रहे हैं। इन अधिकारों के बारे में जानें और एक self-dependent जिंदगी जिएं।
1रात में नहीं किया जा सकता आपको गिरफ्तार

कई बार किसी महिला को रात में गिरफ्तार करने के मामले सुनने को मिलते हैं। जिसके बाद खबर आती है कि फलाना पुलिस ने फलाने थाने में महिला के साथ बद्तमीजी की। जबकि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 के तहत सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले एक महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। अगर कोई स्पेशल केस है तो भी यह केवल प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही संभव हो सकता है।
2घरेलू हिंसा रोकथाम कानून

घरेलू हिंसा मतलब केवल ये नहीं कि आपको जला दिया जाए या फिर ससुराल के सभी लोग मिलकर पीटें। घरेलू हिंसा में आपके मान का अपमान करना, आपको झिड़कना, पति का अच्छे से बर्ताव ना करना, आदि छोटी-छोटी बातें भी शामिल होती हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत किसी भी महिला को उसके पति व पति से संबंधित कोई रिश्तेदार प्रताड़ित करता है तो वो घरेलू हिंसा के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है। यहां तक कि जरूरी नहीं कि महिला ही शिकायत कराए। महिला की तरफ से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है।
Read More: सेफ्टी पेंडेट रखेगा आपको हर खतरे से सेफ
3ऑफिस में हैरेसमेंट

ऑफिस में होने वाले हैरेसमेंट की शिकायत करना आपका अधिकार भी है और जरूरत भी। क्योंकि एक चुप्पी आगे होने वाले कई सारे इंसिडेंट्स को एक मौन सहमति देती है। इसलिए खुलकर हैरेसमेंट के खिलाफ बोलें। अब तो केंद्र सरकार के नए नियम के अनुसार वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण की शिकायत करने वाली महिला को जांच होने तक 90 दिन की पेड लीव दी जाएगी।
इसलिए हिचकिचाए नहीं, आवाज उठाएं।
4कन्या भ्रूण हत्या कानूनन अपराध

अपने देश में कन्या भ्रूण हत्या कानूनन अपराध है लेकिन ये सबसे अधिक होता है। इसलिए कुछ राज्यों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या काफी कम है। इस कारण एक लड़की को जीने का अधिकार देने के लिए गर्भ में कराए जाने वाले लिंग जांच के खिलाफ कानून बनाया गया है।
- धारा 313 के अनुसार स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
- धारा 314 के अनुसार गर्भपात के दौरान स्त्री की मौत हो जाने पर 10 साल का कारावास या जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।
- धारा 315 के अनुसार नवजात को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के बाद उसको मारने की कोशिश करने का अपराध करने पर 10 साल की सजा या जुर्माना दोनों की सजा हो सकती है।
5नाम छुपाने का अधिकार

रेप या किसी भी तरह की हैरेसमेंट की शिकार हुई महिलाओं को अपना नाम छुपाने का अधिकार है। रेप के मामलों में तो कोई महिला केवल किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने ही अपना मामला दर्ज करा सकती है। ये नियम सरकार ने समाज में होने वाली बदनामी से बचाने के लिए बनाए हैं।
6समान वेतन का अधिकार

अधिकतर ऑफिस में ऐसा होता है कि एक पोस्ट में काम करने वाली महिला और पुरुष के वेतन में अंतर होता है। जबकि समान वेतन अधिनियम,1976 में एक ही तरीके के काम के लिए समान वेतन का प्रावधान है।
7मैटरनिटी लीव्स

यहां तक की मैटरनिटी लीव्स भी बढ़ाकर 26 सप्ताह की कर दी गई है। मातृत्व लाभ अधिनियम,1961 के तहत मैटरनिटी बेनिफिट्स हर कामकाजी महिलाओं का अधिकार है। ये 26 सप्ताह की छुट्टियां पूरी तरह से पेड होती हैं और इस सैलरी में कंपनी कोई कटौती नहीं कर सकती।
8पत्नी को मुआवजा

अगर किसी पति-पत्नी के बीच में नहीं बनती है तो सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला अपने पति से अलग भी हो सकती है और अपने व बच्चों के लिए गुजारा भत्ता भी मांग सकती है। अगर बात तलाक तक पहुंच जाए, तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है।